गढ़चिरौली: अबूझमाड़ को जवानों ने लिया बूझ

छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र और झारखंड में भौगोलिक स्थिति नक्सलवादियों के लिए मददगार साबित होती रही है। गढ़चिरौली के घने जंगल और पहाड़ियां किस तरह नक्सलवादियों के लिए मुफीद साबित हुए हैं, बता रहे हैं, उपेंद्र नाथ राय....

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नई दिल्ली। महाराष्ट्र स्थित विदर्भ के दक्षिण पूर्वी कोने पर स्थित यह जिला पूर्व की ओर से छत्तीसगढ़ और दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम से तेलंगाना से घिरा है। आदिवासी बहुल इस जिले में करीब 70 फीसदी वन क्षेत्र है। इसी वजह से इसे महाराष्ट्र का फेफड़ा भी कहते हैं। वहीं, प्राणहिता, इंद्रावती, वैनगंगा व गोदावरी नदी इससे होकर बहती हैं। इससे पूरा इलाका दुर्गम हो जाता है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग की अपेक्षा महाराष्ट्र के गढ़ चिरौली की भौगोलिक स्थिति थोड़ा अलग है। यहां पहाड़ी कम है, लेकिन जंगल घना है।छत्तीसगढ़ के नारायणपुर व कांकेर के बार्डर से लेकर गढ़चिरौली के पास ही अबूझमाड का जंगल है। यहा का रास्ता अभी तक सुरक्षा बलों के लिए अबूझ (भूलभुलैया) था। तभी इसे नक्सली अपने लिए सबसे महफूज जगह मानते थे। फिर भी, बीते एक साल से केंद्रीय सुरक्षा बलों व स्थानीय पुलिस ने मिलकर माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन को तेज किया है।

भौगोलिक स्थिति कितनी मुफीद है, इसको बीते दिनों नक्सलियों से सुरक्षा बलों की मुठभेड़ से समझा जा सकता है। मुठभेड़ के बाद गढ़चिरौली के एडिशनल एसपी यतीश देशमुख ने कहा कि नक्सली तीन तरफ से घेर लिए गए थे, लेकिन वहां एक खड़ी चट्टान थी। इसने उनको आश्चर्यजनक तरीके से भागने का मौका दे दिया।

गढ़चिरौली में घुसते ही माओवादी लग जाते पीछे

इस कहानी के लेखक ने 2018 में पहली बार गढ़चिरौली के नक्सल प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया था। वहां जाने के साथ अजीब सा अजनबीपन लोगों में दिखा। यहां हर शख्स दूसरे को शक के निगाह से ही देखता है। यदि बाहर का कोई भी व्यक्ति दिखा तो सामान्य जन बनकर माओवादियों की शाखा जनताना सरकार के लोग पहले उसके बारे में डिटेल निकाल लेते हैं। हर किलोमीटर पर पूछताछ की गई। अब भी हालात कुछ-कुछ वैसे ही हैं, लेकिन बदलाव भी स्पष्ट दिखने लगा है। गढ़चिरौली में प्रवेश करते ही उस समय जगह-जगह माओवादी स्मारक मिल जाते थे, जिन्हें अब पुलिस ने बहुत हद तक नष्ट कर दिया है।

रूढि़वादिता का फायदा उठाते माओवादी

स्थानीय निवासियों में रूढिवादिता अभी भी देखने को मिलती है। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि गढ़चिरौली के भामरागढ़ क्षेत्र के एक गांव में चोरी हुई थी। जिसके यहां चोरी हुई, वह तुरत थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने नहीं गया। करीब एक सप्ताह तक वह ओझा-सोखा के चक्कर में यह पता लगाने की कोशिशि रहा कि यह चोरी किसने की है। इसी तरह के तमाम उदाहरण वहां मिल जाते हैं। लोगों की इसी सहजता, रूढिवादिता का फायदा माओवादी उठाते रहे हैं। इसके सहारे वह अपनी शाखाओं को बढ़ाते रहते थे, जिसको सरकार ने फोर्स के दम पर रोकने की कोशिश की है।

अबूझमाड़ माओवादियों के लिए मुफीद

अबूझमाड़ में माओवादियों के कई हेडक्वार्टर है। दो राज्यों का बाॅर्डर होने से माओवादियों के लिए फायदेमंद साबित होता रहा है। एक राज्य में वारदात कर यह दूसरे राज्य में छिप जाते हैं। जब तक पुलिस आपस में तालमेल बिठाती है, तब तक वह गिरफ्त से दूर चले जाते हैं। अभी पिछले सप्ताह ही गढ़चिरौली पुलिस के 200 खास सी-60 कमांडो ने एक बड़ा ऑपरेशन किया। उन्होंने अबूझमाड़ में माओवादियों के हेडक्वार्टर पर हमला किया। हमला 12 मई, सोमवार सुबह 6:30 बजे हुआ। कमांडो ने माओवादियों के एक अहम कैंप को तबाह कर दिया। दोनों तरफ से दो घंटे तक खूब गोलियां चलीं। यह ऑपरेशन महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ बॉर्डर के खतरनाक जंगल और पहाड़ी इलाके में हुआ।

टीसीओसी को लगा झटका, मगर सफल नहीं हो पायी पुलिस

इससे माओवादियों के टीसीओसी को बड़ा झटका लगा। पुलिस को खबर मिली थी कि भामरागढ़ लोकल ऑर्गनाइजेशनल स्क्वाड (दलम) के हथियारबंद माओवादी, छत्तीसगढ़ बॉर्डर से 200 मीटर दूर बने नए कवांडे पोस्ट के पास हैं। एडिशनल सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (एडमिनिस्ट्रेशन) एम रमेश के नेतृत्व में स्पेशल ऑपरेशन टीम ने अबूझमाड़ के बारूदी सुरंगों से भरे जंगलों में माओवादियों को ढूंढा।

अंतिम सांस गिन रहा नक्सलवाद

गढ़चिरौली पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक, जिले में नक्सलवादियों की संख्या कम हो गई है। अब सिर्फ 30 हथियारबंद कैडर और 15 लॉजिस्टिक्स और सप्लाई टीम के सदस्य ही बचे हैं। भामरागढ़ दलम और कंपनी नंबर 10 ही इलाके में बचे दो अहम गुरिल्ला संगठन हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सुरक्षा बलों ने इनमें से एक संगठन को लगभग खत्म कर दिया है। अब गढ़चिरौली में नक्सलवादी अंतिम सांस गिन रहे हैं।

नक्सलवाद खत्म करने में अभी वक्त

गढ़चिरौली के बारे में विशेष जानकारी रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश तिवारी का कहना है कि सुरक्षा बलों के दम पर नक्सलवाद को दबाया तो जा सकता है, लेकिन उसे पूरी तरह खत्म करने में अभी वक्त लगेगा। इसके लिए उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वैकासिक गतिविधियां लागू करने की जरूरत है। सड़क से लेकर आमजन में शिक्षा की स्थिति को बेहतर करनी होगी। लोगों शिक्षित करना कोई एक दिन का काम नहीं है। उसके लिए समय लगेगा। सरकार जो भी कदम उठा रही है, वह सराहनीय है। विकास भी हो रहा है, लेकिन समय तो लगेगा।
(क्रमश:)

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