नई दिल्ली: रूस (Russia) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता दे दी है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक समीकरणों में बड़ा बदलाव आने की संभावना है। यह कदम न केवल अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देता है, बल्कि पाकिस्तान के लिए भी रणनीतिक झटका साबित हो सकता है। दूसरी ओर, भारत को इस कदम से अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिल सकता है।
रूस का ऐतिहासिक फैसला
3 जुलाई 2025 को, रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने की घोषणा की, जिससे वह ऐसा करने वाला पहला देश बन गया। यह घोषणा काबुल में तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी और रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव के बीच हुई बैठक के बाद की गई। तालिबान के प्रवक्ता ने इसे एक साहसी कदम बताते हुए कहा कि यह अन्य देशों के लिए एक मिसाल कायम करेगा। रूस के विदेश मंत्रालय ने भी पुष्टि की कि यह मान्यता दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को बढ़ावा देगी।
पुतिन का रणनीतिक दांव
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यह कदम एक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। रूस ने इस कदम से न केवल अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत की है, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के क्षेत्रीय प्रभाव को भी चुनौती दी है। 2021 में अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान ने सत्ता हासिल की थी, लेकिन अधिकांश पश्चिमी देशों ने मानवाधिकारों और महिलाओं के प्रति तालिबान की नीतियों के कारण इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। रूस का यह कदम तालिबान को वैश्विक मंच पर वैधता प्रदान करता है, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव आ सकता है।
पाकिस्तान के लिए चुनौती
पाकिस्तान, जो लंबे समय से तालिबान का समर्थक रहा है, इस फैसले से रणनीतिक रूप से कमजोर पड़ सकता है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के मुद्दे पर अफगान तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव रहा है। पाकिस्तान का दावा है कि टीटीपी अफगानिस्तान से संचालित होकर उसके खिलाफ हमले कर रही है। रूस की मान्यता के बाद तालिबान को अब वैश्विक मंच पर अन्य देशों के साथ सीधे संबंध स्थापित करने का मौका मिलेगा, जिससे पाकिस्तान का क्षेत्रीय प्रभाव कम हो सकता है।
भारत के लिए अवसर
रूस और भारत की गहरी दोस्ती को देखते हुए, यह कदम भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है। 2021 के बाद से भारत ने तालिबान के साथ धीरे-धीरे संबंध सुधारने की कोशिश की है। हाल ही में भारतीय विदेश सचिव ने तालिबान नेताओं से मुलाकात की थी, जिससे दोनों पक्षों के बीच व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास पर चर्चा हुई। रूस की मान्यता से तालिबान को अंतरराष्ट्रीय वैधता मिलने से भारत को अफगानिस्तान में अपने निवेश और परियोजनाओं को बढ़ाने का अवसर मिलेगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पाकिस्तान का प्रभाव कम हो रहा है।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
रूस का यह कदम क्षेत्रीय शक्तियों जैसे चीन, ईरान और मध्य एशियाई देशों को भी तालिबान के साथ संबंध बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है। हालांकि, पश्चिमी देश, खासकर अमेरिका, तालिबान की मानवाधिकार नीतियों के कारण अभी भी इसे मान्यता देने के खिलाफ हैं। रूस का यह कदम न केवल अफगानिस्तान में स्थिरता लाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह क्षेत्र में एक नए भू-राजनीतिक खेल की शुरुआत भी हो सकता है।
निष्कर्ष
रूस द्वारा तालिबान सरकार को मान्यता देना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर बड़े बदलाव ला सकता है। यह कदम जहां पाकिस्तान के लिए रणनीतिक चुनौतियां खड़ी करता है, वहीं भारत को अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अन्य देश इस कदम का अनुसरण करते हैं या नहीं, और यह अफगानिस्तान की स्थिति को कैसे प्रभावित करता है।