गया: देश के दूसरे हिस्सों की तरह गया में भी हलचल तेज थी। 25 जून, आपातकाल की घोषणा से पहले शहर में हर दिन नया घटता था। जेपी आंदोलन में जुलूस, धरना और प्रदर्शन की झड़ी लगी हुई थी। तत्कालीन सरकार के खिलाफ युवाओं व छात्रों में रोष बढ़ता जा रहा था। इसी दौरान गया की फायरिंग की घटना ने आंदोलन को हवा दे दी थी। फायरिंग पर स्थानीय निवासियों में जितने मुंह, उतनी बातें। कहा गया कि इसमें दर्जनों लोग मारे गए, लेकिन सरकारी रिकार्ड में मृतकों की संख्या तीन दर्ज है।
गया कोर्ट में वकालत करने वाले अधिवक्ता पवन कुमार मिश्र बताते हैं कि गोली कांड अप्रैल 1974 में तब हुआ, जब छात्र-युवाओं की टोली गया के मुख्य डाकघर के सामने धरने पर बैठी थी। उस समय छात्रों पर हुए लाठीचार्ज से रोष भड़का। फिर, लोगों ने मौन जुलूस निकाल कर गांधी मैदान में सभा की। इसी दौरान छात्रों के साथ हुए संघर्ष के बाद पुलिस ने फायरिंग कर दी।
जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे गया शहर के प्रो. कौशल किशोर द्विवेदी बताते हैं कि यह घटना 12 अप्रैल 1974 को हुई थी। पुलिस मौन जुलूस निकालने वाले लोगों को तितर-बितर करने के लिए गोलियां चलायी थीं। इसमें तीन लोग मारे गए थे, जिनमें एक लड़का गया शहर से ही था। इसका नतीजा यह हुआ कि जेपी मूवमेंट को अप्रत्याशित ताकत मिली और लोग आंदोलन से जुड़ते गए।
शेरघाटी के सुरेश सिंह का कहना है कि आंदोलन में गया की लाल कोठी भी चर्चा में रही थी, जहां रहने वाले अली हैदर भी आंदोलन में अति सक्रिय थे। मानपुर के केशव बाबू का भी अग्रिम पंक्ति के आंदोलनकारियों में नाम लिया जाता है।
पुरानी यादों को ताजा करते हुए कौशल किशोर द्विवेदी कहते हैं कि तब गया में पिता महेश्वर के अखौरी निरंजन, अशोक शर्मा, बिहार सरकार के मंत्री प्रेम कुमार और दु:खहरिणी पाठक के आसपास के अरविंद सिंहा और रेलवे कॉलोनी के सुनील गुप्ता आदि बहुत सक्रिय थे, इनमें से ज्यादातर जेल भी गए थे।

जेपी आंदोलन में छात्रों पर गिरी पुलिस की गाज
जेपी आंदोलन के दौरान शेरघाटी के कई युवाओं को जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी थी। ऐसे ही एक युवा थे, शेरघाटी प्रखंड के पलकिया गांव के मिथलेश सिंह, जो अब 76 वर्ष के हो चुके हैं। गिरफ्तारी की ऐसी ही घटना को याद करते हुए कहते हैं कि 23 जुलाई 1974 को जब वह अपने साथी छात्रों और युवाओं के साथ एक जुलूस लेकर शेरघाटी के एसएमएसजी कॉलेज की तरफ बढ़ रहे थे, तो वहां तैनात शेरघाटी के तत्कालीन थाना प्रभारी ने जुलूस का नेतृत्व करने वाले दो व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया। इनमें उनके साथ गोला बाजार के ही राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल थे। जुलूस में शामिल शेरघाटी ब्लाक के रामचरित्र प्रसाद तब पकड़ में नहीं आ सके थे। जुलूस कॉलेज गेट पर धरना देने जा रहा था। कॉलेज की परीक्षा चल रही थी, इसलिए वहां पुलिस और मजिस्ट्रेट पहले से तैनात थे।
शेरघाटी में दवा दुकान के पास से गिरफ्तार हुए थे नर्मदेश्वर पाठक
जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे सुरेश सिंह, देवेंद्र दत्त पाठक और विजय दत्त पाठक बताते हैं कि इमरजेंसी लगने के बाद जेपी आंदोलन के नेता नर्मदेश्वर पाठक को पुलिस ने गोला बाजार में एक दवा दुकान से गिरफ्तार कर लिया, वह नौ महीने में जेल में रहे थे। जेल जाने वालों में शुमाली मुहल्ले के मसरूर आलम भी थे। तब शेरघाटी थाने में एक दारोगा थे इंद्रदेव सिंह और वह बहुत क्रूर माने जाते थे। आंदोलनकारियों में टिकारी के रहने वाले इश्वरी प्रसाद, इमामगंज के सलाउद्दीन खान, नवादा गांव के अनिरूद्ध प्रसाद आदि भी शामिल थे। पलकिया के ब्रजेश सिंह कहते हैं कि आंदोलन के समय तो वह छोटे थे, मगर जुलूस, हंगामा की बातें उन्हें भी याद हैं।
जेपी को शेरघाटी के लोगों ने भेंट की थी 2100 रुपये की थैली
गया जी के शेरघाटी में जेपी के संपूर्ण क्रांति के आह्वान के बाद युवाओं में बड़ा जोश था। युवाओं के जोश की इस चिंगारी को हवा देने में लगे थे स्थानीय नेता नर्मदेश्वर पाठक और खादी बोर्ड के मैनेजर नंदी बाबू। नर्मदेश्वर पाठक के पुत्र और रिटायर्ड शिक्षक विजय दत्त पाठक याद करते हैं कि इमरजेंसी लागू होने के पूर्व सन 74 में जेपी भी शेरघाटी आए थे और रंगलाल हाई स्कूल में सभा करने के बाद देवीमठ मुहल्ले में स्थित नर्मदेश्वर पाठक के खपड़ैल मकान में ठहरे भी थे। रात में घर के आंगन में पीढ़े पर बैठकर उन्होंने परिवार के अन्य लोगों के साथ भोजन किया था। साथ में प्रभावती भी थीं। देवेंद्र दत्त पाठक के मुताबिक जेपी की सभा की एक खास बात यह थी कि इसमें जेपी के एक वोट-एक नोट के नारे के बाद सभा में आए लोगों ने चंदा इकट्ठा किया था और जेपी को 2100 रुपयों की थैली भेंट की गई थी। जेपी की सभा से युवाओं में जोश भर गया था।
सुरेश सिंह बताते हैं कि जेपी के आने के पूर्व शहर में नर्मदेश्वर पाठक के अलावा स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में एक जुलूस भी निकाला गया था। समाजवादी राजनीति से जुड़े सुरेश सिंह बताते हैं कि खादी बोर्ड के नंदी बाबू अक्सर अपने झोले से क्रांति के पर्चे निकाल कर दिया करते थे, जबकि जुलूस प्रदर्शन की सूचना माइक के जरिए मसरूर आलम लोगों तक पहुंचाया करते थे।