नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव की चर्चा सीमांचल के बिना हमेशा अधूरी रहेगी। बीते चुनाव में चार जिलों किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया के नतीजे ने विपक्षी महागठबंधन और सत्तारूढ़ राजग के तमाम समीकरण को उलझा दिया था। तब AIMIM ने इस क्षेत्र की 24 में से 5 सीटों पर जीत हासिल कर सीमांचल के साथ ही सूबे की मुस्लिम सियासत में नई हलचल पैदा कर दी थी। इसके केंद्र में मुसलमानों के असली रहनुममा का दावा करने वाले AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी थे।
हालांकि तब और अब के औवेसी के व्यक्तित्व और छवि में बड़ा अंतर आया है। खासतौर पर पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद पाकिस्तान के खिलाफ सेना के ऑपरेशन सिंदूर के मामले में ओवैसी की मुखरता के उनके विरोधी भी कायल हुए हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि देश की दक्षिणपंथ की सियासत में ओवैसी के प्रति नकारात्मकता कम हुई है, मगर शुरू से ही ओवैसी और उनकी पार्टी को BJP की बी टीम बताने वाले सेक्युलर खेमे में उनके प्रति सतर्कता बढ़ गई है। सवाल है कि ओवैसी का यह नया अवतार बिहार की सियासत में क्या गुल खिलाएगा?
बीते चुनाव में सीमांचल की चर्चा
सीमांचल के चार जिलों में विधानसभा की 24 सीटें हैं। इस क्षेत्र की 12 सीटों पर मुसलमानों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है। यही कारण है कि बीते पांच विधानसभा चुनाव में मुसलमानों के पैरोकार दल की छवि बनाने में यह क्षेत्र हमेशा चर्चा में रहा है। मुकाबला हमेशा NDA और विपक्षी महागठबंधन के बीच रहा है। बीते चुनाव में इस क्षेत्र की पांच सीटों पर जीत हासिल कर AIMIM ने नई हलचल मचाई थी। विपक्षी महागठबंधन को 10 और NDA के हिस्से 9 सीटें आई थी। तब विपक्षी महागठबंधन कुछ सीटों के अंतर से बहुमत से दूर रह गया था। हालांकि बाद में AIMIM के पांच में से चार विधायक राजद में शामिल हो गए थे।

अब क्यों है ओवैसी की चर्चा
पांच साल में बिहार की सियासत में कई बदलाव हुए हैं। खासकर जिस ओवैसी की छवि के सहारे उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीत कर सियासी पंडितों का चौंकाया था, वही ओवैसी अब नए रंग और नए रूप में हैं। ओवैसी पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर मामले में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख के कारण चर्चा में हैं। इस दौरान ओवैसी ने न सिर्फ भारत सरकार का समर्थन किया, बल्कि मुस्लिम आबादी के मुखिया के तौर पर उभरे। इस नई छवि के कारण ओवैसी की दक्षिणपंथ की राजनीति करने वालों में सम्मान करने वालों में सम्मान बढ़ा है, मगर धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले दलों में उनके प्रति अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है।
ओवैसी के दांव से हलचल
ऑपरेशन सिंदूर के समर्थन और पहलगाम आतंकी हमला मामले में मुखर भूमिका निभाने के कारण पूरे देश में चर्चा में आए ओवैसी की पार्टी ने सूबे में विपक्षी महागठबंधन से चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए संपर्क साधा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल ईमान ने पत्र लिख कर महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई है। RJD के वरिष्ठ नेता मनोज झा ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। AIMIM मुसलमानों में यह संदेश देना चाहती है कि वह BJP को हराने के लिए महागठबंधन के साथ आना चाहती है। उसके इस दांव के कारण ओवैसी को BJP की बी टीम होने का आरोप लगाने वाले विपक्षी महागठबंधन में हलचल है।
राजद पहले से कर रहा है काट की तैयारी
विपक्षी राजद नहीं चाहती कि उसके रहते कोई सूबे में अल्पसंख्यकों का रहनुमा बने। कारण राजद का सारा गुणा गणित 15 फीसदी यादव और 17 फीसदी मुसलमानों पर है। उसे लगता है कि अगर AIMIM को महागठबंधन में शामिल किया गया तो उसके अकेले मुसलमानों का रहनुमा होने के दावे पर सवालिया निशान लगेंगे। यही कारण है कि जब AIMIM ने बाहुबली माने जाने वाले दिवंगत सांसद शहाबुद्दीन पर डोरे डालना शुरू किया तो राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सलाह पर बीते साल उनके पुत्र ओसामा और पत्नी हिना शहाब को पार्टी की सदस्यता दिलाई गई।
कांग्रेस के साथ रह चुके हैं ओवैसी
केंद्र और संयुक्त आंध्रप्रदेश में कांग्रेस शासनकाल के दौरान ओवैसी पार्टी के साथ रह चुके हैं। दोनों दलों के बीच दूरी आंध्रप्रदेश के बंटवारे के कारण हुई। UPA-2 के दौरान जब आंध्रप्रदेश को दो हिस्सों में बांटने का फैसला हुआ तब ओवैसी ने यूपीए से किनारा कर लिया। इसके बाद पार्टी ने अपने विस्तार पर ध्यान केंद्रित करते हुए बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश शुरू की।