दस साल का कराटे चैम्पियन इंडोनेशिया में फहराएगा तिरंगा

कराटे चैंपियन विल्दान अज्जुमर बिहार के एक छोटे से गांव में जन्मे और पले-बढ़े है। उम्र अभी इनकी दस साल है। इसी महीने वह थाइलैंड की राजधानी बैंकाक से कराटे की वर्ल्ड चैंपियन​शिप में दो-दो गोल्ड मेडल जीतकर लौटे हैं। उनका हौसला सातवें आसमान है। अब वह 26 जनवरी 2026 को इंडोनेशिया में तिरंगा लहराने की तैयारी में है। एसके उल्लाह की खास रिपोर्ट...

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गया: कराटे का वैश्विक मुकाबला जीत कर लौटे विल्दान अज्जुमर हमजापुर गांव लौटे। यह गया जिले के शेरघाटी के करीब पड़ता है। रिश्तेदारों व परिचितों समेत स्थानीय निवासियों ने विल्दान का शानदार स्वागत किया। दस साल पहले इसी गांव में विल्दान ने शहजाद सुल्तान और जर्रीं फातिमा के घर में जन्म लिया था। इसी गांव में इसका ननिहाल भी है। माता-पिता और तीन भाई-बहनों वाला यह परिवार अभी कोलकाता में रह रहा है।

विल्दान ने अपनी उपलब्धियों और संघर्षों की चर्चा करते हुए बताया कि कोलकाता के असेम्बली ऑफ गाडॅ स्कूल में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की। इस दौरान एक क्लब में मार्शल आर्ट कराटे की कठोर ट्रेनिंग ली। फिर, थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में इसी महीने आयोजित 7वीं वर्ल्ड ओपन कराटे चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया। विदेश दौरे का यह पहला अनुभव था। वह भी अपने माता-पिता से अलग ग्रुप के बच्चों के साथ।

50 देशों के खिलाड़ियों ने की थी शिरकत

विल्दान के मुताबिक, यह मुकाबला बड़ा रोचक था। माता-पिता की मौजूदगी के बगैर पहले से वह नर्वस था। मगर उसके दोस्त के चाचा ने उसे हिम्मत दी और वह मुकाबले में कुछ बढ़िया करने के इरादे से अखाड़े में उतरा। इस मुकाबले में दुनिया के 50 देशों के खिलाड़ी आए थे। भारत के विभिन्न राज्यों से भी 15 खिलाड़ियों ने शिरकत की थी। आठ मई से शुरू हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप में दो देशों के खिलाड़ियों को पछाड़ कर विल्दान ने इतिहास रच दिया। मुकाबला अंडर-10 के वियतनाम और नेपाल के खिलाड़ियों से हुआ था। इस जोर आजमाइश में विल्दान को दो गोल्ड मेडल और दो सर्टिफिकेट के साथ ब्लू बेल्ट भी मिला था। इसी के साथ उसकी इंडोनेशिया ट्रिप भी तय हो गई।

साहित्यकारों के गांव में कराटे की चर्चा

फर्राटे से अंग्रेजी बोलने वाले विल्दान की इस कामयाबी पर समूचा गांव खुश है। विल्दान के मामा पिंकू और बॉबी कहते हैं कि वह शुरू से ही नटखट था। पढ़ने के साथ खेलने में भी वह बहुत तेज था। पड़ोस में रहने वाले फिरोज अहमद, मिन्हाज आलम और वसीम अकरम कहते हैं कि कौस हमजापुरी, नावक हमजापुरी, अफसर हमजापुरी, शाहीन हमजापुरी, सालिक हमजापुरी, हेलाल हमज़ापुरी, इशराकहमजापुरी आदि की जन्मस्थली होने के कारण उर्दू-फारसी साहित्य के क्षेत्र में पहले से ही यह गांव देश-दुनिया में मशहूर रहा है। अब बच्चे नए-नए क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहे हैं।

खूब की थी प्रैक्टिस

विल्दान बताते हैं कि थाइलैंड जाने के पूर्व उसने खूब प्रैक्टिस की थी। रमजान के दिनों में वह रोजा रखकर अर्थात दिन-भर बगैर कुछ खाए-पिए भी क्लब में प्रतिदिन प्रैक्टिस कर रहा था। थाईलैंड यात्रा में विल्दान के कोच एमए अली भी साथ थे। अब बड़े सपनों के साथ वह फिर से धुआंधार अभ्यास करना चाहता है।

Suman

santshukla1976@gmail.com http://www.newgindia.com

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