नई दिल्ली: हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष स्थान है। ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यह यात्रा शुरू होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ 9 दिनों की रथ यात्रा पर निकलते हैं। पुरी को भगवान जगन्नाथ की प्रमुख लीला स्थली माना जाता है, जिससे इस यात्रा का महत्व और बढ़ जाता है।
गुंडिचा माता मंदिर: भगवान जगन्नाथ का मौसी का घर
पुरी के जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किमी दूर गुंडिचा मंदिर स्थित है, जो कालिंग वास्तुकला में बना है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा को समर्पित है। मान्यता है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा सात दिनों तक इस मंदिर में विश्राम करते हैं। कहा जाता है कि उनकी मौसी गुंडिचा उनका स्वागत पीठादो और रसगुल्ला जैसे व्यंजनों के साथ करती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, इस मंदिर का नाम राजा इंद्रद्युम्न की रानी गुंडिचा के नाम पर रखा गया। रानी गुंडिचा ने विश्वकर्मा द्वारा बनाई गई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को देखकर प्रभावित होकर अपने पति से इस मंदिर के निर्माण और रथ यात्रा शुरू करने का आग्रह किया था। एक और मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ मंदिर के निर्माण से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने गुंडिचा मंदिर में ठहरने का वचन दिया।
गुंडिचा माता कौन हैं?
गुंडिचा माता राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं, जिन्होंने पुरी में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। गुंडिचा मंदिर रथ यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जिसके कारण इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
हेरापंचमी पर्व: लक्ष्मी का क्रोध और प्रेम
हेरापंचमी रथ यात्रा के पांचवें दिन मनाया जाने वाला एक विशेष उत्सव है। “हेरा” का अर्थ “देखना” और “पंचमी” का अर्थ पांचवां दिन है। किंवदंती के अनुसार, भगवान जगन्नाथ बीमारी से उबरने के बाद बलभद्र और सुभद्रा के साथ अपनी पत्नी महालक्ष्मी की अनुमति से यात्रा पर निकलते हैं। उन्होंने वादा किया था कि दो दिन में लौट आएंगे, लेकिन जब वे नहीं लौटे, तो पांचवें दिन महालक्ष्मी क्रोधित होकर उन्हें देखने गुंडिचा मंदिर पहुंचती हैं।
क्रोध में महालक्ष्मी भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष का एक हिस्सा तोड़ देती हैं। इस दौरान उनके और जगन्नाथ के सैनिकों के बीच प्रतीकात्मक युद्ध भी होता है। इसके बाद वे हेरा गोहीरी मार्ग से वापस अपने मंदिर लौट जाती हैं। यह अनुष्ठान हेरापंचमी के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान और महालक्ष्मी के बीच प्रेम और क्रोध की अनूठी कहानी को दर्शाता है।
मरजन की प्रथा: मंदिर की शुद्धता का प्रतीक
मरजन, जिसे गुंडिचा मरजन भी कहा जाता है, रथ यात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा मंदिर की सफाई का अनुष्ठान है। इस परंपरा में भक्त मंदिर को पूरी तरह साफ करते हैं, जो भगवान जगन्नाथ के स्वागत के लिए हृदय और आत्मा की शुद्धता का प्रतीक है। यह प्रथा मंदिर को भगवान की दिव्य उपस्थिति के लिए तैयार करती है। जगन्नाथ रथ यात्रा और गुंडिचा मंदिर का यह पावन पर्व भक्ति, परंपरा और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम है, जो हर साल लाखों भक्तों को एकत्र करता है।