पटना: आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह के जनसुराज के सिंबल से मैदान में उतरने की चर्चा तेज है। वह नालंदा जिले के अस्थावां विधानसभा से दावेदारी कर सकती हैं। दिलचस्प यह कि नालंदा जिला सीएम नीतीश कुमार का गढ़ माना जाता है। जनसुराजआरसीपी के सहारे नीतीश के गढ़ में सेंधमारी करने की फिराक में हैं।
सियासी चर्चा इस बात की भी है कि आरसीपी सिंह चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि उनकी छोटी बेटी उम्मीदवार होंगी। उनको जिस अस्थावां सीट से उतारने के कयास हैं, वह बिहार के नालंदा जिले का एक प्रखंड है।
अस्थावां में सीएम नीतीश कुमार का राजनीतिक असर स्पष्ट रूप से दिखता है। 2001 के बाद से उनकी पार्टी यहां कभी नहीं हारी है। समता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) ने इस सीट पर लगातार छह बार जीत दर्ज की है। दिलचस्प यह कि आज तक अस्थावां विधानसभा में भाजपा और राजद कोई असर नहीं डाल सकती है।
जदयू के जितेन्द्र कुमार अब तक इस सीट से पांच बार जीते हैं। 2005 से चुनावी राजनीति में सक्रिय जदयू के जितेन्द्र कुमार के पिता अयोध्या प्रसाद ने भी 1972 और 1980 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से जीत दर्ज की थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में जितेन्द्र कुमार ने राजद के अनिल कुमार को 11,600 वोटों से हराया।
जानिए आरसीपी सिंह को
आरसीपी की गिनती कभी जदयू में नीतीश कुमार के बाद नंबर दो ओहदा रखते थे। वह पार्टी के नीति निर्धारक रहे हैं। नीतीश ने आरसीपी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे सर्वसम्मति से तमाम सदस्यों ने समर्थन किया था। नीतीश कुमार के कई अहम फैसलों में आरसीपी सिंह की अहम भूमिका रही है। आरसीपी सिंह ने 17 साल तक नीतीश कुमार के साथ काम किया है। वह नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के निवासी हैं।
पार्टी में अनबन होने के बाद जदयू अगस्त 2022 से अलग होकर मई 2023 में भाजपा में शामिल हुए। जब जदयू ने राजद से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाई तो आरसीपी का कद घट गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट पाने की कोशिशें भी विफल रहीं। इसके बाद आरसीपी सिंह ने आप सबकी आवाज नाम से अपनी पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया। बाद में आरसीपी ने अपनी पार्टी का जन सुराज में विलय कर दिया। पिछले तीन साल में देखें तो पहले जेडीयू, फिर बीजेपी और आसा के बाद अब जन सुराज आरसीपी सिंह की चौथी पार्टी है।