
एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति
भारत में सवाल 'आत्म-ब्रह्म' का, 'मैंं कौन हूं?' का भी आम है। और 'सब-कुछ यहीं है', 'जो दिखता है, वही सत्य है', '...ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत' की जड़ें भी गहरी है। आस्तिक भी हैं, नास्तिक भी। वैष्णव हैं, कापालिक, अघोरी भी। कोई बनी-बनाई लीक नहीं, जिस पर सब एक साथ चले जा रहे हैं।
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