नई दिल्ली: भारत अमूमन कुछ ही मसलों पर एक होता है। इसमें से एक तो क्रिकेट है और दूसरा राष्ट्र। जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर होकर इनमें हर कोई भारतीय हो जाता है। देश में आए किसी भी संकट के वक्त तो और भी, जब उत्तर से धुर दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक हर जगह एक ही सुर होता है। भारत पाक तनाव के बाद इस वक्त राष्ट्रवाद सबसे ऊपर है। और इसी सोच को भाजपा हवा देने की कोशिश कर रही है। पार्टी के सिंबल से ज्यादा इस वक्त भाजपा की रैलियों में तिरंगा दिखता है।
इसमें प्रधानमंत्री ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। वहीं, भाजपा कार्यकर्ता चारों तरफ तिरंगा फहराते नजर आते हैं। यह वैसे ही बनता जा रहा है, जैसे राष्ट्रवादी कहने का मतलब तुरंत विपक्ष भाजपा से जोड़ लेता है। और हर राष्ट्रवादी सोच को विपक्ष भाजपाई करार देने लगता है। यह भाजपा के लिए टॉनिक का काम कर रहा है। वैसे ही, यदि यही स्थिति रही तो अब तक तिरंगा को लेकर आगे-आगे चलने वाले विपक्ष के हाथ से तिरंगा भी निकल जाएगा। खुद विपक्ष तिरंगा लेकर चलने का मतलब जब भाजपा से लगाने लगे।
विपक्ष को किया शांत, खुद निकले प्रचार में
वर्तमान परिदृश्य पर गौर करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपरेशन सिंदूर के बाद एक तरफ सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को विदेशों में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजकर बहुतेरे विपक्ष के नेताओं का भी दिल जीत लिया। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजने का सबसे बड़ा फायदा विपक्ष को थोड़ा शांत करने मिला। इसके बाद प्रधानमंत्री स्वयं ताबड़तोड़ रैलियों में जुट गये। रैली कर माहौल को सिर्फ राष्ट्रवादी ही नहीं बनाया, भाजपा के पक्ष में भी लगातार माहौल बनाते जा रहे हैं। शुक्रवार को कानपुर में रैली है। चारों तरफ उत्साह दिख रहा है। इससे पहले सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार में प्रधानमंत्री ने रैली की।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन रैलियों में भाजपा का झंडा न दिखने के पीछे भी भाजपा की सोची-समझी रणनीति हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि किसी भी मुद्दे पर जब तक विपक्ष अभी कुछ सोच रहा होता है, उस समय तक भाजपा चार कदम आगे बढ़ गई होती है। इस मामले में भी यही हुआ है। अब तो ऐसा ही लगता है कि धीरे-धीरे विपक्ष तिरंगे का विरोधी बन जाएगा और तिरंगा लेकर चलने का मतलब भाजपाई हो जाना खुद विपक्ष कहने लगेगा। यही भाजपा चाहती भी है। बिना कुछ कहे, सब कुछ विपक्ष से कहलवा देना चाहती है, जो जनता को खुद विपक्ष का विरोधी बना दे।
विपक्ष की बढ़ रही धड़कनें
जब से तिरंगा यात्रा की शुरू भाजपा ने की है, विपक्ष की धड़कने बढ़ती जा रही है। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि प्रधानमंत्री आपरेशन सिंदूर और देश के जवानों के नाम पर राजनीति कर रहे हैं। कुछ हद तक इन आरोपों में हकीकत भी हो सकती है, लेकिन यदि प्रधानमंत्री के आदेशों के बाद सेना ने फतह हासिल की, तो आखिर उसका श्रेय तो प्रधानमंत्री को जाएगा ही।
पहले भी युद्ध पर होती रही है राजनीति
ऐसा भी नहीं है कि इस युद्ध को ही पहली बार राजनीति में भुनाया जा रहा है। कांग्रेस अब तक यही कहती रहती है कि हमने पाकिस्तान का दो भाग कर दिया। यह भी तय है कि हमेशा युद्ध में विजय का प्रभाव सत्ताधारी पक्ष भुनाता ही रहा है। इसका असर आने वाले चुनावों पर भी पड़ना स्वाभाविक ही है। इससे पहले भी पाकिस्तान के खिलाफ जब मोदी सरकार ने हमला किया था तो दूसरी बार पहली बार से ज्यादा सीटों के साथ लोकसभा में आ गयी।
बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसा बन चुका है माहौल
हम आपस में चाहे जितना धर्म, जाति के नाम पर लड़ते रहें, लेकिन बाहरी दुश्मनों के लिए सब एक हो जाते हैं। उन पर एकजुट होकर प्रहार करने में हम हमेशा आगे रहते हैं। इस ऑपरेशन सिंदूर ने भी हम सभी को एकजुट कर दिया है। इस बीच चर्चा भले न हो लेकिन राष्ट्रवादी राजनीति हावी होती दिख रही है। यह पूरी तरह बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद बने माहौल जैसा ही है। एक बार फिर पक्ष-विपक्ष का खेल बन चुका है, सरकार खुद को मजबूत इच्छाशक्ति वाली बता रही है, विपक्ष ऑपरेशन पर सवाल उठा रहा है, सीजफायर को मुद्दा बना रहा है।
राष्ट्रवादी से आगे बढ़ अब तिरंगावादी कहलाएगी भाजपा
इसी राष्ट्रवादी राजनीति का फायदा भाजपा उठा रही है। इसी कारण भाजपा ने अपने झंडे का प्रयोग कभी नहीं किया। इस बीच जहां भी रैली या सभा हो रही है, सिर्फ तिरंगा ही दिख रहा है। इसके बावजूद विपक्ष को यह राष्ट्रवादी राजनीति का हावी होना नहीं दिख रहा। प्रधानमंत्री द्वारा शुरु किये गये तिरंगे से पहले ही यदि विपक्ष देश के जवानों की शौर्यगाथा में तिरंगा यात्रा निकाल दिया होता तो बात ही कुछ और होती, लेकिन विपक्ष कुछ करना नहीं चाहता या यूं कहें कि विपक्ष की सोच जहां खत्म होती है, प्रधानमंत्री की सोच वहीं से शुरू होती है। विपक्ष को सिर्फ हल्ला ही हाथ लगता है और राजनीतिक दृष्टि से उसकी सोच काफी पिछड़ती जा रही है।