पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। इसी कड़ी में बृहस्पतिवार पप्पू यादव का 100 सीटों का दावा आग में घी डालने जैसा हो जाता है। हालांकि पप्पू यादव महागठबंधन और कांग्रेस का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उनका बयान काफी मायने रखता है।
सीधे तौर पर बात करें तो कांग्रेस के इशारे पर पप्पू यादव कांग्रेस की भाषा बोल रहे हैं। पप्पू यादव ने कहा कि इंडिया अलायन्स में कांग्रेस सबसे बड़ा घटक दल है। हमारी मांग है कि कांग्रेस कम से कम 100 सीटों पर चुनाव लड़े। वो भी मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्र मे ज्यादा सीटें चाहिए।
कांग्रेस नेता के बयान से तेजस्वी असहज
पप्पू यादव के बयान से पहले बिहार कांग्रेस नेता किशोर कुमार झा के एक बयान ने सियासी भूचाल ला दिया था। किशोर कुमार झा ने कहा था की राजद की आदत रही है कि वह हमेशा सीटों का मामला उलझाए रहता है। अंतिम समय में अपने मत के अनुसार कांग्रेस के मत्थे कमजोर सीटें थोप देता है। इससे कांग्रेस को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि जब पार्टी दिल्ली में अकेले चलने का निर्णय ले सकती है तो बिहार में भी उसे संकोच नहीं करना चाहिए।
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तेजस्वी के सीएम उम्मीदवारी पर सवाल
एक तरफ जहां एनडीए ने यह साफ कर दिया है कि इस साल होने वाला विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। वहीं, महागठबंधन में तलवार खिंचती नजर आ रही है। एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी ने तेजस्वी के सीएम फेस पर कांग्रेस ने सवाल उठाया है तो वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल ने यह साफ कर दिया है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा।
दबाव की राजनीति काम करेगी, स्ट्राइक रेट नहीं
अपने वर्चस्व की चिंता में राजद अगर स्ट्राइक रेट की दुहाई देता है तो वामदलों का प्रदर्शन आड़े आ जाता है। महत्वाकांक्षी वीआइपी तो 60 सीटों के साथ उप मुख्यमंत्री का पद भी मांग रही। कांग्रेस को कम-से-कम 70 सीटें चाहिए। यह संख्या राजद के गणित को गड़बड़ा देती है, जो स्वयं 150 से अधिक सीटों पर लड़ना चाह रहा। अभी राजद का सबसे विश्वस्त सहयोगी माले ही है, जबकि लालू कभी कांग्रेस को हाफ और वामदलों को साफ करने का संदेश दिया करते थे। अब पप्पू यादव भी तेजस्वी को अहंकारी राजनीति छोड़ एक कदम पीछे हटने की राय दे रहे।