नई दिल्ली: अबूझमाड़ में बुधवार की मुठभेड़ से सुरक्षा बलों की बड़ी कामयाबी मिली। सीपीआई-माओवादी का महासचिव, शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ रहे बासव राजू का मारा जाना खासा अहम माना जा रहा है। इसको नंबाला केशव राव ऊर्फ बीआर दद्दा उर्फ गगन्ना के नाम से भी जानते थे। इसकी सुरक्षा में नक्सलियों की मिलिट्री कंपनी नंबर-सात लगी हुई थी। बताया जा रहा है कि मुठभेड़ में सात नंबर कंपनी का भी तकरीबन सफाया हो गया।
बासव की सुरक्षा में रहती थी एक कंपनी
हार्डकोर माओवादी की एक 20 सदस्यीय कमेटी है। यह सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेती है। इसी के आदेश से दूसरी कमेटियां काम करती हैं। बासव राजू इसी कमेटी का महामंत्री था। पहले उसकी सुरक्षा में 60 से ज्यादा एके-47 होल्डर ट्रेंड माओवादी थे, लेकिन अब इनकी संख्या बहुत कम हो गयी। फिर भी, अभी करीब 40 एके-47 होल्डर नक्सली इसकी सुरक्षा में रहते थे।
नक्सली लीडर के आगे तीन किमी तक की सुरक्षा
नक्सली लीडर के सुरक्षा इंतजाम बड़े सख्त होते हैं। जो डिविजन स्तर का माओवादी लीडर है, कमोवेश जिसकी रैंक जिला पुलिस के एसपी समान होती है, उसकी सुरक्षा में आज भी 20 एके 47 होल्डर नक्सली तैनात हैं। पोलित ब्यूरो की सुरक्षा और भी सख्त होती है। करीब तीन किलोमीटर तक के दायरे में रास्ता क्लीयर करके ही यह आगे बढ़ते हैं। जिस भी इलाके में उच्च कमेटी का सदस्य भी जाता है, उस इलाके की जनताना सरकार भी 24 घंटे सक्रिय रहती है। ऐसी स्थिति में भी किसी पोलित ब्यूरो को ढेर कर देना, पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी है।
श्रीकाकुलम का रहने वाला था बासव
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का रहने वाला बासव अब 70 साल का हो चुका था। लेकिन हत्याओं का आदेश देने में सबसे ज्यादा क्रूर माना जाता था। इसी की सजा सुरक्षाकर्मियों ने बुधवार उसे दे दी। वर्तमान में उसके पद सीपीआई (माओवादी) का महासचिव, केंद्रीय सैन्य आयोग का प्रमुख, पोलित ब्यूरो सदस्य के साथ ही केंद्रीय समिति का सदस्य भी था।
यह भी पढ़ें: इनामी ‘बासव राजू’ समेत 27 नक्सली ढेर
सात साल पहले बासव को मिली थी पदोन्नति
बासव 1970 में प्रतिबंधित माओवादी संगठन से जुड़ा था। करीब सात साल पहले, 2018-2019 उसे इस शीर्ष पद पर पदोन्नति मिली थी। बासव ने बीटेक की डिग्री हासिल की थी। यह काफी तेज-तर्रार माना जाता था। इसी कारण जब माओवादियों की गतिविधियां कम होने लगीं, तो इसको पद्दोन्नति दी गयी, ताकि नक्सल आपरेशन बढ़ा सके।
19 मई को पता चला अबूझमाड़ में छिपे हैं माओवादी
19 मई को जवानों को पता चला कि वह अबूझमाड़ में आया हुआ है। इसके बाद तीन जिलों की पुलिस के साथ ही केंद्रीय फोर्स भी सजग हो गयी और एंबुस (घेराबंदी की प्रक्रिया) की प्रक्रिया शुरू हो गयी। 20 शाम को ही पुलिस ने उस इलाके को चारों तरफ से घेर लिया, जहां माओवादी आराम कर रहे थे। 21 को तड़के ही अभी माओवादी कुछ समझ पाते, जवानों ने फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद नक्सलियों को संभलने का मौका ही नहीं मिला और 27 ढेर हो गये। 30 सालों के इतिहास में पहली बार कोई पोलित ब्यूरो लीडर को ढेर करने में पुलिस को सफलता मिली है।
यह भी पढ़ें: अबूझमाड़ को जवानों ने लिया बूझ
एंबुस के खिलाड़ी, फंसते जा रहे एंबुस में
नक्सली दरअसल एबुंस के बहुत बड़े खिलाड़ी हैं। वे कभी भी आमने-सामने का युद्ध नहीं करते। जब भी कभी सामने से पुलिस आ जाती, वह भग जाते हैं। कह सकते हैं कि कायराना हरकत इनकी पुरानी आदत रही है। माओवादी हमेशा से पीछे से ही वार करने के मास्टर हैं। वे गुरिल्ला युद्ध की परंपरा को कायम रखा है।
फिर भी, बच गया पटकल स्वामी
यह भी जानना जरूरी है कि माओवादियों का सबसे बड़ा लीडर तो मारा गया, लेकिन इस घटना के बाद भी गढ़चिरौली का प्रभारी सचिव (एसपी रैंक का अधिकारी) पटकल स्वामी अभी भी बच गया है। वह भी घटनाओं को अंजाम देने का मास्टर माना जाता है। हालांकि, कंपनी सात का सफाया होना बहुत बड़ी कामयाबी है। इस घटना में एक डीआरजी का जवान भी शहीद हो गया।