नई दिल्ली: एक ताजा और आश्चर्यजनक शोध में खुलासा हुआ है कि दुनिया के महासागर (Climate Change) अपने रंग बदल रहे हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्र का पानी हरे रंग की आभा ले रहा है, जबकि भूमध्य रेखा के आसपास के समुद्र और अधिक नीले हो रहे हैं। यह अध्ययन ड्यूक विश्वविद्यालय, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, और जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। उनके निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुए हैं।
शोध में नासा के उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया गया, जो समुद्र में मौजूद सूक्ष्म जीवों-फाइटोप्लैंकटन-में हो रहे बदलावों को दर्शाते हैं। ये जीव समुद्री खाद्य श्रृंखला की आधारशिला हैं और अपने शरीर में क्लोरोफिल नामक हरा रंगद्रव्य बनाते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर यह बदलाव जारी रहा, तो इसका असर समुद्री जीवन, वैश्विक मत्स्य उद्योग, और कार्बन भंडारण की प्रक्रिया पर पड़ सकता है।
रंग बदलने की वजह क्या है?
वैज्ञानिकों ने 2003 से 2022 तक के उपग्रह आंकड़ों का विश्लेषण किया। इस दौरान उन्होंने क्लोरोफिल की मात्रा पर ध्यान दिया, जो फाइटोप्लैंकटन की मौजूदगी का संकेतक है। तटीय क्षेत्रों को छोड़कर केवल खुले समुद्र के आंकड़ों का अध्ययन किया गया ताकि परिणाम सटीक रहें। शोध से पता चला कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में क्लोरोफिल की मात्रा कम हो रही है, जबकि ध्रुवों की ओर यह बढ़ रही है। वैज्ञानिकों ने ‘लोरेन्ज कर्व’ और ‘गिनी इंडेक्स’ जैसी आर्थिक विश्लेषण तकनीकों का उपयोग कर यह भी पाया कि जहां क्लोरोफिल पहले से अधिक था, वहां यह और बढ़ रहा है, और जहां कम था, वहां यह और घट रहा है। यह असमानता वैश्विक स्तर पर समुद्री पारिस्थितिकी में बदलाव का संकेत देती है।
क्या है इसका कारण और प्रभाव?
शोध में पाया गया कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि इस बदलाव का प्रमुख कारण है। अन्य कारक जैसे हवा की गति, प्रकाश की उपलब्धता, या समुद्र की सतही परत की गहराई का कोई खास प्रभाव नहीं दिखा। ध्रुवों पर फाइटोप्लैंकटन की बढ़ती संख्या से वैश्विक कार्बन चक्र प्रभावित हो सकता है। ये सूक्ष्म जीव प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और मरने पर समुद्र की गहराई में इसे जमा कर देते हैं। ठंडे और गहरे क्षेत्रों में यह कार्बन लंबे समय तक संरक्षित रहता है, जो जलवायु परिवर्तन को प्रभावित कर सकता है।
अध्ययन केवल दो दशकों के डेटा पर आधारित
वहीं, भूमध्य रेखा के आसपास फाइटोप्लैंकटन की कमी से समुद्री जीवन और मछलियों की प्रजातियों पर असर पड़ सकता है। यह उन विकासशील देशों के लिए चिंता का विषय है, जो अपनी अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं, जैसे प्रशांत द्वीप समूह। हालांकि, वैज्ञानिकों ने सावधानी बरतते हुए कहा कि इन निष्कर्षों को सीधे जलवायु परिवर्तन से जोड़ना जल्दबाजी होगी। यह अध्ययन केवल दो दशकों के डेटा पर आधारित है, और अल नीनो जैसी मौसमी घटनाएं भी इन बदलावों का कारण हो सकती हैं। फिर भी, अगर यह रुझान लंबे समय तक जारी रहा, तो इसके पर्यावरण और जलवायु पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।