सिलिकॉन की छोटी चिप से ठहर सकती है पूरी दुनिया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार, 14 मई सेमीकंडक्टर की छठीं युनिट लगाने की मंजूरी दे दी‌। उत्तर प्रदेश के जेवर एयरपोर्ट के नजदीक एचसीएल और फॉक्सकॉन मिलकर यह संयंत्र लगाएंगे। इसमें एचसीएल का हार्डवेयर के विकास और निर्माण व फॉक्सकॉन का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण क्षेत्र का अनुभव काम करेगा।

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नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि प्रस्तावित सेमीकंडक्टर संयंत्र में मोबाइल फोन, लैपटॉप, वाहन और अन्य उपकरणों के लिए डिस्प्ले ड्राइवर चिप बनाएगा। यहां हर महीने 20,000 वेफर्स (सेमीकंडक्टर सामग्री सिलिकन की पतली परत) तैयार होगा। इससे करीब 2,000 नौकरियां सृजित होंगी। वहीं, इस संयंत्र पर 3,700 करोड़ रुपये का निवेश अनुमानित है।
बता दें कि सेमीकंडक्टर मिशन के तहत अभी तक पांच सेमीकंडक्टर इकाइयां निर्माण के उन्नत चरणों में हैं। छठी इकाई के साथ, भारत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सेमीकंडक्टर उद्योग को विकसित करने की दिशा में एक कदम और बढ़ाया है।

सेमीकंडक्टर इसलिए अहम
मोबाइल से पेमेंट करते, गाड़ी चलाते या फिर फ्लाइट से चंद घंटों में हजारों किलोमीटर की दूरियां नापते हुए हमें शायद ही आधे इंच की एक चीज का ख्याल आता हो, लेकिन तेजी से डिजिटल होती हमारी दुनिया में हर तरफ आज इसका ही दखल है। लैपटॉप से लेकर फिटनेस बैंड तक और महीन कंप्यूटिंग मशीन से लेकर मिसाइल तक में आज एक ही चीज धड़क रही है- दुनिया इसे सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप कहती है।

सिलिकॉन से बनी इस बेहद छोटी चिप की अहमियत का अहसास तब होता है, जब दुनिया भर में गाड़ियों का उत्पादन थम जाता है, मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट महंगे हो जाते हैं, डेटा सेंटर डगमगाने लगते हैं, घरेलू अप्लायंस के दाम आसमान छूने लगते हैं, नए एटीएम लगने बंद हो जाते हैं और अस्पतालों में जिंदगी बचाने वाली टेस्टिंग मशीनों का आयात रुक जाता है।

कोविड के उफान के दिनों में जब इन सेमीकंडक्टर्स या माइक्रोचिप्स की सप्लाई धीमी हो गई थी तो दुनिया भर के लगभग 169 उद्योगों में हड़कंप मच गया था। दिग्गज कंपनियों के अरबों डॉलरों का नुकसान उठाना पड़ा था। चीन, अमेरिका और ताइवान जैसे माइक्रोचिप्स के सबसे बड़े निर्यातक देशों की कंपनियों को भी प्रोडक्शन रोकना पड़ा था।

आइए, समझते हैं सेमीकंडक्टर को। एक समय था, जब देश की जीडीपी में कृषि मुख्य घटक थी। धीरे-धीरे हमने सर्विस सेक्टर में प्रगति की और जीडीपी में उसका योगदान बढ़ा। बदलते परिवेश में मैन्युफैक्चरिंग की जीडीपी में हिस्सेदारी बढ़ाने की आवश्यकता स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। चीन की चुनौतियों का सामना करना है, तो हमें मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनना ही होगा। इस दिशा में महत्वपूर्ण कड़ी है इलेक्ट्रानिक्स। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 2020 में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग को लेकर प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) की घोषणा की गई थी। परिणाम यह रहा कि कभी पूरी तरह आयात पर निर्भर रहने वाले भारत में सालाना 28 करोड़ यूनिट मोबाइल फोन का निर्माण होने लगा। तीन साल में इलेक्ट्रानिक्स के निर्यात में भी हमने बड़ी तरक्की की है। हम एक इलेक्ट्रॉनिक इकोनॉमी बनने की राह पर बढ़ रहे हैं। और हम इलेक्ट्रॉनिक इकोनॉमी तभी बनेंगे, जब हमारा सेमीकंडक्टर उद्योग मजबूत होगा।

सुचालक और कुचालक के बीच बैठा सेमीकंडक्टर
तकनीकी तौर पर देखें तो प्रकृति में मौजूद कुछ पदार्थ तुरंत ही अपने में से होकर विद्युत को प्रवाहित होने देते हैं। इनको सुचालक कहते हैं। इनमें ऐसे वैद्युत आवेश यानि इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो पदार्थ के भीतर गति के लिए अपेक्षाकृत स्वतंत्र हैं। आवेश के प्रवाह की दर ही विद्युत धारा है। धातुएं, मानव तथा जंतु शरीर और पृथ्वी चालक हैं।
दूसरी तरफ कांच, पोर्सेलेन, प्लास्टिक, नॉयलोन, लकड़ी जैसी अधिकांश अधातुएं अपने से होकर बिजली प्रवाहित नहीं होने देती। बड़ा प्रतिरोध करती हैं। इनको कुचालक कहते हैं। ‌विद्युत प्रवाह के लिहाज से ज्यादातर पदार्थ इन दो वर्गों में से किसी एक में आते हैं। तीसरी श्रेणी अर्धचालकों, सेमीकंडक्टर की है। इसमें आवेश के प्रवाह बाधित रहता है। इसका परिणाम सुचालक और कुचालक के बीच का है।

जब किसी चालक पर आवेश स्थानांतरित होता है तो वह तुरंत उस चालक के पृष्ठ पर फैल जाता है। इसके विपरीत यदि कुछ आवेश किसी विद्युतरोधी को दें, तो वह वहीं पर रहता है। इसे समझने के लिए हमें पदार्थ के भीतर की संरचना पर बात करनी पड़ेगी। असल में, हर पदार्थ में कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जिनसे उनकी प्रकृति तय होती है। यहां बात सिर्फ तीन चीजों की, जिनसे सुनि‌श्चित होता है कि पदार्थ सुचालक है, कुचालक या अर्धचालक। और वह तीन चीजें हैं; कंडक्शन बैंड, बैलेंस बैंड और इनको जोड़ने वाला बैंड गैप। कंडक्शन बैंड में इलेक्ट्रॉन तुलनात्मक तौर पर मुक्त होते हैं। तभी इसमें प्रवाह बना रहता है। वहीं, बैलेंश बैंड में आपस में बंधे होते हैं। आवेश का प्रवाह बैलेंस बैंड से कंडक्शन बैंड की तरफ होता है। यह इस पर निर्भर करता है कि बैंड गैप कितना चौड़ा है। अगर यह संकरा है तो इलेक्ट्रॉन का प्रवाह आसानी हो जाता है। इसकी चौड़ाई ज्यादा होने पर प्रवाह संभव नहीं होता। पहला पदार्थ सुचालक और दूसरा कुचालक होता है।

इनके बीच सेमीकंडक्टर है। इसमें बैंड गैप न ज्यादा चौड़ा होता है और न ही संकरा। लेकिन यह इतना होता है कि सामान्य अवस्था में इलेक्ट्रान का प्रवाह नहीं हो पाता। इसके लिए उसे अतिरिक्त ऊर्जा देनी पड़ती है। इससे इलेक्ट्रॉन गैप का जंप कर जाता है और विद्युत प्रवाहित होने लगती है।
प्रवाह के क्रम में जब अतिरिक्त ऊर्जा खर्च हो जाती है तो वह दोबारा बैलेंस बैंड में पहुंच जाता है। मतलब यह कि सेमीकंडक्टर में विद्युत प्रवाह का नियंत्रित किया जा सकता है। इसका यही गुण इसे खास बना देता है। चूंकि हम-आप जिस इलक्ट्रानिक गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं, उनके जरिए नियंत्रित संदेश ही भेजना होता है। तभी इनको तैयार करने में सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है।

भारत का सेमीकंडक्टर मिशन

माना जाता है कि 20वीं शताब्दी तेल और गैस की थी तो 21वीं शताब्दी में सिर्फ डाटा का बोलबाला रहेगा। और बात डेटा की सेमीकंडक्टर के बगैर पूरी नहीं हो सकती। जब तक चिप नहीं होगा, डेटा स्टोरेज की कल्पना ही संभव नहीं है। जिस देश की चिप इंडस्ट्रीज जितनी मजबूत होगी, डेटा की दुनिया में उसका दबदबा उतना ज्यादा होगा। इसी मकसद से मोदी सरकार ने 76,000 करोड़ रुपये की फंडिंग से दिसंबर 2021 में सेमीकंडक्टर इंडिया प्रोग्राम को लॉन्च किया था। मौजूदा वक्त में भारत सभी तरह की चिप्स का आयात करता है और वर्ष 2025 तक भारतीय बाजार 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

मुख्य बिंदु
इसके तहत सेमीकंडक्टर के विकास और देश में निर्माण की इच्छुक कंपनियां केंद्र सरकार की तरफ से तय किए गए 76,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन का लाभ उठाना चाहती हैं, वह आवेदन कर सकती हैं। आवेदन के लिए एक पोर्टल तैयार किया गया है। भारत सेमीकंडक्टर मिशन (India Semiconductor Mission – ISM) डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन का एक विशिष्ट और स्वतंत्र व्यापार प्रभाग है। भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण और डिजाइन में वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदर्शित करने के मकसद से मिशन की स्थापना की गई है। यह सेमीकंडक्टर फैब योजना और डिस्प्ले फैब योजना के तहत आवेदकों के साथ संपर्क करेगा। इस योजना को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 21 दिसंबर, 2021 को अधिसूचित किया गया था।

वित्तीय सहायता
भारत में सिलिकॉन आधारित सेमीकंडक्टर फैब के कुछ प्रकार स्थापित करने के लिए परियोजना लागत के 50 फीसदी तक की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। अनुमोदन की तिथि से 6 वर्षों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। भारत में डिस्प्ले फैब स्थापित करने के लिए योजना के तहत प्रति फैब लगभग 12,000 करोड़ रुपये का समर्थन अनिवार्य किया गया है। कुल मिलाकर, केंद्र सरकार भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के वैश्विक केंद्र बनाने के लिए करीब 2.30 ट्रिलियन रुपये की मदद करेगी।

कोविड में गहराया था संकट
असल में, कोरोना काल में ऑटोमोबाइल उद्योग और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग के समक्ष सेमीकंडक्टर चिप की कमी थी। हार्डवेयर और इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी को भारी प्रोत्साहन के लिए भी इसकी आवश्यकता होती है। इसके लिए भारत को सेमीकंडक्टर हब बनाने का लक्ष्य है। योजना का मकसद है कि अगले दो-तीन सालों में भारत की कंपनियां जरूरी सेमीकंडक्टर के लिए दूसरे देशों पर निर्भर ना हो। इस कदम से भारत की धाक विदेशों में होगी और 1.35 लाख लोगों को रोजगार मिलने का रास्ता भी साफ होगा। सेमीकंडक्टर ही डिजिटल क्रांति की दिशा तय करेंगी। इसके तहत सेमीकंडक्टर सिलिकॉन फैब्स, कंपाउंड सेमीकंडक्टर, सिलिकॉन फोटोनिक्स, सेंसर्स फैब्स, सेमीकंडक्टर पैकेजिंग और डिजाइन पर काम किया जाएगा।

प्रोफेशनल की मदद, सिंगापुर की तर्ज पर पार्क
सेमीकंडक्टर मिशन को पूरा करने के लिए मंत्रालय सीईओ, सीटीओ और सीएफओ जैसे विभिन्न पदों पर शीर्ष अधिकारियों को नियुक्ति की गई है। यह देश-विदेश के सेमीकंडक्टर प्रोफेशनलों की अगुआई में चल रहा है‌। वहीं, सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन की विश्वस्तरीय सुविधा होगी। शुरुआत में एक मेगा सेमीकंडक्टर क्लस्टर बनाने की है। यह ताइवान के हिंशु या सिंगापुर के वुडलैंड वेफर फैब पार्क की तरह हो सकता है।

पांच प्रोजेक्ट हो रहे तैयार
जेवर से पहले सरकार ने पांच सेमीकंडक्टर विनिर्माण परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इसमें सेमीकंडक्टर इंडिया कार्यक्रम के तहत एक सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन  केंद्र और चार सेमीकंडक्टर एटीएमपी/ओएसएटी केंद्र शामिल हैं। इनमें कुल निवेश 1,52,000 करोड़ रुपये है।स्वीकृत परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में है‌।और इनके 4-6 वर्ष की समय सीमा में पूरा होने की संभावना है।
इसके अलावा, देश में सेमीकंडक्टर विनिर्माण को मजबूत करने और सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के लिए सरकार ने अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और सिंगापुर के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।

ताइवान, दक्षिण कोरिया बड़े खिलाड़ी
ताइवान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया जैसे देश सेमीकंडक्टर निर्माण के बड़े खिलाड़ी हैं। भारत में कार कंपनियां मांग होने के बावजूद उत्पादन नहीं कर पा रही हैं। यही हाल मोबाइल व दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनियों की हैं। बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में सेमीकंडक्टरों वाली इलेक्ट्रॉनिक सामग्रियों के निर्माण के लिए भारत को वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से 2,30,000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि।

ताइवान पर है निर्भरता
सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा निर्माता देश ताइवान है। यहां से 63 प्रतिशत निर्माण होता है। दूसरा नंबर दक्षिण कोरिया का है। यहां 18 प्रतिशत। अन्य देशों में महज 13 प्रतिशत निर्माण होता है। पिछले साल अमेरिकी चिप मेकर कंपनी माइक्रॉन टेक्नोलॉजी ने ऐलान किया था कि वह भारत में अपना एक्सिलेंस सेंटर और स्टोरेज सिस्टम बनाएगी। माइक्रॉन एपल को सेमीकंडक्टर सप्लाई करने वाली बड़ी कंपनी है। फिलहाल चंडीगढ़ में इसरो की और बेंगलुरु में डीआरडीओ की चिप फैक्ट्री है। कुछ दिनों पहले टाटा ग्रुप ने भी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में उतरने का ऐलान किया है।

सिलिकॉन के अलावा भी
अपनी इसी प्रकृति की वजह से यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए धुरी बना हुआ है। इसका अहम काम विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करना है। यह शुद्ध तत्वों से, आम तौर सिलिकॉन से बनता है। जर्मेनियम, आर्सेनाइड, गैलियम भी इसी श्रेणी में आते हैं। इसके गुणों में बदलाव लाने के लिए कुछ विशेष तरह की अशुद्धता मिलाई जाती है, जिसे डोपिंग कहते हैं। डोपिंग से ही सेमीकंडक्टर के मनचाहे गुण विकसित हो पाते हैं। इसी पदार्थ का उपयोग कर एक छोटा सा विद्युत सर्किट बनाया जाता है, जिसे चिप कहते हैं। इसको इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के दिमाग के तौर पर समझ सकते हैं। कंप्यूटर, लैपटॉप, कार, वॉशिंग मशीन, एटीएम, अस्पतालों की मशीन से लेकर हाथ में मौजूद स्मार्टफोन तक सेमीकंडक्टर चिप पर ही काम करते हैं।
दिमाग की तरह यही चिप पूरे गैजेट्स को चलाती है। मसलन, जब आप कार में बैठे होते हैं और आपकी सीट बेल्ट खुली होती है तो इसकी सूचना आपको चिप से ही मिलती है। यूं ही, स्मार्ट वॉशिंग मशीन में कपड़े पूरी तरह धुलने के बाद ऑटोमैटिक मशीन बंद हो जाती है। यह सब सेमीकंडक्टर चिप की ही मदद से ही होता है।

सेमीकंडकटर के गुण

  • अर्धचालक की प्रतिरोधकता कुचालक पदार्थ से अधिक और सुचालक से कम होती है। 
  • अर्धचालकों में प्रतिरोध का ऋणात्मक तापमान गुणांक होता है। मतलब, तापमान बढ़ाने से अर्धचालक का प्रतिरोध घटता है और विद्युत चालकता बढ़ती है।
  • जब एक उपयुक्त धातु की अशुद्धता अर्धचालक में डाली जाती है तो अर्धचालकों के वर्तमान गुण में बदलाव होता है। अर्थात इनकी चालकता कम या ज्यादा हो जाती है।
  • जब अर्धचालक अपनी प्राकृतिक अवस्था में होते हैं तो वे खराब सुचालक की तरह व्यवहार करते हैं। लेकिन तकनीक की मदद से अर्धचालकों में धारा का प्रवाह किया जाता है। मसलन, डोपिंग तकनीकी से। 
  • अर्धचालकों की चालकता को बाहर से लगाये गए विद्युत क्षेत्र या प्रकाश से भी परिवर्तित किया जा सकता है।

सेमीकंडक्टर का उपयोग

  • सेमीकंडक्टर का उपयोग अनेक प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है।
  • ट्रांजिस्टर, डायोड, इंटिग्रेटेड सर्किट आदि युक्तियों को बनाने में अर्धचालक का इस्तेमाल किया जाता है।
  • बिजली के सिस्टम, पॉवर ट्रांसमिशन बनाने में भी अर्धचालक का इस्तेमाल होता है।
  • ऑप्टिकल सेंसर में सहायक उपकरणों को बनाने के लिए भी अर्धचालकों का इस्तेमाल किया जाता है।

सेमीकंडक्टर के फायदे

  • सेमीकंडक्टर को गर्म करने की आवश्यकता नहीं होती है। सेमीकंडक्टर उपकरणों में कोई फिलामेंट नहीं होता है।
  • सर्किट को चालू करने पर सेमीकंडक्टर उपकरण तुरंत काम करना शुरू कर देते हैं, क्योंकि इन्हें गर्म करने की जरुरत नहीं पड़ती है।
  • सेमीकंडक्टर उपकरणों को कम वोल्टेज की आवश्यकता पड़ती है।
  • वैक्यूम ट्यूबों  की तुलना में अर्धचालक सस्ते होते हैं।
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Ashutosh Mishra

mishutosh@yahoo.co.in

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