धरती का काल बनेगा सूर्य, क्यों और कैसे, जवाब यहीं मिलेगा

पूरे ब्रह्मांड में अपनी धरती इकलौता ग्रह है, जहां जीवन है। अभी तक का ज्ञात तथ्य यही है। लेकिन यह धरती भी एक दिन नहीं बचेगी। इसका काल वही बनेगा, जो अभी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है।

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इसका काल वही बनेगा, जो अभी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है

पूरे ब्रह्मांड में अपनी धरती इकलौता ग्रह है, जहां जीवन है। अभी तक का ज्ञात तथ्य यही है। लेकिन यह धरती भी एक दिन नहीं बचेगी। इसका काल वही बनेगा, जो अभी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। वह सूर्य ही होगा, जो एक दिन धरती का निगल जाएगा। अशुभ खबर जापान से आई है। टोहो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सुपर कंप्यूटर की मदद से अनुमान लगाया है कि अभी इसमें समय है। एक अरब दो हजार इक्कीस साल बाद सूर्य धरती का निगल जाएगा। लेकिन इससे पहले, करीब एक अरब साल पहले सूर्य की ऊर्जा और तापमान से धरती पर जीवन टिक नहीं सकेगा। इसके साथ ही वैज्ञानिकों का यह भी माना है कि धरती का विकल्प दूसरे ग्रह हो सकते हैं। यह मुमकिन सिर्फ तकनीकी विकास से हो सकेगा।

सोलर फ्लेयर या सौर लपटें बड़ा खतरा
बड़ा खतरा सूर्य से निकलने वाली लपटें बनेगी। यह रेडियो कम्यूनिकेशन, सेटेलाइट व जीपीएस सिस्टम को प्रभावित करेंगी। इसकी तस्दीक पिछले साल भारतीय सोलर मिशन से हुई भी हैं। आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान के दो रिमोट सेंसिंग उपकरणों ने पहली बार सौर लपटों की तस्वीरें कैद कीं। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organisation) ने 10 जून, 2024 को इसकी जानकारी साझा की। मिशन छह जनवरी 2024 को लैग्रेंजियन बिंदु (एल1) पर पहुंचा। जबकि इसकी शुरुआत दो सितंबर, 2023 को हुई थी। एल1 पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित है और इसकी मदद से लगातार सूर्य की तस्वीरें ली जा रही हैं। इसरो ने एक बयान में बताया कि ‘सोलर अल्ट्रा वॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ (एसयूआईटी) और ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (वीईएलसी) ने 17 मई, 2024 को सूर्य की गतिशील गतिविधियों की तस्वीरें लीं। सूर्य के सक्रिय क्षेत्र में आठ से 15 मई के सप्ताह के दौरान कई बार सौर लपटे उठीं।


इससे पहले अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (National Aeronautics and Space Administration) ने सूर्य की सतह पर दो विस्फोटों को रिकॉर्ड किया। इस दौरान सूर्य से ज्वालाएं (सोलर फ्लेयर्स) भी निकलीं। 2010 से सूर्य पर निगाह रख रहे नासा के मिशन Solar Dynamics Observatory ने इस नजारे को कैद किया। नासा के मुताबिक, 10-11 मई, 2024 को सूर्य से दो फ्लेयर्स निकले। सोलर डायनेमिक्स ऑब्जर्वेटरी ने घटनाओं की तस्वीरें खींची, जिन्हें एक्स 5.8 और एक्स 1.5 श्रेणी के प्लेयर्स के रूप में वर्गीकृत किया गया है।


दरअसल, सूर्य की ऊर्जा सामान्य तौर पर हर दिन धरती तक पहुंचती रहती है। लेकिन कई बार सूर्य की सतह पर विस्फोट हो जाता है। इससे ऊर्जा का तूफान उठता है। यह सौर तूफान सोलर फ्लेयर या ज्योमैग्नेटिक स्टॉर्म भी कहलाते हैं। कई बार धरती भी इसकी जद में होती है। अब तक कई सौर तूफान पृथ्वी से टकरा चुके हैं। धरती पर इसका असर पड़ता है और आसमान में खूबसूरत सी रोशनी दिखती है। सबसे ताकतवर सौर तूफान सन 1859 में पृथ्वी से टकराया था। इसे कैरिंगटन इवेंट नाम दिया गया था। इस तूफान के कारण संचार लाइनें पूरी तरह ठप हो गई थीं।


बात खत्म करने से पहले आइए ठीक से समझ लेते हैं सोलर फ्लेयर और सनस्पॉट का। सोलर फ्लेयर सूर्य के ऊपरी वायुमंडल से निकलने वाले आवेशित कणों की धारा है। फ्लेयर्स शक्तिशाली विस्फोट हैं, जिनमें अरबों हाइड्रोजन बमों से ज्यादा में ऊर्जा रिलीज होती है। इनमें मौजूद एनर्जेटिक पार्टिकल्स प्रकाश की गति से अपना सफर तय करते हैं। अगर सोलर फ्लेयर की दिशा पृथ्वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकता है।


जब ये कण पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में फंस जाते हैं और परिणामस्वरूप जियो मैग्नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा करते हैं। इससे रेडियो संचार, पावर ग्रिड और नेविगेशन सिग्नल प्रभावित होता है‌‌। खतरा अंतरिक्ष यात्रियों एवं अंतरिक्ष यान को भी हो सकता है। इसी तरह की, लेकिन थोड़ा अलग सौर घटना कोरोनल मास इंजेक्शन भी है। यह चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं से जुड़े गैस के विशाल बुलबुले हैं, जो कई घंटों के दौरान सूर्य से निकलते रहते हैं। हालांकि, कुछ में सोलर फ्लेयर भी होते हैं, लेकिन अब यह ज्ञात हो गया है कि अधिकांश कोरोनल मास इंजेक्शन स्वतंत्र रूप से घटित होने वाली घटना है।


अब बात सनस्पॉट की, सूर्य के प्रकाश मंडल या सतह में काले दिखाई देने वाले क्षेत्रों को सनस्पॉट कहा जाता है‌। सोलर फ्लेयर की उत्पत्ति यहीं से होती है। वे काले दिखाई देते हैं क्योंकि आसपास के क्षेत्रों की तुलना में ठंडे होते हैं। हर 11 साल में सनस्पॉट दिखाई देते हैं और गायब हो जाते हैं, जिसे सनस्पॉट चक्र कहा जाता है।
ऊर्जा का असीम स्रोत है सूर्य, होगी इसकी मौत

ऋग्वेद की ऋचाओं में सूर्य के विषय में जो कुछ दर्ज है, दूसरी सभ्यताओं में भी कुछ वैसा ही है। सूर्य के लिए लैटिन में ‘सो’, ग्रीस में ‘हेलियोस’, मिस्र में ‘रा’ व ‘होरुस’ कहा गया है। ‘मित्र’ के तौर पर सूर्य की उपासना ईरान से रोम तक पहुंची।


आइए बात करते हैं ऊर्जा के इस असीम स्रोत व हम इंसानों से संबंध पर। अस्तित्व में आने के बाद से ही इंसान सूर्य से परिचित रहा है। आदि मानव ने भी देखा होगा कि सूर्य हर रोज उगता है, अस्त हो जाता है। इसी क्रम में उसके आस-पास अंधेरा-उजाला होता है। एक को दिन कहा उसने और दूसरे को रात। उसको यह अंदाजा भी हो गया होगा कि अगर सूर्य न उगे तो काला अंधकार छाया रहेगा। तब हर चीज काली और ठंडी होगी। इससे जीवन नहीं बचेगा। तभी उसने पुराने जमाने से ही सूर्य को देवता माना।
दुनिया भर की प्राचीन सभ्यताओं में इसकी पूजा हुई। हां, नाम हर सभ्यता के अपने थे। मित्तनी, हित्ती, मिस्र में सूर्य की पूजा का सामान्य स्रोत भारत ही था। ऋग्वेद की ऋचाओं में सूर्य के विषय में जो कुछ दर्ज है, दूसरी सभ्यताओं में भी कुछ वैसा ही है। सूर्य के लिए लैटिन में ‘सो’, ग्रीस में ‘हेलियोस’, मिस्र में ‘रा’ व ‘होरुस’ कहा गया है। ‘मित्र’ के तौर पर सूर्य की उपासना ईरान से रोम तक पहुंची।

Image sourced from wiki

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विज्ञान भी आज सूर्य को एक खगोलीय पिंड, ‘तारा’ बताते हुए यह प्रमाणित करता है कि हम सबके दैनिक जीवन से इसका गहरा संबंध है। इससे आने वाला प्रकाश ही पृथ्वी को जीवन देता है। यह हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे में मौजूद तकरीबन 200 अरब तारों में से एक तारा है। सूर्य हमें बाकी तारों की तुलना में ज्यादा चमकीला इसलिए दिखता है कि यह बाकी तारों की अपेक्षा धरती से ज्यादा नजदीक है। यही नजदीकी धरती के लिए सबसे महत्वपूर्ण तारा बना देती है।


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सूर्य की तह में उतरें, इससे पहले बात इसकी अपनी गति पर। पृथ्वी की तरह सूर्य भी अपनी धुरी पर घूम रहा है। सबसे पहले सनस्पॉट यानी इसके काले धब्बों से इसका पता। यह बात यही कोई 17वीं सदी की है। द ब्रिटिश लाइब्रेरी के मुताबिक, सूर्य के घूर्णन की खोज गैलीलियो गैलीली के समय से चली आ रही है। गैलीलियो और उनके समकालीन दूसरे खगोलविदों ने पहले सूर्य के काले धब्बों को देखा था। इसको उनने सनस्पॉट कहा। गैलीलियो ने सूर्य की सतह पर सनस्पॉट के साथ कुछ और भी देखा। जब वह अपनी दूरबीन से सूर्य को देख रहे थे, तो पाया कि यह काले धब्बे हिलते हैं, गायब होते हैं और फिर लौट भी आते हैं। वैज्ञानिकों ने 1612 में लिखा कि सनस्पॉट का घूर्णन सूर्य के चारों ओर हो सकता है।


बाद में सालों में अनुसंधान और अवलोकन से वैज्ञानिकों की सूर्य के बारे में जो समझ बनी है, उसमें सूर्य एक विशाल गैसीय पिंड है। सौर मंडल के दूसरे ग्रहों की तरह यह भी बाएं से दाएं यानी एंटी क्लॉक वाइज घूम रहा है। इसमें झुकाव भी है। धुरी पर सूर्य करीब 7.25 डिग्री व कक्षा तल पर 82.75 डिग्री झुका है। इसलिए हर साल हम सितंबर में सूर्य के उत्तरी ध्रुव को ज्यादा देखते हैं और मार्च में दक्षिणी ध्रुव को।


अब बात घूमने की रफ्तार की। चूंकि पृथ्वी की तरह सूर्य ठोस चट्टानों से नहीं बना है, यह आयनित गैसों का गर्म गोला है, इसमें प्रमुख हाइड्रोजन व हीलियम हैं, जिसे प्लाज्मा कहा जाता है, तभी सूर्य ठोस चट्टानों से बनी पृथ्वी की तरह नहीं घूमता। घूमने के इसके तरीके को विभेदक घूर्णन कहते हैं। इसमें सूर्य के ध्रुवों के एक चक्कर 35 दिन में पूरे होते हैं, भूमध्य रेखा का 25 दिन में। इसका मतलब है कि सूर्य पृथ्वी से धीमी गति से घूमता है। और हां, घूमने में फर्क सिर्फ इसकी सतह पर ही नहीं, इसके आंतरिक भाग की परतें भी अलग-अलग चाल से घूमती हैं। खगोलविद मानते हैं कि सूर्य का एकदम भीतरी हिस्सा; जिसे कोर कहते हैं, सप्ताह में एक बार इसकी सतह और मध्यवर्ती परतों की तुलना में चार गुना तेजी से घूमता है।

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सूर्य और उसकी अपनी संरचना
जैसा कि आपको पता है कि सूर्य एक विशाल गैसीय पिंड है। इसमें सबसे ज्यादा हाइड्रोजन और हीलियम है। दोनों आवर्त सारणी के सबसे हल्के तत्व हैं। इसके बाद नंबर ऑक्सीजन और कार्बन का है। इनके अलावा भार की दृष्टि में सूर्य की रासायनिक संरचना में अन्य तत्वों का योगदान लगभग एक प्रतिशत से भी कम है। दिलचस्प यह कि सूर्य पर हीलियम की उपस्थिति का पता पहले चला, धरती पर उसकी खोज बाद में हुई। सूर्य पर हीलियम की खोज 1868 में हुई, पृथ्वी पर इसका 1895 में पता चला।


मुख्य तत्व
हाइड्रोजन: 70.52 फीसदी
हीलियम 27.57 फीसदी
ऑक्सीजन 0.96 फीसदी
कार्बन 0.31 फीसदी
अन्य 1 फीसदी से कम

नाभिकीय संलयन से पैदा होती ऊर्जा


गैसीय पिंड सूर्य का व्यास 14,00,000 किमी है। इसमें एक के बाद एक कई परतें होती हैं। हर परत में विशिष्ट तरह की भौतिक अभिक्रिया चलती रहती हैं। सूर्य की आंतरिक परत कोर है। इसकी प्रकृति एक तरह की नाभिकीय भट्टी सी है। इसके बाद विकिरणी क्षेत्र है। फिर संवहनी क्षेत्र आता है। आगे क्रमश: प्रकाश मंडल, वर्ण मंडल और संक्रमण क्षेत्र हैं। सूर्य के सबसे बाहरी हिस्से में उसका आभामंडल (कोरोना) होता है।


यह जो सूर्य की परतें हैं, इनमें सबसे ज्यादा हलचल कोर में है। इसकी सक्रिय नाभिकीय भट्टी सभी क्षेत्रों को ऊर्जा देती है। इसमें हाइड्रोजन के दो अणु मिलकर हीलियम का एक अणु बनाते हैं। कोर में मौजूद अत्यधिक दाब व तापमान से हाइड्रोजन का जुड़ना, जुड़कर हीलियम में बदलना बनना मुमकिन हुआ है। इस संयोग से ढेर सारी ऊर्जा निकलती है। इससे उत्पन्न ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा फोटॉनों के रूप में केंद्र के बाद ऊपर की ओर विकिरणी क्षेत्र में आती है। उसके बाद की परतें संवहनी क्षेत्र आता है। यहां ऊर्जा का संवहन होना है‌।


सूर्य के चार मंडल

  1. प्रकाश मंडल (Photosphere): प्रकाश मंडल सौर वायुमंडल की सबसे निचली परत है। यहीं से अधिकांश विकिरण निकलता है। इसको आधार मानें तो इस सतह की ऊंचाई 320 किमी तक जाती है। परमाणु प्रति घन मीटर घनत्व 10”22 से 10”23 के बीच है।
  2. वर्ण मंडल (Chromosphere): क्रोमोस्फीयर सूर्य के वायुमंडल में तीन मुख्य परतों में से दूसरा है। यह 300-2,000 किलोमीटर गहरा है। इसका गुलाबी लाल रंग केवल ग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है। यह प्रकाश मंडल के ठीक ऊपर और सौर संक्रमण क्षेत्र के नीचे स्थित है।
    यह जलती हुई गैसों की अपेक्षाकृत एक पतली परत है। परमाणु प्रति घन मीटर इसका घनत्व 10”16-10”21 है।
    क्रोमोस्फीयर में हर जगह प्लाज्मा मौजूद हैं। असल में ठोस, द्रव व गैस के बाद प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था है। यह आयनित गैस है। इसमें विद्युत रूप से आवेशित कण मौजूद होते हैं। परमाणु और अणु आमतौर पर बाहरी आवरण से एक या अधिक इलेक्ट्रॉन को हटाकर आयन में बदल जाते हैं। बिजली और इसकी चिंगारी प्लाज्मा से बनी घटनाओं के रोजमर्रा के उदाहरण हैं। नियॉन रोशनी को अधिक सटीक रूप से ‘प्लाज्मा रोशनी’ कहा जा सकता है। इसके अंदर प्रकाश प्लाज्मा से आता है।
  3. संक्रमण क्षेत्र: क्रोमोस्फीयर से तापमान में वृद्धि नहीं रुकती। इसके ऊपर सौर वायुमंडल में एक क्षेत्र है। सौर वायुमंडल का सबसे गर्म भाग, जिसका तापमान दस लाख डिग्री या उससे अधिक होता है, कोरोना कहलाता है। उचित रूप से, सूर्य का वह भाग जहां तापमान में तीव्र वृद्धि होती है, संक्रमण क्षेत्र कहलाता है। यह मोटाई कुछ किलोमीटर ही है। परमाणु प्रति घन मीटर इसका घनत्व 10”16 है।
  4. कोरोना: सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग को कोरोना कहा जाता है। क्रोमोस्फीयर की तरह, कोरोना को पहली बार पूर्ण ग्रहण के दौरान देखा गया था। क्रोमोस्फीयर के विपरीत, कोरोना कई शताब्दियों से जाना जाता है। इसका उल्लेख रोमन इतिहासकार प्लूटार्क द्वारा किया गया था और केप्लर द्वारा कुछ विस्तार से चर्चा की गई थी। सूर्य का कोरोना अंतरिक्ष में लाखों किलोमीटर तक फैला हुआ है और इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सबसे आसानी से देखा जा सकता है।

    अब आते हैं सूर्य के कोर पर। दरअसल, कोर का तापमान 15×10”6 केल्विन है। जबकि घनत्व 150 ग्राम प्रति घन सेमी है। यह धरती की तुलना में 150 गुना ज्यादा है। ऐसा सूर्य के अत्यधिक गुरुत्वाकर्षणीय दबाव से होता है। इसी वजह से कोर में दबाव, घनत्व व तापमान भी बहुत होता है। इसका द्रव्यमान 2×10”30 है। यह पृथ्वी से 3,33,000 गुना ज्यादा है।
    कोर से बाहर जाने पर तापमान घटता जाता है। यह सिलसिला वर्ण मंडल तक चलता है। वहां यह तापमान घटकर 4×10”3 केल्विन रह जाता है। इसमें विकिरण के बजाय ऊर्जा का प्रवाह संवहन प्रक्रिया से उन क्षेत्रों में होता है, जिनमें तापमान घट कर 2×10”6 केल्विन से भी कम रह जाता है। इन क्षेत्रों में विकिरण के बजाय संवहन ही ऊर्जा के प्रसार का प्रभावी माध्यम है। ऊर्जा प्रसार के आधार पर ही विकिरण क्षेत्र और संवहन क्षेत्र में फर्क किया जा सकता है।
    नंगी आंखों से देखी जा सकने वाली सूर्य की सबसे अंदरूनी परत प्रकाश मंडल है, जो सूर्य के मुश्किल से दिखने वाले वायुमंडल की तुलना में अधिक चमकीला होता है। आमतौर पर हम नंगी आंखों से सूर्य के प्रकाश मंडल को देखकर ही उसके आकार का अनुमान लगाते हैं। सूर्य के प्रकाश मंडल के ठीक बाहर उसकी वायुमंडलीय परत होती है। प्रकाश मंडल की तीव्रता के कारण वर्ण मंडल से उत्सर्जित दृश्य किरणें विशिष्ट फिल्टर के बिना देखने पर श्याम नजर आती हैं।
    सूर्य ग्रहण की पूर्णता की स्थिति के दौरान चंद्रमा सूरज के प्रकाश मंडल को ढक लेता है। हालांकि, सूर्य ग्रहण की पूर्णता की स्थिति से ठीक पहले वर्ण मंडल को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है। उस समय यह लाल रंग की क्षणिक दीप्ति में दिखाई देता है। इस लाल प्रकाश का तरंग दैर्ध्य 656 नैनोमीटर होता है। इस लाल प्रकाश का उत्सर्जन हाइड्रोजन की परमाणु संरचना में परिवर्तन के कारण होता है।

    सूर्य की भी होगी मृत्यु

    पृथ्वी पर ऊर्जा का अक्षय स्रोत सूर्य है। यह लगभग पांच अरब वर्षों से चमक रहा है। सूर्य से ऊर्जा इसमें लगातार चलने वाली संलयन अभिक्रिया से निकलती है। सूर्य में विशाल द्रव्यमान से उसका गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव काफी बढ़ जाता है। नतीजतन इसके केंद्र पर अत्यधिक दबाव होता है।
    इस दबाव को तभी संतुलित रखा जा सकता है जब सूर्य के केंद्रीय भाग का तापमान अधिक हो। बहुत अधिक दाब व ताप पर हाइड्रोजन के नाभिक हीलियम के नाभिक में बदलते रहते हैं। कोर में प्रति सेकंड 42.50 लाख टन हाइड्रोजन, हीलियम में बदल रही है। सूर्य के समान अन्य तारों में भी इसी प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा होती है।
    कहने का मतलब यह कि हर पल सूर्य का हाइड्रोजन भण्डार कम होता जा रहा है। इसके खत्म होने पर हम सबको सूर्य से ऊर्जा तो नहीं ही मिलेगी, उल्टा यह धरती को निगल जाएगा। वह ऐसे कि हाइड्रोजन खत्म होने पर ठंडा होकर वह फूलने लगेगा। फूलकर सूर्य विशाल लाल तारा (रेड जायंट) बन जाएगा। आज की तुलना में उस वक्त इसका आकार 250 गुना ज्यादा होगा‌‌। तब बुध, शुक्र व पृथ्वी इस फैलाव में समा जाएंगे।
    फैलने के बाद वह एक बार फिर से सिकुड़ेगा। उस समय सूर्य में मौजूद हीलियम के परमाणु भारी परमाणु में बदलने लगेंगे। इससे भी ऊर्जा पैदा होगी‌। सिकुड़ने के क्रम में इसका आकार पृथ्वी सा हो जाएगा। इस समय यह श्वेत वामन (व्हाईट ड्वार्फ) तारा होगा। तब भी चमक इसमें रहेगी‌। आखिर में, सालों बाद यह भी चमकना बंद कर देगा और मृत श्याम वामन यानी ब्लैक ड्वार्फ पिंड में परिवर्तित हो जाएगा। सूर्य का अस्तित्व लगभग पांच अरब वर्षों से है और अगले दस अरब वर्षों तक इसका अस्तित्व कायम रहेगा।

    फैक्ट फाइल
    . सूर्य, सभी तारों की तरह अत्यंत गर्म बड़े पैमाने पर आयनीकृत गैस का एक विशाल गोला है। यह अपनी शक्ति से चमकता है।
    . इसमें 109 पृथ्वी एक साथ समा सकती है।
    . सूर्य के पास पृथ्वी की तरह कोई ठोस सतह या महाद्वीप नहीं है, न ही इसका कोई ठोस कोर है। सूर्य में पाए जाने वाले अधिकांश तत्व परमाणुओं के रूप में हैं।
    . सूर्य इतना गर्म है कि कोई भी पदार्थ तरल या ठोस के रूप में जीवित नहीं रह सकता है।
    . सूर्य इतना गर्म है कि इसमें मौजूद कई परमाणु आयनीकृत हो जाते हैं, यानी उनके एक या अधिक इलेक्ट्रॉन छीन लिए जाते हैं। उनके परमाणुओं से इलेक्ट्रॉनों को हटाने का मतलब है कि सूर्य में बड़ी मात्रा में मुक्त इलेक्ट्रॉन और सकारात्मक रूप से चार्ज किए गए आयन हैं, जो इसे विद्युत चार्ज वातावरण बनाते हैं। इस तरह की गर्म आयनित गैस को प्लाज्मा करते हैं।
    . सूर्य के निकट की वस्तुएं, जो गर्मी और प्रकाश दबाव से अधिक प्रभावित होती हैं, उच्च गलनांक वाले तत्वों से बनी होती हैं।
    . हमारा सौर मंडल जिस आकाशगंगा में है, उसे मिल्की वे कहा जाता है।
    सूर्य के लक्षण

    आयु: करीब पांच अरब वर्ष।
    पृथ्वी से औसत दूरी: (1.4960±.0003)×10”8 किमी
    त्रिज्या: (6.960±.001)×10”5 किमी
    द्रव्यमान: (1.991±.002)× 10”33 ग्राम
    औसत घनत्व: (1.410±.002) × ग्राम घन सेमी
    सतह पर गुरुत्वाकर्षण: (2.738±003)× 10”4 सेमी प्रति सेकंड
    संपूर्ण ऊर्जा उत्पादन: (3.86±.03)×10”33 अर्ग/सेकंड
    सतह पर ऊर्जा प्रवाह: (6.34±07)×10”10 अर्ग वर्ग सेमी सेकंड
    सतह का प्रभावी तापमान: 5780 ± 50 केल्विन
    तारकीय कांति मान (प्रकाश-दृश्य): -26.73±.03
    निरपेक्ष कांति मान (प्रकाश-दृश्य): +4.84±.03
    घूर्णन धुरी का क्रांतिवृत्त: 7 डिग्री
    घूर्णन अवधि: औसतन 27 दिन। सूर्य अपनी धुरी पर किसी ठोस पिंड की तरह चक्कर नहीं लगाता। विषुवत रेखा पर इसकी घूर्णन अवधि 25 दिन होती है। जबकि ध्रुवीय प्रदेश की ओर बढ़ने पर यह समय क्रमशः बढ़ता दिखाई देती है। ध्रुवों पर यह अवधि 31 दिन की है।

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