नई दिल्ली: रासायनिक उर्वरकों से उगाए गए अनाज व फल सेहत के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा करते हैं। वहीं प्राकृतिक खेती न केवल शरीर को रोगमुक्त रखने में मदद करती है, बल्कि कृषि उपज को भी बढ़ाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए तिहाड़ जेल अब कैदियों से प्राकृतिक खेती कराने का फैसला लिया है। गुरुवार को तिहाड़ कारागार परिसर में एक कदम प्राकृतिक कृषि की ओर विषय पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बंदियों एवं स्टाफ को प्राकृतिक खेती के महत्व के विषय में विस्तार से जानकारी दी।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इससे भूमि, मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने जैविक खेती और प्राकृतिक खेती में अंतर स्पष्ट करते हुए बताया कि प्राकृतिक खेती शून्य लागत, स्थायी एवं समग्र कृषि प्रणाली है। उन्होंने सभी हितधारकों, विशेषकर कैदियों से, प्राकृतिक खेती को केवल खेती की विधि न मानकर पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्र निर्माण के एक आंदोलन के रूप में अपनाने की अपील की।
दिल्ली सरकार के मंत्री आशीष सूद ने गुजरात के राज्यपाल द्वारा प्रेरित प्राकृतिक खेती की पहल की सराहना करते हुए बताया कि आज गुजरात में 9.5 लाख से अधिक किसान प्राकृतिक खेती से लाभान्वित हो रहे हैं। तिहाड़ में प्राकृतिक खेती की शुरुआत न केवल जेल की रसोई को शसक्त करेगी बल्कि अतिरिक्त उत्पादन को तिहाड़ हाट के माध्यम से बिक्री हेतु उपलब्ध कराया जाएगा।
कार्यक्रम के दौरान उन्होंने जेल संख्या 1 का दौरा किया, जहां कैदियों की सहायता से प्राकृतिक खेती की शुरुआत की गई है। इसके बाद जेल संख्या 4 का भ्रमण किया गया, जहां उन्हें आर्ट गैलरी तथा जूट बैग, एलईडी इकाई जैसे अन्य इन-हाउस उत्पादन कार्यों की जानकारी दी गई।
तिहाड़ जेल के महानिदेशक सतीश गोल्चा, ने कारागार विभाग द्वारा कैदियों के कल्याण के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों, मध्य जेल संख्या 1 में प्राकृतिक खेती की शुरुआत तथा आगामी कार्ययोजना की जानकारी दी।
प्राकृतिक खेती से फायदे
गौमूत्र, गोबर एवं जैविक खाद के प्रयोग से भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक की आवश्यकता न होने से खेती की लागत घटती है। रसायन मुक्त एवं पोषणयुक्त भोजन से बेहतर स्वास्थ्य लाभ होता है। जल एवं जैव विविधता की रक्षा होती है क्योंकि जहरीले अवशिष्ट नहीं निकलते। किसानों में आत्मनिर्भरता बढ़ती है जिससे वे बाहरी संसाधनों व ऋण पर निर्भर नहीं रहते।