गया: बिहार में चुनावों की तारीख तय होने के ऐन पहले एनडीए के दो प्रमुख धड़ों लोजपा-आर और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी ने राजनीतिक परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है। खासकर लोजपा आर के नेता चिराग पासवान और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के हालिया बयान आम अवाम के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। कहने की जरूरत नहीं कि चिराग और मांझी के बीच चल रहे लफ्जों के तीर से एनडीए में बेचैनी है तो इंडिया गठबंधन की पार्टियां मजे ले रही हैं।
कैसे शुरू हुई बयानबाजी
बात चिराग पासवान के उस बयान से शुरू हुई, जिसमें उन्होंने कहा था कि बिहार उन्हें बुला रहा है। ऐसा कहकर उन्होंने बिहार में होने वाले चुनावों के दौरान खुद भी किसी सीट से उम्मीदवार बनने का संकेत दिया था। कहा तो यहां तक जा रहा है कि शाहाबाद क्षेत्र में उनके लिए कोई सीट भी ढूंढी जा रही है। निर्वाचित सांसद और केंद्र में मंत्री रहते हुए चिराग पासवान के ऐसे बयानों से यह भी अटकलें लगनी शुरु हो गईं कि उनकी नजर सीएम की कुर्सी पर है।
हालांकि, चिराग पासवान या उनकी पार्टी के किसी जिम्मेवार नेता ने ऐसा दावा नहीं किया है। चिराग पासवान भी कई दफे यह कहते हुए सुने गए हैं कि वह नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेंगे। चिराग के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए जीतन राम मांझी ने भी कटाक्ष भरे लहजे में कह दिया कि विधायक क्या, वह चाहें तो नगर निगम का चुनाव भी लड़ सकते हैं। किसने रोका है। वैसे चिराग को उन्होंने अनुभव का कच्चा भी कह दिया था।
जमुई से चला जुमले का तीर
इस पर जुमले का तीर जमुई से चला और चिराग के बहनोई तथा सांसद अरुण भारती ने यह कहते हुए जीतन राम मांझी पर हमला बोला कि बिल्कुल चिराग को फ्लोर टेस्ट के पूर्व इस्तीफा देने का अनुभव नहीं है। इस बयान के जरिए उन्होंने वर्ष 2015 की उस राजनीतिक घटना की याद दिलाई, जिसमें जीतन राम मांझी ने सदन में बहुमत साबित करने के पूर्व ही इस्तीफा दे दिया था।
सारी कवायद के पीछे क्या है
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि सारी कवायद एनडीए के घटकों के बीच विधानसभा चुनावों के पूर्व सीट शेयरिंग को लेकर है। दलित राजनीति के दोनों प्रमुख चेहरे चिराग और जीतन राम मांझी ज्यादा से ज्यादा सीटें झटकने के चक्कर में हैं। राजनीतिक कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि यदि चुनावों में नीतीश कमजोर होते हैं, या उनकी सेहत को लेकर कोई समस्या खड़ी होती है तो फिर मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में चिराग की दावेदारी मजबूत हो।
वर्ष 2020 में भी चिराग पासवान ने सूबे की बड़ी कुर्सी हासिल करने की महत्वाकांक्षा को जगजाहिर करते हुए बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट का जुमला भी उछाला था। दूसरी तरफ जीतन राम मांझी कई दफे कह चुके हैं कि उनके बेटे संतोष सुमन में क्या कमी है। वह भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की सारी सलाहियत रखता है। वर्तमान में संतोष राज्य सरकार में मंत्री हैं।
7 सीटों पर हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा लड़ी थी चुनाव
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि चार पर जीत मिली थी। दूसरी तरफ केंद्र में एनडीए का हिस्सा रहे चिराग पासवान ने बिहार में एनडीए गठबंधन से अलग होकर लोजपा-आर की ओर से 137 सीटों पर उम्मीदवार उतारा था, भले ही यह दल कोई कामयाबी हासिल नहीं कर सका, मगर जदयू की बुरी हार के लिए इसे ही जिम्मेवार माना जाता है। चिराग के कारण ही जदयू 45 सीटों पर सिमट गई थी। अब बदले हुए माहौल में चिराग नीतीश के प्रति नरम हैं।
चिराग-मांझी की क्या है अदावत
राम विलास पासवान और उनके उत्तराधिकारी तथा पुत्र चिराग पासवान से मांझी की अदावत नई नहीं है। वर्ष 2018 में तब राम विलास पासवान के दल लोजपा के महागठबंधन में शामिल होने की बात पर जीतन राम मांझी ने मुखर विरोध किया था। महागठबंधन के नेताओं को मांझी यह समझाने में कामयाब हो गए थे, कि राम विलास के आने से महागठबंधन कमजोर होगा। अक्तूबर 2020 में जब रामबिलास पासवान के निधन के साथ लोजपा दो धड़ों में बंट गई तो मांझी की हमदर्दियां पशुपति पारस के साथ दिखने लगी। अक्तूबर 2024 में तो जीतन राम मांझी ने राम विलास पासवान के सच्चे उत्तराधिकारी के रूप में पशुपति पारस का नाम लिया था। ताजा बयानों से मतभेद और चौड़े हुए हैं।