नई दिल्ली: दिल्ली अपने दम पर मृतप्राय यमुना को जीवन दे सकती है, बशर्ते इसके फ्लड प्लेन में बायोडायवर्सिटी पार्क की श्रृंखला विकसित की जाए। यमुना नदी की अविरलता और निर्मलता पर काम करने वाले सिटीजन ग्रुप यमुना संसद की अगुवाई में विशेषज्ञों के एक समूह की रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की गई है। दावा है कि यह रिपोर्ट वजीराबाद से कालिंदी कुंज के बीच सर्वेक्षण और करीब दस लाख लोगों से संवाद से मिले इनपुट पर तैयार की गई है। इसमें इस बार की बाढ़ जनित हालात का भी आकलन किया गया है।
People’s initiative for Maily se Nirmal Yamuna…. The Citizen’s Report: A Scientific Perception नाम की रिपोर्ट पुख्ता तौर पर दिल्ली में 20-25 बायोडायवर्सिटी पार्क विकसित करने की वकालत करती है। इसमें हर एक का विस्तार करीब 200 हेक्टेयर में होगा। इसके अंदर की नम भूमियों व जल संग्रहण क्षेत्र में बाढ़ के पानी को अधिकतम रोकना संभव हो सकेगा। फिलहाल यह बर्बाद चला जाता है।
नदी को परिभाषित करते हुए रिपोर्ट बताती है कि Main Channel, बहाव वाला हिस्सा ही नदी नहीं है, जैसा कि हम अमूमन मान लिया जाता है। इसमें Main Channel से एकदम सटा Riparian Zone, जहां पानी तो नहीं होता, लेकिन नमी पूरी रहती है, Active Floodplain, जहां बाढ़ कम आए या ज्यादा, पानी पहुंचना ही है, Old Floodplain, वह हिस्सा, जहां तक ज्यादा बाढ़ आने पर पानी पहुंच जाता है और Embankment, बांध क्षेत्र भी इसमें शामिल है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से किसी एक या दूसरे हिस्से में छेड़छाड़ नदी की सेहत पर असर डालेगी ही। और सर्वे के दौरान 30 किमी में जो साफ दिखा, उसमें हर कदम पर छेड़छाड़ हुई है। कहीं कम है, कमी ज्यादा। वजीराबाद से शास्त्री पार्क लोहे के पुल तक थोड़ा कम है। और आईटीओ पुल से कालिंदी कुंज तक सबसे ज्यादा। बीच का हिस्सा पहले से ज्यादा खराब है और दूसरे से कम। बेदम यमुना से बदबू भी यहीं से उठने लगती है। (रिपोर्ट में पेज नंबर 24-37 पर इसका ब्यौरा है)
बावजूद इस सबके, उम्मीद की रोशनी भी यहीं से दिखती है। बदतर होने के बाद भी जितना कुछ भी बचा है, अगर उसी को पाला-पोसा जा सका तो यमुना दिल्ली में काफी हद तक ठीक हो सकती हैं।

पौधरोपण का विज्ञान
रिपोर्ट पौधरोपण के विज्ञान पर बात करती है। Plantation, पौधरोपण का अपना विज्ञान है और यह हर Ecosystem, पारिस्थितिकी तंत्र का अपना निजी है। यमुना नदी भी इसका अपवाद नहीं है। इसके हिसाब से यमुना के Riparian Zone व Active Floodplain में बड़े पौधे नहीं लगने चाहिए। इनमें मूंज, कुश, झाऊ, नरकुल, पटेरा, पार्स पेलम, पार्सपेलेडियम सरीखे पौधों का रोपण हो। नम भूमियों के साथ मिलकर यह नदी की किडनी का काम करते हैं। बड़े पेड़ पक्षियों के बसेरे के लिए इक्का-दुक्का ही लगने चाहिए। इनकी सही जगह Old Floodplain व Embankment है।
सर्वेक्षण के दौरान यह देखा गया कि वजीराबाद से कालिंदी कुंज के बीच यमुना नदी के साथ पौधरोपण इस तरह नहीं हो रहा है। नदी के मेन चैनल से सटे Riparian Zone तक में पीपल, अर्जुन व जामुन लग रहे हैं। लगाने का तरीका भी ऐसा कि उनका बचना बहुत मुश्किल है। उन पौधों का तो कोई नामो-निशान नहीं, जो यहां लगने चाहिए।
वजीराबाद से कालिंदी कुंज के 30 किमी के हिस्से में कहीं-कहीं नरकुल व मूंज नजर आई। घास भी कहीं-कहीं दिखी, लेकिन यह सब खुद पनपे हैं। इनको भी किसी ने लगाया नहीं है। यह अपने आप उगे हैं। सर्वे रिपोर्ट बताती है कि अगर इनको तरीके से लगाया जाए, तो काम बड़ा हो सकता है। यह फ्लड प्लेन में न सिर्फ लंबे वक्त तक बचे रहेंगे, बल्कि यमुना नदी की इकोलॉजी के लिए भी फायदेमंद होगा।
तीन हिस्सों में किया सर्वे
यमुना संसद की अगुवाई में एक्सपर्ट समूह के साथ दिल्ली के करीब सौ लोगों ने जनवरी-फरवरी 2023 में वजीराबाद से कालिंदी कुंज के बीच यमुना फ्लड प्लेन का मेन चैनल के साथ पैदल चलकर सर्वेक्षण किया। सबसे पहले वजीराबाद से शास्त्री पार्क लोहे का पुल तक लोग चले। फिर, शास्त्री पार्क से आईटीओ ब्रिज और आखिर में आईटीओ से कालिंदी कुंज तक का सर्वेक्षण हुआ।
इसमें मेन चैनल से बांध तक नदी के अलग-अलग हिस्सों और उनके उतार-चढ़ाव, वहां पैदा होने वाली वनस्पतियों, जल स्रोतों, इसमें हुए अतिक्रमण आदि का ब्योरा जुटाया गया। विस्तार से इसका जिक्र रिपोर्ट में है। रिपोर्ट से पता चलता है कि यमुना नदी के हालात बेहद खराब हैं, लेकिन नाउम्मीद नहीं हुआ जा सकता। नदी ने बीच-बीच में खुदी अपने पुनर्जीवित होने की रोशनी भी दिखाई। विषम हालात में भी कई जगह यमुना फ्लड प्लेन की सदियों पुरानी स्थानीय वनस्पतियां दिखीं। इनको पाल-पोसकर, इनके सहारे ही आगे बढ़ने के विकल्प को विशेषज्ञ उपयुक्त मान रहे हैं।

दिल्ली के बायोडायवर्सिटी मॉडल का भी अध्ययन
विशेषज्ञ टीम ने इस बीच यमुना की अविरलता और निर्मलता से जुड़े एनजीटी के फैसलों और शोध रिपोर्ट पर भी गौर किया। दिवंगत मनोज मिश्र की एक याचिका पर एनजीटी का 2015 में फैसला आया। “मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार योजना 2017” नाम के इस फैसले में ट्रिब्यूनल ने कहा है कि बायोडायवर्सिटी पार्क का मॉडल कारगर होगा। इसे समझने के लिए टीम ने दिल्ली में स्थित देश के पहले और मॉडल के तौर पर विकसित यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क का भी दौरा किया। लंबी चर्चा में देश में इस कॉन्सेप्ट के जनक नामचीन पर्यावरणविद् प्रो. सीआर बाबू व उनकी टीम से समझने की कोशिश की गई कि यह मॉडल यमुना को अविरल व निर्मल करने में कितना कारगर हो सकता है।
यमुना संसद की निर्मल व अविरल यमुना की मुहिम
यमुना संसद के संयोजक रविशंकर तिवारी की अगुवाई में दिल्ली के अलग-अलग तबकों के लोगों ने दिल्ली में अपने स्तर पर यमुना नदी को पुनर्जीवित करने की संभावना की तलाश नवंबर 2022 से शुरू हुई। बतौर विशेषज्ञ तकनीकी पहलुओं के मार्गदर्शन का जिम्मा उस वक्त यमुना जिए अभियान के मनोज मिश्र ने लिया। मार्च में बीमार होने से पहले तक वह सक्रिय तौर पर जुड़े भी रहे। उनकी ही सलाह पर जनवरी-फरवरी 2023 में यमुना नदी के उस हिस्से के फ्लड प्लेन का जमीनी स्तर पर मुआइना करने का फैसला लिया गया, जहां यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित होती हैं।
विमर्श के शुरुआती दौर में यह भी तय हुआ कि यमुना जी की पीड़ा हर दिल्लीवासी तक पहुंचाई जाए। समाज अपने स्तर पर क्या कर सकता है, यह तय करने से पहले एक बार दिल्ली के लोगों को यमुना के किनारे लाया जाए। इसमें एक तो पदयात्रा थी, जिसमें अलग-अलग विधाओं के करीब 100 लोग नदी के फ्लड प्लेन में मुख्य धारा के साथ चलें। और दूसरा, जिस हिस्से में यात्रा हुई है, उसमें मानव श्रृंखला बनाई जाए। पहला काम जनवरी-फरवरी में पूरा किया गया। इसके बाद दिल्ली के लोगों तक बात पहुंचाई गई। संवाद दो-तरफा हुआ और लोग जुड़ते गए। चार महीने के सघन अभियान का नतीजा रहा कि विश्व पर्यावरण दिवस के एक दिन पहले 4 जून 2023 की सुबह वजीराबाद से कालिंदी कुंज तक मानव श्रृंखला बन सकी।
इस बीच यमुना संसद को एक अपूरणीय क्षति भी हुई। जिस वक्त 4 जून को दिल्लीवासी यमुना जी के तट पर एक-दूसरे का हाथ थामे खड़े थे, उसी समय मनोज मिश्र जी के निधन की दुखद खबर मिली। नियति को शायद यह मंजूर नहीं था कि यमुना जी के लिए अपना जीवन खपा देने वाला योद्धा यमुना जी को अविरल व निर्मल देख सके, लेकिन यमुना संसद ने उनके सपने को पूरा करने की तट पर ही शपथ ली।
इसके बाद दिल्ली के संसाधनों से यमुना जी को साफ करने से जुड़ी रिपोर्ट पर काम शुरू हुआ। इसमें प्रो. राम कुमार सिंह और उनकी टीम और बुंदेलखंड में पांच नदियों को पुनर्जीवित करने वाले डॉक्टर संजय सिंह अपनी टीम के साथ लगे। व्यस्तताओं के बीच पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा, जलपुरूष राजेंद्र सिंह और डीयू के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर शशांक ने भी बीच-बीच में उपयोगी सलाह दी। गंगा, यमुना की यात्रा और नर्मदा की परिक्रमा कर चुके विचारक केएन गोविंदाचार्य ने अपने अनुभव से रिपोर्ट को पुष्ट किया। नदी संवाद के संयोजक जीव कांत झा का पूरा सहयोग रहा। आईआईटी एल्युमिनाई काउंसिल के अध्यक्ष रवि शर्मा और उनकी टीम ने भी रिपोर्ट में उपयोगी सलाह दी। इस बीच प्रो. सीआर बाबू, डॉ. फैयाज खुदसर और उनकी टीम से भी नियमित संवाद बना रहा।
यमुना में हर तरह की गड़बड़
दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के एनवाॅयरमेंट साइंस के प्रोफेसर राम कुमार बताते हैं कि वजीराबाद से कालिंदीकुंज तक यमुना में छेड़छाड़ नदी की रेजिलिएंट (पुनःस्थापन) कैपेसिटी से अधिक हो रही है। और दोहन दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बीच के हिस्सा में आईटीओ पूल से कालिंदी कुंज तक छेड़छाड़ नदी को नाले में बदलते हुए मृत कर रहा है। इसे खुली आंखों से देखा भी जा सकता है।
और जो पौधरोपण के विज्ञान में गड़बड़ आई है, उससे नदी की अपनी शोधन क्षमता भी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। असल में, हर नदी को रेजिलिएंस (पुनःस्थापन) के लिए अपना विशिष्ठ (specific) प्यूरीफायर होता है। इसमें जलीय पौधे (macrophyte) अहम भूमिका निभाते हैं। पीपल, अर्जुन जामुन आदि लगाए जा रहे पौधे जलीय पौधे नहीं है। साथ ही इनकी छाया से यमुना में purifier का काम करने वाले जलीय पौधे और phytoplankton में भी कमी आती है।
इस तरह रिपोर्ट हुई तैयार
डॉ. संजय सिंह बताते हैं कि रिपोर्ट एक तरह से रायशुमारी का नतीजा है। छोटे से समूह ने जो सर्वे किया, उस पर चार महीने तक दिल्ली के लोगों से संवाद हुआ। छोटे-बड़े समूहों में करीब दस लाख लोगों से बात हुई। इसमें जो साझी समझ बनी उसके हिसाब से पौधरोपण बेहतर विकल्प है। व्यक्ति और समाज इसे कर भी सकता है। एक्सपर्ट एनजीटी के आदेश का संदर्भ देते हुए बायोडायवर्सिटी पार्क विकसित करने के पक्ष में थे। दोनों में कोई विरोध भी नहीं है। नदी में वैज्ञानिक तरीके से किए गए पौधरोपण से विकास बायोडायवर्सिटी पार्क का ही होगा। चार जून की मानव श्रृंखला के बाद विशेषज्ञों ने पल्ला से कालिंदी कुंज के बीच फ्लड प्लेन का अध्ययन किया गया। मौजूदा स्थिति में कहां पार्क बन सकता है, कहां वेटलैंड समेत दूसरे जल स्रोत के बनने की गुंजाइश है, इस सब पर बात हुई। यमुना की इस बार बाढ़ ने भी इसमें मदद की। पानी जहां तक गया और उतरने के बाद फ्लड प्लेन में कहां-कहां ठहरा, इससे पार्क के लिए संभावित जगहों की पहचान की गई है। रिपोर्ट में सारा जोर इसी पर है कि समाज यमुना के शुद्धिकरण के लिए क्या कर सकता है।

आगे की राह
यमुना संसद के संयोजक रविशंकर तिवारी बताते हैं कि इस रिपोर्ट की हार्ड और सॉफ्ट कापी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, पर्यावरण मंत्री, जल संसाधन मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री को भेजी गई है। वहीं, समाज को जागरूक करने के लिए अलग-अलग तरीके से काम चल रहा है। इसी कड़ी में पिछले साल भाई दूज के दिन से मैं खुद भिक्षाटन महायज्ञ पर हूं। इसमें दिल्ली-एनसीआर के साथ ब्रज क्षेत्र तक के लोगों से इस मुहिम में तन, मन, धन या तीनों से जोड़ रहा हूं। बीते करीब सात महीने का अनुभव फलदायी दिख रहा है। इसमें अभी विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर 04 जून, 2025 दिल्ली के कमानी ऑडीटोरियम में यमुनोत्सव का आयोजन होने जा रहा है। इसमे पूरी दिल्ली के लोग शिरकत करेंगे।
क्या है यमुना संसद? क्या है यमुना संसद का उद्देश्य? क्यों आना है हर दिल्ली वासी को 4 जून को यमुना किनारे?
— Yamuna Sansad (यमुना संसद) (@Loksansad_india) May 9, 2023
➡ ऐसे कई सवाल आप सबके मन में होंगे, इन सभी सवालों का जवाब दे रहे हैं लोक संसद के संयोजक @NathRaviShankar रविशंकर तिवारी।
देखिए यह पूरा वीडियो: https://t.co/7TcZPxqOvB pic.twitter.com/TIop09PuQZ