आओ सीखें, पंच परमेश्वर बनने के गुर

पंच परमेश्वर मुंशी प्रेमचंद की कालजयी रचना है। इसकी सीख इतनी भर है कि इंसाफ के सामने दोस्ती, भाईचारा या किसी भी तरह का संबंध आड़े नहीं आने चाहिए। यह बड़ी जिम्मेदारी है कि इंसाफ करते वक्त हम हमेशा निष्पक्ष रहें। यह बात प्रेमचंद के दौर के लिए जितनी सच थी, आज भी उतनी ही सच है...

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सवाल: इसमें कोई दो राय नहीं कि अब आपको देश की प्रतिष्ठित न्यायिक सेवा में काम करने जा रही हैं। लेकिन आपके कई दोस्त ऐसे भी होंगे, जो अंतिम सूची में जगह नहीं बना पाए। फिर भी, उनको इस लिहाज से सफल माना जा सकता है कि तैयारी की पूरी प्रक्रिया ने उनको बेहतर इंसान बनाया है। क्या आप इससे सहमत हैं? यदि हां, तो अपने अनुभव से बताइए कि परीक्षा में विशेष क्या है?

जवाब: बिल्कुल। परीक्षा की तैयारी किसी भी व्यक्ति को बेहतर इंसान बनाने में मददगार होती है। जैसा कि मैंने खुद से समझा है, इस परीक्षा में अनुशासन और समय की अमूल्य कीमत है। परीक्षा की तैयारी के दौरान मैंने खुद को अनुशासित किया। संयमित होकर तैयारी की। इस दौरान समय की कीमत भी समझ में आई। मैंने कानून को समझा और जिया भी। इसी वजह से मैंने खुद को आत्मनिर्भर पाया। हर दिन पढ़ने की सकारात्मक आदत ने परीक्षा को मेरे लिए बोझिल नहीं होने दिया।

सवाल: प्रतिस्पर्धा के स्तर पर युवाओं में जितनी जल्दी हो सके, तैयारी में कूदने की होड़ लगी हुई है। यद्यपि इस परीक्षा के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता विधि स्नातक है, कई बच्चे तो दसवीं, बारहवीं पास होने के बाद या स्नातक होने के पहले ही इस परीक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। आपके हिसाब से तैयारी की शुरुआत कब से करनी चाहिए?

जवाब: चूंकि तैयारी वक्त मांगती है, तो हमें लगता है कि इसकी शुरुआत कालेज में जाने के साथ हो जानी चाहिए। इसमें परीक्षा से संबंधित हर विषय को पढ़ना शुरू कर देना चाहिए। इससे चीजें धीरे-धीरे अंत:चेतना में बैठती जाती हैं और तैयारी आखिरी वक्त में बोझिल नहीं होती। वैसे भी, यह परीक्षा निरन्तर अभ्यास की मांग करती है।

सवाल: हम हमेशा सफल अभ्यर्थियों से सुनते हैं कि सफलता के लिए एक सटीक रणनीति का निर्धारण और निष्ठापूर्वक उसका अनुपालन बहुत जरूरी है। आपकी रणनीति क्या थी और उसे निभाने में आपने किन-किन दिक्कतों का सामना किया?

जवाब: इसमें मेरे लिए सहूलियत यह रही कि कानून के विषयों में अच्छी पकड़ थी। मेरी रणनीति थी कि मैं हर दिन पिछले सालों के प्रश्न पत्र हल करूं। हर दिन 500 से 700 सवाल हल करती थी। निरंतर अभ्यास ही मेरा मूलमंत्र रहा। इसके साथ ही मुख्य परीक्षा के विगत सालों के सतत लेखन का भी अपना सकारात्मक महत्व है। इसका मेरी तैयारी में विशेष योगदान था।

सवाल: परीक्षा की तैयारी की प्रक्रिया लंबी तो है ही, यह थका देने वाली भी है? ऐसे में स्वयं को मोटिवेटेड रखने के लिए आपने क्या-क्या उपक्रम किए?

जवाब: मैंने अपना लक्ष्य तय किया और खुद से कहा कि मुझे इसे हासिल करना है। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। खुद मोटिवेशन से भरे रहने के लिए मैं सफल छात्रों के साक्षात्कार देखती थी। इसमें कोशिश रहती थी कि उनकी गलतियों को न दुहराऊं। सीखने-समझने के क्रम में इससे काफी फायदा मिला। इस क्रम में बेयर एक्ट को बार-बार पढ़ना, उस पर एक हद तक महारत हासिल करना, नए-नए निर्णय से उसे परिपुष्ट करना जरूरी है। समसामयिक घटना के लिए समाचार पत्र व पत्रिका का विशेष महत्व है।

सवाल: न्यायिक सेवा मूल रूप से एक योग्य अभ्यर्थी में किन-किन गुणों की तलाश करती है, एक उदाहरण देकर बताइए कि किसी अभ्यर्थी में वो विशेष गुण नहीं है तो क्या तैयारी के दौरान विकसित किया जा सकता है?

जवाब: इस सेवा में जाने वाले यह सुनिश्चित करके रखें कि तैयारी के दौरान अपने आपको अनुशासित रखना है। हिम्मत कभी नहीं छोड़नी है। सकारात्मक सोच और सही सामग्री पर पकड़ रखनी है। यह सब परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी होता है। फिर भी, कई बार ऐसा होता है कि कामयाबी नहीं मिल पाती। लेकिन शुरुआत में इस तरफ ध्यान नहीं देना है। अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य साधना करें और बस उसे पाने की आकांक्षा में जुट जाएं। यदि आप इस परीक्षा में सफल न भी हों, तब भी यह तैयारी आपको परिपूर्ण एवं जीवन में सफल बनाती है।

सवाल: नौकरीपेशा लोगों के लिए न्यायिक सेवा की तैयारी करना चुनौतीपूर्ण है या नहीं? कैसे देखती हैं?

जवाब: कई बार नौकरीपेशा भी इसकी तैयारी करते हैं। यह सहूलियत भी है, समय प्रबंधन के लिहाज से अड़चन भी। जो अभ्यर्थी नौकरी में हैं, उन्हें और भी विवेकपूर्ण ढंग से अपने समय का उपयोग करना चाहिए। इसमें परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी चीज को पढ़ना और अनुपयोगी को छोड़ना बड़ी बात है। मेरा मानना है कि अपने आस-पास हमें अच्छे एवं सकारात्मक लोगों का चयन करना चाहिए। परीक्षा के लिए अनुशासन तो बहुत ही आवश्यक है परंतु परिवार का साथ आपको आपके लक्ष्य को और दृढ़ बनाता है।

सवाल: जिस अभ्यर्थी का शैक्षणिक स्तर सामान्य रहा है, उसकी विशेष उपलब्धियां नहीं रही हैं, प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में वह पंजीकृत नहीं रहा है उसके सफल होने की क्या संभावना है?

जवाब: कई बार प्रतिभागी इसलिए डिमोरलाइज हो जाते हैं कि उनकी पढ़ाई किसी अच्छे कॉलेज या विश्वविद्यालय में नहीं हुई है। लेकिन ऐसा नहीं है। न्यायिक सेवा परीक्षा पास करने के लिए आपको अच्छे कॉलेज या स्कूल से पास होना जरूरी नहीं है। जरूरी है तो सही मार्गदर्शन, दृष्टिकोण, रणनीति एवं स्मार्ट स्टडी।

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Suman

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