पटना: यह खबर सन ऑफ मल्लाह कहे जाने वाले विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संरक्षक मुकेश सहनी से जुड़ी है। कभी मुकेश सहनी के निजी सहायक रहे प्रदीप निषाद ने अपनी पार्टी बना ली है। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम विकास वंचित इंसान पार्टी (VVIP) रखा है।
प्रदीप निषाद का दावा है कि उनकी पार्टी में हर जाति, धर्म और संप्रदाय के लोगों की पूर्ण सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी। उन्होंने कहा कि खासकर निषाद समाज की सभी उपजातियों को एक सूत्र में बांधकर उनके वाजिब हक और अधिकार दिलाने की दिशा में पार्टी काम करेगी। युवाओं और महिलाओं को नेतृत्व में बड़ी भूमिका दी जाएगी।
प्रदीप निषाद ने कहा कि वह बिहार की ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। उनकी करीब 70 फीसदी उम्मीदवार निषाद समुदाय से होंगे। मुकेश सहनी का नाम लिए बिना प्रदीप निषाद ने कहा कि जब समाज से निकले नेता सत्ता में पहुंचे तो वह समाज को भूल गए। इसकी जगह उन्होंने अपने परिवार के लिए काम किया।
कहीं एनडीए के साथ तो नहीं जाएंगे प्रदीप निषाद
मुकेश सहनी अभी महागठबंधन के साथ हैं। विधानसभा चुनाव में 60 सीटों की मांग करते हुए उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद भी देने की बात कही है। वह मल्लाह समुदाय के पूरे समर्थन का दावा करते रहे हैं। अब इसी समुदाय की नई पार्टी गठित होने से पहली चुनौती मुकेश सहनी की है। प्रदीप निषाद खुद भी पूरे समुदाय का हितैषी होने का दावा कर रहे हैं। इससे मुमकिन है कि मल्लाह वोटरों में बिखराव आए। वहीं, अगर प्रदीप निषाद एनडीए के साथ जाते हैं तो उनके दावे में ज्यादा मजबूती आएगी।
कौन है प्रदीप निषाद?
वीवीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप निषाद मल्लाह समाज से आते हैं। यह उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। पहले यह कभी मुकेश साहनी के निजी सहायक हुआ करते थे। लेकिन 2022 के उत्तर प्रदेश की चुनाव के वक्त दोनों में दूरियां हो गई थी और अब बिहार विधानसभा चुनाव में प्रदीप निषाद सियासी मैदान में अपना दम दिखाने वाले हैं।
क्या मुकेश सहनी के लिए घातक साबित होंगे प्रदीप ?
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी और वीवीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप निषाद दोनों स्वजातीय है। दोनों मल्लाह समाज से आते हैं। ऐसे में पहले से बिहार की राजनीति में सक्रिय मुकेश सहनी के लिए प्रदीप विधानसभा चुनाव में घातक साबित हो सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में मल्लाह जाति के वोटरों को साधेंगे। इसका असर होने वाला विधानसभा में दिखेगा।
बेइज्जती का बदला लेने के लिया किया पार्टी का गठन
बिहार में सियासी चर्चा यह भी है कि प्रदीप ने अपनी पार्टी का गठन अपने साथ हुई बेइज्जती का बदला लेने के लिए किया है। दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वह मुकेश सहनी के साथ काफी सक्रिय भूमिका में थे, लेकिन एक मंच पर मुकेश सहनी के करीबी नेता के जरिए विवाद गया था। उस वक्त से प्रदीप निषाद मुकेश सहनी से अलग हो गए थे।
निषादों की आबादी करीब 2.6 फीसदी
बिहार की राजनीति में मल्लाह समुदाय ने पिछले कुछ वर्षो में अलग बनाई है। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल इस समाज की आबादी करीब 34 लाख से ज्यादा है। यह प्रदेश की कुल आबादी का 2.6 फीसदी है। बिहार में मल्लाहों को कई उपनामों से जाना जाता है। इनमें निषाद, केवट, नोनिया आदि आते हैं।
बिहार के राजनीति में निषाद समाज बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। पिछले कुछ सालों से सन ऑफ मल्लाह के नाम से मशहूर मुकेश सहनी जैसे नेताओं ने मल्लाह समुदाय के हितों को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक मंच बनाया है। इसके साथ ही कई ऐसे बड़े नेता है बड़े राजनीतिक पार्टियों में बड़े पद पर काबिज है। कई निषाद नेता समाज को अनुसूचित जाति में शामिल होने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है।
जिसकी तरफ रुख, उसका पड़ला भारी
बिहार के राजनीति में एक-एक वोट का काफी महत्व है। राजनीतिक दल इसे बखूबी से समझते भी हैं। तभी बिहार की कुल आबादी में करीब 2.6 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले निषाद समुदाय को भी कोई अनदेखा नहीं कर पाता। वह इसलिए भी कि यह कई विधानसभाओं के नतीजे में इनकी निर्णायक रही है।
मुकेश सहनी का कितना असर है?
मुकेश सहनी बिहार के राजनीतिक में पिछले एक दशक से सक्रिय हैं। 2022 में बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री भी बने। ऐसे में उनकी पकड़ अपने जाति पर पकड़ है। उनकी रैलियों में अच्छी-खासी उमड़ती है। 2015 विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रचार करने वाले मुकेश सहनी फिलहाल महागठबंधन के हिस्सा है। ऐसे में वे लगातार बीजेपी के निशाने पर रहते विगत दिनों पहले ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने मुकेश सहनी को निषाद समाज का ठग बताया था। और मुकेश सहनी की सियासत पर चोट पहुंचाने के लिए भाजपा 10 जुलाई को पटना के बापू सभागार में बड़े स्तर राज्यस्तरीय मछुआरा सम्मेलन भी आयोजित करने जा रही है।