दो दिन बिहार में रहेंगे संघ प्रमुख, सियासी हलचल तेज

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत दो दिन के बिहार दौरे पर हैं। वह संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। चुनाव के चार महीने पहले संघ प्रमुख के दौरे ने प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर दी है। पटना से सुजीत कुमार की रिपोर्ट...

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पटना: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत दो दिनों तक बिहार पर हैं। मंगलवार व बुधवार वह संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव से महज 4 माह पहले संघ प्रमुख के दौरे ने प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर दी है। वह इसलिए भी कि 2015 विधान सभा चुनाव से पहले इनके आरक्षण से जुड़े एक बयान ने भाजपा को सियासी नुकसान पहुंचाया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का दो दिवसीय बिहार प्रवास मंगलवार से शुरू हो गया है। संघ प्रमुख पटना के मरचामरची रोड स्थित केशव सरस्वती विद्या मंदिर में चल रहे कार्यकर्ता प्रशिक्षण वर्ग; प्रथम वर्ष, विशेष, में जाएंगे। सरसंघचालक वहां चल रहे वर्ग का निरीक्षण करेंगे और स्वयं सेवकों को संबोधित करेंगे। 11 जून, शाम उनकी वापसी है।

दिलचस्प यह कि चुनावी साल में मोहन भागवत का दूसरा बिहार दौरा है। इससे पहले मार्च महीने में वह पांच दिनों के लिए बिहार में थे। उस वक्त उन्होंने तीन दिन मुजफ्फरपुर और दो दिन दूसरे इलाकों में प्रवास किया था। चुनावी साल में संघ प्रमुख का दौरा पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए अहम माना जा रहा है।

2015 के एक बयान से भाजपा का हुआ था सियासी नुकसान

2015 बिहार विधानसभा चुनाव से पहले संघ प्रमुख के एक बयान ने चुनाव का सारा खेल बदल दिया था। संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ और ‘ऑर्गेनाइजर’ को दिए इंटरव्यू में भागवत ने कहा था, आरक्षण की जरूरत और उसकी समय सीमा पर एक समिति बनाई जानी चाहिए। आरक्षण पर राजनीति हो रही है। और इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। इसे देखते हुए आरक्षण पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

इस बयान के आने के बाद विपक्षी दलों ने भाजपा को कटघरे में खड़ा करते हुए इस बयान को आरक्षण खत्म करने की सरकार की मंशा करार दिया। चुनाव में हुई करारी हार के पीछे की वजह भी इसी बयान को बताया गया। विपक्ष ही नहीं, भाजपा के कई नेताओं ने भागवत को हार का जिम्मेदार बताया था।

सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के लिए भी दौरा अहम

संघ प्रमुख का बिहार दौरा सत्तारूढ़ भाजपा नीत गठबंधन के साथ विपक्ष के लिए अहमियत रखता है। संघ प्रमुख के हर एक बयान पर राजद की पैनी नजर रहती है। विधानसभा चुनाव 2015 में आरक्षण नीति की समीक्षा करने संबंधी संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी को अपने पक्ष में भुनाने में सफल रहे थे। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने दावा किया था कि बिहार में 1995 जैसे हालात हैं जब ‘मंडल बनाम कमंडल’ की राजनीति के दौर में जनता दल विजयी हुआ था।

3S फार्मूले पर काम कर रहा संघ

जानकारों का कहना है कि बिहार में भाजपा के हक में माहौल बनाने के लिए आरएसएस 3S यानि शक्ति, शाखा और संपर्क फॉर्मूले पर काम कर रहा है। आरएसएस का मकसद वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ाना है। माना जा रहा है कि अगर भाजपा के नाराज वोटर्स बूथ तक जाएंगे तो वे भाजपा को ही वोट देंगे। इसमें कोई शक सुबह नहीं है।

संघ जानता है कि अमूमन सत्तासीन पार्टी के प्रति नाराजगी रहती है। आरएसएस इसी नजरिए पर काम करती है। हरियाणा इसका माकूल उदाहरण है। यहां भाजपा की दिखने वाली हार को बंपर जीत में बदलने में आरएसएस की अहम भूमिका बताई गई। दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी की करारी हार की बड़ी वजह संघ का भाजपा को मिलने वाला मजबूत बैकअप रहा।

जानकारों का मानना है कि हरियाणा की तरह बिहार में मुख्यमंत्री बदलने का प्रयोग तो आरएसएस नहीं कर सकती है, लेकिन संगठन के कार्यशैली से भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में संख्या बल के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी बना सकती है।

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