1913 में मशहूर लेखक अकबर अलाहाबादी दिल्ली में थे। जल्वा-ए-दरबार-ए-दिल्ली में वह लिखते हैं;
जमुना-जी के पाट को देखा
अच्छे सुथरे घाट को देखा
सब से ऊंचे लाट को देखा
हजरत ‘डिऊक-कनॉट’ को देखा।

दिल्ली दरबार में शामिल होने भारत आया एक अंग्रेज लेखक यमुना नदी, उसके फ्लड प्लेन और साफ-सुथरे घाटों को देखकर प्रभावित हुआ। 1932 के ब्रिटिश लेखक आरवी स्मिथ ने भी इसकी तस्दीक की है। मतलब, आजादी मिलने तक यमुना नदी ठीक थी।

पानी में खराबी का पहला आभास 1955-1956 में उस वक्त हुआ, जब दिल्ली में महामारी फैली। एक आकलन के अनुसार, उस वक्त दिल्ली की 68 फीसदी आबादी (17,86,000) इससे प्रभावित थी और 90 लोगों की मौत हुई। आईसीएमआर की उस वक्त गठित शोध टीम की रिपोर्ट बताती है कि अशोधित पानी मिलने से यमुना नदी का पानी खराब हुआ। और नदी का पानी दिल्ली पीती है। महामारी इसी से फैली है।

जहां आज सिग्नेचर ब्रिज है, उसके थोड़ा ऊपर डैम बनाने की सिफारिश आईसीएमआर की कमेटी ने की। इसी ने दिल्ली के साथ यमुना नदी की भी किस्मत तय कर दी। 1959 बैराज बन भी गया। इसके नीचे नजफगढ़ ड्रेन आ गई। इससे नाले का गंदे पानी नदी के उस पानी से अलग हो गया, जहां से दिल्लीवालों की यह प्यास बुझाती है। अभी भी नदी और नाले का मिलन मटमैले और काले के तौर पर साफ-साफ दिखता है। आगे ओखला तक के 22 किमी हिस्से में यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित है, अपने महज दो फीसदी हिस्से में 70 फीसदी से भी ज्यादा।

(सभी फोटो: सरिता गुप्ता)