जिंदगीनामा: अपने आप को जान लेना ही जिंदगी है

विपुल द्विवेदी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित सहुआ कोल गांव से हैं। पिताजी किसान हैं, माताजी गृहिणी। स्वाभाविक तौर पर शुरुआती पढ़ाई गांव से हुई। हां, पोस्ट ग्रेजुएशन इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से किया। और अब कानपुर विश्वविद्यालय से सीनियर रिसर्च फेलोशिप पर पीएचडी कर रहे हैं। अब पहली बार में ही UPSC-CAPF भी क्रैक कर लिया है।

Share This Article:

सवाल: आपने अपने लिए लक्ष्य क्या तय कर रखा है? UPSC-CAPF क्रैक करने से वह हासिल हो गया क्या?

जवाब: मुझे बचपन से ही अनुशासन, नेतृत्व और देश सेवा की भावना आकर्षित करती रही है। जब मैंने CAPF जैसी सेवा के बारे में जाना, तो लगा कि यह वह क्षेत्र है जहां मैं अपने विचारों और ऊर्जा का सही उपयोग कर सकता हूं। फिर भी, मेरे लिए यह फाइनल गोल नहीं है। मेरा मानना है कि जीवन का अर्थ देश और समाज के लिए जीने में है।

सवाल: जीवन जीना एक बात है, लेकिन आपकी नजर में जीवन क्या है?

जवाब: मेरे लिए जिंदगी एक सतत यात्रा है-जिसमें हर अनुभव, हर संघर्ष हमें खुद की खोज करने का माध्यम प्रदान करता है। जीवन की सबसे लंबी यात्रा अपने आप को जानने की है। समाज के ज्ञान से खुद तक का ज्ञान ही जीवन है।

सवाल: आप कामयाबी को कैसे मापते हैं?

जवाब: जब खुद से तय किए लक्ष्य को प्रण, विवेक, साहस और शक्ति से हासिल कर लेते हैं। यही सच्ची कामयाबी है। मेरे लिए कामयाबी केवल पद या परीक्षा नहीं है। आपने जिंदगी का लक्ष्य तय क्या किया है और इसे किस स्तर तक हासिल कर सके, कामयाबी का राज इसी में है।

सवाल: आपने कब सोचा कि UPSC-CAPF देना है? जानकारी कहां से मिली?

जवाब: एमए के दौरान एक साथी से पहली बार CAPF के बारे में जाना। उन्होंने बताया कि यह सेवा देश सेवा का एक चुनौतीपूर्ण और गौरवपूर्ण माध्यम है। तभी से मैं प्रयासरत हूं।

सवाल: CAPF की तैयारी कठिन है। आपकी दिनचर्या क्या रही? और इसके लिए कोई कोचिंग की, कहीं से गाइडेंस मिला क्या?

जवाब: सही बात है कि परीक्षा की तैयार थोड़ा टफ है। मेरी दिनचर्या सुबह 6 बजे से शुरू होती थी। अखबार पढ़ना, टॉपिक वाइज पढ़ाई और रिवीजन। यह मेरी नियमित दिनचर्या थी। मैं हर दिन का अपना टारगेट सेट करता हूं और इसकी खुद से ही मॉनिटरिंग भी करता हूं, जिससे दिशा पता चलती रहती है। मेरी तैयारी का मूल स्तंभ self study और Peer review ही रहा। फिर भी, मैंने सीमित गाइडेंस ली। खासकर इंटरव्यू के लिए मॉक टेस्ट में।

सवाल: परीक्षा की तैयारी में कर्म और किस्मत का कुछ कनेक्शन देखते हैं क्या?

जवाब: मेहनत अनिवार्य है, लेकिन किस्मत भी एक भूमिका निभाती है। मेहनत मौके बनाती है, किस्मत उन मौकों को दिशा देती है। हमारा काम है अपना प्रयास करना, नतीजा समय और ईश्वर के हाथ में है।

सवाल: मतलब, आप ईश्वर में यकीन रखते हैं?

जवाब: बिलकुल, मैं ईश्वर को मानता हूं। मेरे लिए ईश्वर किसी विशेष मूर्ति में नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य और सेवा में है।

सवाल: तब तो धार्मिक स्थल घूमना पसंद होगा? या लगाव पर्यटन स्थलों से ज्यादा है?

जवाब: दोनों ही जगहों की अपनी अहमियत है। धार्मिक स्थलों पर मुझे आत्मिक शांति मिलती है। जबकि पर्यटन स्थलों पर संस्कृति और प्रकृति का सौंदर्य देखने को मिलता है। अभी तक मुझे महाबलीपुरम, अमृतसर, भोपाल, वैष्णो देवी, और अन्य प्रसिद्ध स्थलों पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

सवाल: चूंकि पिछला सवाल दैवीय सत्ता पर था तो कभी जीवन के अंतिम सत्य, मृत्यु पर ध्यान गया है क्या?

जवाब: इस सवाल पर मुझे पाश की कविता याद आती है, जहां देह का नाश मृत्यु नहीं, अपितु हमारे सपनों का मर जाना ही मृत्यु है। समाज और जीवन के संघर्षों का प्रभाव पड़ना बंद हो जाए, वही वास्तविक मृत्यु है। जब तक हममें मनुष्यत्व बचा है, हमारे अंदर का इंसान गायब नहीं हुआ, जीवन तभी तक है।

सवाल: खैर, जीवन-मृत्यु के इस चक्र से बाहर, फिर आप पर आते हैं। अपने परिवार, मम्मी-पापा के बारे में कुछ बताइए?

जवाब: मैं उत्तर प्रदेश के एक सामान्य परिवार से हूं। पिताजी किसान है, माताजी गृहिणी। मेरे बड़े भाई पीएचडी की पढ़ाई कर रहे हैं। मेरा पूरा परिवार हमेशा मेरे अच्छे-बुरे समय पर खड़ा रहा है। तेजी से बदलती इस दुनिया में एक निश्चित धुरी के समान परिवार को हमेशा नजदीक पाता हूं।

सवाल: क्या घर से पढ़ाई की या बाहर रहना पड़ा? और पहली बार घर छोड़ना कैसा लगा?

जवाब: कॉलेज के लिए मुझे घर छोड़कर बाहर रहना पड़ा। यह एक चुनौतीपूर्ण, लेकिन आत्मनिर्भर होने का तरीका सिखाने वाला अनुभव था। शुरू में मुश्किलें आईं, अकेले आत्मनियंत्रण एक चुनौती है। लेकिन मनोबल से इको ताकत में बदला जा सकता है।

जब पहली बार घर से दूर गया, तो मां की ममता, घर का खाना और परिवार के संबल को बहुत मिस किया। लेकिन उस कदम ने मुझे जिम्मेदार और आत्मनिर्भर बनना सिखाया। उस अनुभव का भी मेरे जीवन में योगदान है।

सवाल: आपका आदर्श कौन है?

जवाब: मेरे आदर्श मेरे दिवंगत टीचर अर्जुन चंद जी रहे हैं। उन्होंने खुद अभाव में होते हुए भी मुझ पर जो ध्यान दिया, शिक्षा, अर्थ और आत्म बल से तब मुझे सहयोग किया, जब मुझे शिक्षा की सबसे अधिक जरूरत थी। उनके बदौलत ही मैं 12वीं की परीक्षा पास कर सका। उनका आजीवन आभारी हूं।

एक मूल शिक्षा, जो उनसे मुझे मिली कि सब कुछ होते हुए दान करना बड़ी बात तो है, लेकिन खुद अभाव में होकर भी किसी शिष्य की सभी जरूरत को पूरा करना, एक महानतम व्यक्तित्व का परिचय है। मुझे उम्मीद है कि आज उनकी स्मृति जहां भी होगी, वह इस उपलब्धि पर प्रसन्न होगी।

सवाल: आखिरी सवाल, जो परीक्षा में नहीं हो पाए, उन्हें क्या कहना चाहेंगे?

जवाब: मैं उन्हें कहना चाहूंगा कि परीक्षा जीवन नहीं है, यह उसका एक पड़ाव है। प्रयास जारी रखें। मैंने आठ बार एसएसबी इंटरव्यू दिया, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। कई बार हम बस एक कदम दूर रह जाते हैं, लेकिन धैर्य और आत्म विश्लेषण से हम वहां तक पहुंच सकते हैं। शायद जीवन की सफलता से ज्यादा जीवन में आत्म परिपक्वता का सृजन ही जीवन यात्रा है।

NewG Network

contact@newgindia.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें

कैटेगरीज़

हम वह खबरची हैं, जो खबरों के साथ खबरों की भी खबर रखते हैं। हम NewG हैं, जहां खबर बिना शोरगुल के है। यहां news, without noise लिखी-कही जाती है। विचार हममें भरपूर है, लेकिन विचारधारा से कोई खास इत्तेफाक नहीं। बात हम वही करते हैं, जो सही है। जो सत्य से परामुख है, वह हमें स्वीकार नहीं। यही हमारा अनुशासन है, साधन और साध्य भी। अंगद पांव इसी पर जमा रखे हैं। डिगना एकदम भी गवारा नहीं। ब्रीफ में यही हमारा about us है।

©2025 NewG India. All rights reserved.

Contact Us  |  Privacy Policy  |  Terms of Use