नई दिल्ली: नीति आयोग ने भारत को वैश्विक रासायनिक विनिर्माण महाशक्ति बनाने के लिए महत्वाकांक्षी कार्ययोजना तैयार की है। ‘रसायन उद्योग: वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की भागीदारी का सशक्तिकरण’ नाम की रिपोर्ट इस सेक्टर के लिए भविष्य की संभावनाओं पर रोशनी डालती है। इसमें पेश योजना पर काम करने से 2040 तक एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का रासायनिक उत्पादन होगा। इसके लिए 2023 में 3.5 फीसदी की Global Value Chains भागीदारी को 2040 तक बढ़ाकर पांच से छह फीसदी करना है। भारत के रसायन उद्योग के लिए इसे अहम माना गया है। इससे बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित होगा। 2030 तक सात लाख अतिरिक्त रोजगार सृजित करना इसका मकसद है।
रिपोर्ट भारत के रसायन क्षेत्र का विश्लेषण करती है। इसमें अवसरों और चुनौतियों दोनों पर प्रकाश डाला गया है। साथ में वैश्विक रसायन बाजार में भारत की अहम भूमिका बनाने के लिए रूपरेखा भी पेश की गई है। रिपोर्ट बताती है कि भारत के रासायनिक क्षेत्र का स्वरूप और जीडीपी में इसके अहम योगदान के बावजूद बुनियादी ढांचे की कमी है। वहीं, नियामक पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा कम अनुसंधान और विकास गतिविधियों से भी प्रगति ठीक नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक, Global Value Chains (GVC) में भारत की भागीदारी 3.5 फीसदी है। 2023 में रसायनिक क्षेत्र 31 बिलियन अमरीकी डॉलर का है। इसमें व्यापार घाटा होने के साथ आयातित कच्चे सामान और विशेष रसायनों पर इसकी ज्यादा निर्भरता है। फिर भी इसमें संभावना पर्याप्त है। इसके लिए राजकोषीय और गैर-राजकोषीय हस्तक्षेप करने की जरूरत रिपोर्ट में बताई गई है। इन लक्षित सुधारों के साथ भारत का रसायनिक क्षेत्र 2040 तक एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा। इससे GVC भागीदारी 12 फीसदी तक पहुंच जाएगी।
भारत के रासायनिक क्षेत्र के समक्ष चुनौतियां
आयातित कच्चे सामान पर भारी निर्भरता है। इससे 2023 में 31 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ। बुनियादी ढांचे की कमी, पुराने औद्योगिक क्षेत्र और उच्च रसद लागत ने अन्य देशों की तुलना में लागत में बढ़ोत्तरी की है। इसके अतिरिक्त अनुसंधान और विकास में वैश्विक औसत 2.3 प्रतिशत के मुकाबले में भारत में केवल 0.7 प्रतिशत का निवेश होता है। इससे उच्च मूल्य वाले रसायनों में स्वदेशी नवाचार में बाधा आती है। इसके साथ क्षेत्र में कुशल पेशेवरों की 30 फीसदी की कमी है। इसमें विशेष रूप से हरित रसायन, नैनो प्रौद्योगिकी और प्रक्रिया सुरक्षा जैसे उभरते हुए क्षेत्र सम्मिलित हैं।
विकास के लिए प्रस्तावित कार्ययोजना
- वर्तमान के औद्योगिक क्षेत्रों का पुनरुद्धार और नए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करके भारत में विश्व स्तरीय रासायनिक केंद्र स्थापित करना।
- केन्द्रीय स्तर पर अधिकार प्राप्त समिति की स्थापना हो। इसके तहत एक रासायनिक कोष का सृजन किया जाए, जिसमें साझा अवसंरचना विकास आदि के लिए बजटीय प्रावधान हो।
- रासायनिक हब स्तर पर प्रशासनिक निकाय, जो हब के समग्र प्रबंधन को संभालेगा।. मौजूदा पत्तनों पर बुनियादी ढांचे का विकास किया जाए।
- पत्तनों पर रसायन व्यापार में अवसंरचना संबंधी कमियों पर सलाह देने और उन्हें दूर करने के लिए रसायन समिति का गठन हो।
- उच्च क्षमता वाले 8 औद्योगिक क्षेत्रों का विकास हो।
- रसायनों के लिए परिचालन व्यय सब्सिडी योजना लाई जाए।
- आयात व्यय, निर्यात क्षमता, एकल स्रोत देश पर निर्भरता, लक्षित बाजार पर विशेष ध्यान आदि के आधार पर रसायन के वृद्धिशील उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए।
- आत्मनिर्भरता बढ़ाने और नवाचार को प्रोत्साहन देने के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास और उन तक पहुंच बनाई जाए।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ भागीदारी को प्रोत्साहन देकर भारत के बाहर उपलब्ध विशिष्ट प्रौद्योगिकियों तक पहुंच संभव हो।
- पारदर्शिता और उत्तरदायिता के साथ पर्यावरणीय अनुमति में तेजी लाई जाए।
- उद्योग विकास को सहयोग देने के लिए मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) किया जाए।
- रसायन उद्योग में प्रतिभा और कौशल उन्नयन हो।
- आईटीआई और विशेष प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार हो।
- संकाय और शिक्षक प्रशिक्षण बेहतर किया जाए।
- उद्योग-अकादमिक भागीदारी बढ़ाई जाए। इसमें पेट्रोकेमिकल्स, पॉलिमर विज्ञान और औद्योगिक सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में उद्योग प्रासंगिक पाठ्यक्रम शुरू कर सकते हैं।
2030 की कार्ययोजना
वैश्विक रासायनिक मूल्य श्रृंखला में 5 से 6 प्रतिशत की भागीदारी के साथ भारत को वैश्विक रासायनिक विनिर्माण महाशक्ति बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए मौजूदा उत्पादन स्तर को दोगुना करना करना पड़ेगा। वहीं, 2023 में व्यापार घाटे को 31 बिलियन अमरीकी डॉलर से काफी कम करके शुद्ध शून्य व्यापार संतुलन तक पहुंचाना है। इस पहल से 35-40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त निर्यात होगा, जिससे लगभग 7 लाख कुशल नौकरियां सृजित होंगी।