War बन रहे पर्यावरण के लिए बढ़ता खतरा

बमबारी, बुनियादी ढांचे का विनाश और आगजनी से भारी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें वायुमंडल में फैलती हैं। इसके साथ ही, जहरीले रसायन मिट्टी और जल स्रोतों को दूषित कर देते हैं

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नई दिल्ली: यूक्रेन, गाजा, ईरान और इजरायल जैसे क्षेत्रों में चल रहे सशस्त्र संघर्षों के बीच मानवतावादी संकट तो सुर्खियों में है, लेकिन इन युद्धों (War) का पर्यावरण पर पड़ने वाला गंभीर प्रभाव अक्सर अनदेखा रह जाता है। बमबारी, बुनियादी ढांचे का विनाश और आगजनी से भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में फैलती हैं। इसके साथ ही, जहरीले रसायन मिट्टी और जल स्रोतों को दूषित कर देते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर लंबे समय तक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

सैन्य गतिविधियों का पर्यावरणीय बोझ
वैश्विक स्तर पर सैन्य गतिविधियां कुल कार्बन उत्सर्जन का लगभग 5.5% हिस्सा जिम्मेदार हैं। यदि सैन्य ताकतों को एक देश के रूप में गिना जाए, तो वे विश्व के चौथे सबसे बड़े उत्सर्जक होंगे, जो कई बड़े देशों से भी अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। सैन्य अभियानों, जैसे सैनिकों की आवाजाही, मिसाइलों का उपयोग और बुनियादी ढांचे का विनाश, पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। विशेष रूप से, परमाणु सुविधाओं पर हमले रेडियोधर्मी प्रदूषण का खतरा बढ़ाते हैं, जो मानव और पर्यावरण दोनों के लिए घातक हो सकता है।

परमाणु सुविधाओं पर हमले और जोखिम
जून 2025 में इजरायल द्वारा ईरान की नतान्ज और फोर्डो परमाणु सुविधाओं पर किए गए हमलों ने वैश्विक चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि बुस्हेहर परमाणु रिएक्टर पर हमला एक बड़े पैमाने पर रेडियोधर्मी रिसाव का कारण बन सकता है। इससे न केवल स्थानीय पर्यावरण, बल्कि खाड़ी क्षेत्र के जल स्रोतों और समुद्री जीवन पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। ऐसे हमले जलवायु संकट को और गहरा सकते हैं।

जीवाश्म ईंधन ढांचे को नुकसान
युद्धों ने तेल रिफाइनरियों और ईंधन भंडारण सुविधाओं को भी निशाना बनाया है। तेहरान में एक प्रमुख तेल रिफाइनरी में लगी आग ने हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य हानिकारक प्रदूषकों को फैलाया। मिसाइलों और हथियारों से निकलने वाले रसायन, जैसे एल्यूमिनियम ऑक्साइड और ब्लैक कार्बन, ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये प्रदूषक न केवल हवा को दूषित करते हैं, बल्कि मिट्टी और पानी को भी प्रभावित करते हैं, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षति होती है।

युद्ध और कार्बन उत्सर्जन
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, गाजा में 15 महीने के संघर्ष से सैन्य गतिविधियों के कारण लगभग 20 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन हुआ, जो कई छोटे देशों के वार्षिक उत्सर्जन से अधिक है। यदि युद्ध की तैयारी और पुनर्निर्माण को शामिल किया जाए, तो यह आंकड़ा 3.5 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। इसी तरह, 2022 से 2025 तक रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण 24 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हुआ, जो कई यूरोपीय देशों के कुल उत्सर्जन के बराबर है। यह पर्यावरणीय प्रभाव लाखों वाहनों के सालाना उत्सर्जन के समान है।

निष्कर्ष
युद्ध केवल मानव जीवन और बुनियादी ढांचे को ही नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि पर्यावरण और जलवायु पर भी गहरा असर डालते हैं। बढ़ते सशस्त्र संघर्षों के बीच, इन पर्यावरणीय प्रभावों को संबोधित करना अत्यंत आवश्यक है। वैश्विक समुदाय को युद्ध के जलवायु और पारिस्थितिक परिणामों पर ध्यान देना होगा, ताकि भविष्य में और अधिक नुकसान से बचा जा सके।

Aprajita Sharan

aprajitasharan@gmail.com

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