—- कांग्रेस के तेवर भी तल्ख, तेजस्वी यादव को सीएम फेस बनाने के लिए अभी नहीं तैयार, छोटा भाई बनना भी मंजूर नहीं
—- राजद में भी ऑल इज वेल नहीं, प्रदेश अध्यक्ष कर रहे वर्क फ्रॉम होम, सियासी कार्यक्रमों से बना रखी है दूरी
….पटना से सुजीत पांडेय
बात 2015 की है, जब तेजस्वी यादव ने पहली बार बिहार के उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी। कई सियासी पंडितों को तेजस्वी में इतना तेज दिखा कि 2020 में इनके मुख्यमंत्री बन जाने की भविष्यवाणी कर डाली। 2015-2020 के बीच कई बार तेजस्वी यादव ने भी अपने नेतृत्व कौशल का दम दिखाकर मजबूत दावेदार साबित किया। जोश से लबरेज तेजस्वी की रैली में उमड़ती भीड़ सभी नेताओं का पसीना छुड़ा देती थी। 2020 विधान सभा चुनाव में बेशक वह सत्ता हासिल करने के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सके, लेकिन 2005 के बाद राजद सबसे मजबूत स्थिति में दिखी। इस कामयाबी का श्रेय सिर्फ तेजस्वी यादव को गया।
बिहार एक बार फिर चुनाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है। 2025 के आखिरी तीन महीनों में प्रदेश को नई सरकार मिल जाएगी। लेकिन इस बार तेजस्वी यादव में पिछले चुनाव सरीखा तेज नहीं दिख रहा है। इसके पीछे की वजह परिवार और पार्टी के भीतर के अंतर्विरोधों को बताया जा रहा है। असल में, पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के दोनों लालों की बिहार की सियासत में एंट्री 2013 में होती है। लालू यादव एक तरह से अपनी सियासी विरासत तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव को सौंप देते हैं। लेकिन उम्र कम होने से दोनों भाई 2014 लोकसभा चुनाव नहीं लड़े। चुनावी राजनीति में इनका दखल 2015 विधानसभा चुनाव में होता है। यह वही वक्त था, जब राजद और जनता दल (यू) साथ-साथ चुनाव लड़ रही थी। जदयू की कमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के हाथ में थी। गठबंधन इतना कारगर साबित हुआ कि मोदी लहर के बाद भी भाजपा को प्रदेश में करारी शिकस्त मिली।
चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया जाता है। वहीं, तेज प्रताप यादव भी मंत्रिमंडल में शामिल हुए। 2014 लोक सभा चुनाव हार चुकी लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती का भी इस दौरान बिहार की राजनीति में शामिल होने का मन था। तेजस्वी के उप मुख्यमंत्री बनते ही परिवार में खटपट शुरू हो गई, लेकिन उस वक्त लालू यादव पावर में थे और उन्होंने परिवारिक मनमुटाव को सार्वजनिक नहीं होने दिया।
उधर, 2017 में जदयू-राजद गठबंधन टूट गया। इसके बाद तेजस्वी की सियासत में और भी निखार आया। सदन से लेकर सड़क तेजस्वी काफी सक्रिय दिखे, लेकिन इसी बीच तेज प्रताप यादव की अपनी पत्नी से मारपीट का मामला सामने आया। इससे तेजस्वी की सियासत भी अछूती नहीं रह सकी और उनको भी इससे जुड़े सवालों से दो-चार होना पड़ा था। 2020 विधानसभा चुनाव में लालू जेल में थे, तेजस्वी को टिकट वितरण करने में परिवार के लोगों की दखलअंदाजी पसंद नहीं थी। फिर भी, परिवार के कहने पर तेजस्वी ने कई टिकट दिए। 2020 में तेजस्वी सीएम बनते बनते रह गए थे। इसका ठीकरा तेजस्वी ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस और परिवार पर फोड़ा था।
खैर, बात आई-गई हो गई। बतौर नेता प्रतिपक्ष अपनी सियासत पर आगे बढ़ते रहे। चुनावों के दो साल बाद मुख्यमंत्री नीतीश यादव ने एक बार फिर से भाजपा को झटका दिया। नई सरकार में अब राजद शामिल थी। 10 अगस्त 2022 को तेजस्वी यादव फिर से बिहार के उपमुख्यमंत्री बने। महागठबंधन की नई सरकार में तेज प्रताप यादव को मंत्री बनाया गया। लेकिन परिवार के किसी अन्य सदस्य को मौका नहीं मिला। लोकसभा चुनाव के पहले गठबंधन फिर से टूटा और इसमें परिवार से इस बार दो टिकट बहनों को मिला। इसमें मीसा भारती ने जीत हासिल की, जबकि रोहिणी आचार्य को हार का सामना करना पड़ा।
चुनावों के बाद परिवार में खटपट शुरू हो गई। रोहिणी चुनाव के बाद सिंगापुर चली गयीं और मीसा भारती दिल्ली शिफ्ट हो गईं। अब 2025 के चुनावी साल में ताजा तस्वीर यह है कि तेज प्रताप यादव 2015 और 2020 जैसे तेजस्वी का साथ नहीं दे रहे हैं। जब भी मौका मिलता है, वह पारिवारिक खटपट की कहानी उजागर कर देते हैं। तेजस्वी भी अब परिवार से दूर हैं। राजद के अधिकांश पोस्टर से लालू- राबड़ी और तेज प्रताप यादव को हटा दिया गया है। लालू परिवार में खटपट से तेजस्वी के राजनीतिक कैरियर पर असर पड़ रहा है।
राजद में भी सब ठीक नहीं, कांग्रेस के तेवर तल्ख
अब बात पार्टी और महागठबंधन की करते हैं। चुनावी साल में लालू परिवार के साथ राजद के अंदर भी ऑल इज वेल नहीं दिख रहा है। प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह वर्क फ्रॉम होम कार्य कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष पार्टी कार्यक्रमों से दूर रहते हैं। रघुवंश प्रसाद के निधन के बाद जगदानंद सिंह पार्टी के सबसे बड़े सवर्ण नेता हैं। ऐसे में तेजस्वी डायरेक्ट कोई भी कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। चुनावी साल में फुल टाइम प्रदेश अध्यक्ष नहीं होने से संगठन कार्य लचीला दिख रहा है।
उधर, महा गठबंधन में कांग्रेस का तल्ख तेवर तेजस्वी को कमजोर कर रहा है। राजद की तमाम कोशिशों के बावजूद महा गठबंधन से तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित करने पर अभी सहमति नहीं बनी है। जबकि 2020 में महागठबंधन और उसमें भी कांग्रेस ने तेजस्वी को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने में देरी नहीं की थी। कांग्रेस सीट शेयरिंग फाइनल होने तक तेजस्वी के नाम पर सहमति देने के मूड में नहीं है। कांग्रेस के इस एक दांव से तेजस्वी इतने परेशान हो गए की उन्होंने एक कार्यक्रम में खुद को सीएम का उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस नेतृत्व ने चुनाव से ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर राजेश राम को कमान सौंप दी। वहीं, मोहन प्रकाश की जगह राहुल गांधी के करीबी कृष्णा अल्लावरू को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया है। नए प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष दोनों अलग राह पर चल रहे हैं। कृष्णा अल्लावरू और राजेश राम ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार कांग्रेस, आरजेडी का छोटा भाई बनकर चुनाव नहीं लड़ेगी।
सियासी चर्चा इस बात की भी है कि अगर कांग्रेस को मनचाही सीटें नहीं मिलीं तो पार्टी महा गठबंधन से निकल कर अकेले मैदान में उतर सकती है। आरजेडी को भी इस बात का एहसास है कि अगर ऐसा हुआ तो सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा होगा। इसका नुकसान महागठबंधन को उठाना पड़ेगा। 2010 के विधानसभा चुनाव एक तरह से दोनों के लिए चेतावनी की तरह हैं। तब राजद और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इसमें कांग्रेस सिर्फ चार सीटें जीत सकी थी और राजद भी 22 सीट पर सिमट गई थी। लंबे समय तक सूबे की सत्ता का सिरमौर रही राजद आरजेडी का संख्या बल उतना भी नहीं पहुंच सका था कि विपक्ष के नेता का पद उसे मिल सके। राजद नहीं चाहेगी, कि इस बार के चुनाव में 2010 की कहानी दोहराई जाए। अब महागठबंधन का भविष्य वक्त के गर्भ में है। लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि तेजस्वी यादव 2020 के मुकाबले 2025 में कमजोर दिख रहे हैं।