इसरो के साथ चलेगा RPCAU, खुशहाल होगी खेती-किसानी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (एसएसी) और डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा एक साथ मिलकर काम करने जा रहे हैं। इससे वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा मिलेगा ही, फसल की उत्पादकता के साथ गुणवत्ता का अनुमान लगाना भी संभव होगा।

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समस्तीपुर: ISRO और RPCAU की साझेदारी खेती-किसानी के लिए बेहद अहम मानी जा रही है। इसमें इसरो का एसएसी पूसा परिसर में उच्च-रिजॉल्यूशन एडी कोवेरियंस (Eddy Covariance) टावर लगाएगा। इस टावर से कृषि और जलवायु अध्ययन के लिए उच्च गुणवत्ता वाले फ्लक्स डेटा (मसलन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प व ऊर्जा प्रवाह) जुटाया जा सकेगा। इन आंकड़ों से शोध कार्यों में मदद मिलेगी। नतीजा खेती-किसानी की समझ बढ़ने के साथ इसका प्रबंधन भी ठीक तरीके से होगा। यह पहल अंतरिक्ष आधारित कृषि मिशनों के लिए मजबूत आधार तैयार करेगी।
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पुण्य व्रत सुविमलेंदू पांडेय का कहना है कि इससे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को भी बहुत हद तक राहत मिलेगी। किसानों को भी इसका फायदा मिलेगा। इस पहल से कार्बन और जल प्रवाह की निगरानी में वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोगी अनुसंधान मजबूत होगा।

डाटा उत्पन्न करना मकसद
ईसी टावर से फसल उत्पादकता का अनुमान लगाने और भूमि-वायुमंडल अंतः क्रिया अध्ययन के लिए डेटा उत्पन्न करने में मदद मिलेगी। इससे मिलने वाले आंकड़ों से सकल प्राथमिक उत्पादकता (Gross Primary Productivity या GPP) और शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (Net Primary Productivity या NPP) सरीखे संकेतकों का सटीक विश्लेषण कर सकेंगे। इसके अलावा वाष्पीकरण, जल संतुलन, फसल जल उपयोग दक्षता व जल उत्पादकता का मूल्यांकन भी मुमकिन होगा। यह जल संसाधन के प्रबंधन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

शोध खेती किसानी के लिए होगा कारगर
यह साझेदारी कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में कारगर साबित होगी। ईसी टावर से जलवायु और खेती-किसानी के बीच के संबंधों को समझने में मदद मिलेगी ही, किसानों के लिए टिकाऊ व वैज्ञानिक नजरिए पर आधारित खेती करने के तरीके से सामने आएंगे। डेटा अध्ययन के आधार पर जलवायु लचीली खेती की दिशा में मजबूती से बढ़ना संभव होगा। यह बिहार सरीखे कृषि प्रधान राज्य में खास फायदेमंद होगा।

GPP और NPP समझना इसलिए जरूरी
GPP वह दर है, जिस पर एक इको सिस्टम में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से कार्बनिक पदार्थ का उत्पादन होता है। यह ऊर्जा की कुल मात्रा है, जिसे पौधों प्रकाश संश्लेषण से ग्रहण करते हैं और यह उनका भोजन होता है। इसे आमतौर पर कार्बन बायोमास के रूप में मापा जाता है।
दूसरी तरफ श्वसन क्रिया करने के बाद पौधे में जो ऊर्जा बचती है, उसे NPP कहते हैं। एक फार्मूला से अगर इसे समझें तो NPP=GPP-पौधों द्वारा श्वसन में उपयोग की गई ऊर्जा।
कहने का मतलब यह कि GPP का संबंध किसी इको सिस्टम में उस ऊर्जा के उत्पादन से है, जो पौधे का प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से मिलती है। वहीं, इसी ऊर्जा का इस्तेमाल पौधे श्वसन प्रक्रिया में भी करते हैं। इसके बाद जो ऊर्जा पौधे में बचती है, वह NPP है। NPP से ही पौधे की पोषकता तय होती है।

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