Bihar Election: हर बार बदलता पालीगंज के भाग्य विधाता का मन

बिहार की पाटलिपुत्र लोक सभा की छह विधानसभाओं में से एक पालीगंज का अपना मिजाज है। यहां के भाग्यविधाता का मन हर विधानसभा चुनाव में बदल जाता है। मतदाताओं का मन टटोलती राहुल कुमार की रिपोर्ट...

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नई दिल्ली: कई सियासी दिग्गजों की भाग्य निर्माता पालीगंज विधानसभा पाटलिपुत्र लोकसभा के छह विधानसभा में से एक है। दो दिग्गजों नेताओं राम लखन सिंह यादव व चंद्र देव प्रसाद वर्मा की राजनीतिक उठापटक का गवाह भी रहा है।

आजादी के बाद 1952 में पालीगंज विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। 1952 से लेकर 2020 तक कुल 19 बार विधानसभा चुनाव और उपचुनाव हुए। इसमें छह बार कांग्रेस, तीन बार सोशलिस्ट पार्टी, दो बार भाजपा, दो बार भाकपा और जनता दल, एक बार राजद और निर्दलीय ने कब्जा जमाया है।

1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राम लखन सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी। जबकि 2020 चुनाव में इस सीट पर भाकपा माले के संदीप सौरभ ने जीत का परचम लहराया। 1996 में पहली बार भाजपा का खाता हुआ और जनार्दन शर्मा यहां से विधायक बने। वहीं, वीराना सिंह यादव के 2000 में जीत दर्ज करने से पहली बार सीट राष्ट्रीय जनता दल के पाले में गई।

दो दिग्गजों में भिड़ंत

पालीगंज विधानसभा हॉट सीट कही जाती है। इस सीट में दो दिग्गज नेताओं की राजनीतिक उठापटक की चर्चा गांव कस्बे में होते रहती है। यहां कांग्रेस से रामलखन सिंह यादव और सोशलिस्ट पार्टी के नेता रहे चंद्रदेव प्रसाद वर्मा के बीच मुकाबला दिलचस्प होते रहा है। दोनों ने पालीगंज विधानसभा सीट से पांच-पांच चुनाव भी जीता और एक दूसरे को बारी-बारी से पटखनी भी देते रहे।

जातीय समीकरण

पालीगंज विधानसभा सीट पर भूमिहार, मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या लगभग बराबर है। 2020 चुनाव के आंकड़ों के अनुसार, इन सबकी हिस्सेदारी 20-20 फीसदी है। यहां से अब तक कुल 19 बार चुनाव हुए, जिसमें सात बार यादव और सात कुशवाहा समुदाय के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। वहीं, चार बार भूमिहार जीते। 1980 में इस विधानसभा में सबसे ज्यादा 81.57 फीसदी मतदान हुआ था।

इतिहास से रहा गहरा नाता

पालीगंज क्षेत्र सोन नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है पालीगंज नाम के पीछे प्राचीन पाली भाषा से लिया गया है, जो बौद्ध ग्रंथों से जुड़ी है। पालीगंज के भारतपुरा गांव में गुलाम वंश, तुगलक, बाबर और अकबर काल के विभिन्न राजवंशों के 1,300 से अधिक प्राचीन सिक्कों की खोज इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है। पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि पालीगंज मध्यकालीन युग में एक समृद्ध सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था।

संभावित उम्मीदवार

पालीगंज विधानसभा के इस बार कई चेहरे हैं। इनकी सक्रियता 2025 बिहार विधान सभा चुनाव के लिए क्षेत्र में देखी जा रही है। भाकपा माले से वर्तमान विधायक संदीप सौरभ एक बार फिर पालीगंज से महागठबंधन से उम्मीदवार हो सकते हैं। वहीं, एनडीए गठबंधन से 2015 में राजद से पालीगंज के विधायक रहे बाद में जदयू में शामिल होकर 2020 विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर थे, जय वर्धन सिंह यादव उर्फ बच्चा यादव यादव भी मैदान में हैं।

जय वर्धन सिंह यादव कांग्रेस के दिग्गज नेता पालीगंज विधानसभा के पांच बार के विधायक रहे राम लखन सिंह यादव के पोते और पूर्व सांसद प्रकाश चंद्र के बेटे है। यहां से जदयू नेत्री पूर्व जिलापरिषद, महिला अयोग्य की सदस्य श्वेता विश्वास भी लगातार जन संपर्क कर रही है। जदयू नेता नंद किशोर कुशवाहा, अशोक वर्मा, रामजनम शर्मा, पूर्व विधायिका उषा विद्यार्थी फ़िलहाल यह सीट महागठबंधन के कब्जे में है और प्रत्याशियों की लम्बी सूची है। फिलहाल अभी किसी दल ने उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।

1952 से अब तक इनके सिर बंधा जीत का सेहरा

1952: राम लखन सिंह यादव (कांग्रेस)

1957: चंद्रदेव प्रसाद वर्मा (सोशलिस्ट पार्टी)

1962: राम लखन सिंह यादव (कांग्रेस)

1967: चंद्रदेव प्रसाद वर्मा (सोशलिस्ट पार्टी)

1969: चंद्रदेव प्रसाद वर्मा (सोशलिस्ट पार्टी)

1972: कन्हाई सीन संगठन (कांग्रेस)

1977: कन्हाई सिंह (निर्दलीय)

1980: राम लखन सिंह यादव (कांग्रेस)

1985: राम लखन सिंह यादव (कांग्रेस)

1990: राम लखन सिंह यादव (कांग्रेस)

1991: चंदू प्रसाद वर्मा (जनता दल)

1995: चना देव प्रसाद वर्मा (जनता दल)

1996: जनार्दन शर्मा (भाजपा)

2000: वीराना सिंह यादव (राजद)

2005: नंद कुमार नंदा (भाकपा माले)

2010: डॉ उषा विद्यार्थी (भाजपा)

2015: जयवर्धन यादव (राजद)

2020: संदीप सौरभ (भाकपा माले)

कुल मतदाता

कुल मतदाता : 2.78 लाख

पुरुष मतदाता : 1.43 लाख (51.42%)

महिला मतदाता : 1.34 लाख (48.16%)

ट्रांसजेंडर मतदाता : 11 (0.002%)

(2020 विधानसभा चुनाव के अनुसार)

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