नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते को रद्द कर पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया था। अब बांग्लादेश के साथ गंगा जल समझौते को लेकर भी भारत सख्त रवैया अपनाने की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक, 1996 में हुआ गंगा जल समझौता (Ganga Water Treaty) अपने अंतिम पड़ाव पर है, और भारत ने संकेत दिए हैं कि इसे पुरानी शर्तों पर नवीनीकृत नहीं किया जाएगा।
भारत ने बांग्लादेश को अनौपचारिक रूप से सूचित किया है कि नया समझौता वर्तमान जलवायु परिवर्तन, क्षेत्रीय जरूरतों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तैयार होगा। बांग्लादेश की यूनुस सरकार में इस फैसले से बेचैनी बढ़ गई है, खासकर तब जब हाल के समय में ढाका ने भारत के प्रति कुछ विरोधी रुख अपनाया है।
गंगा जल समझौता क्या है?
1996 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच हुए गंगा जल समझौते में फरक्का बैराज पर जल बंटवारे का फॉर्मूला तय किया गया था। इसके तहत शुष्क मौसम (जनवरी से मई) में, यदि फरक्का बैराज पर जल प्रवाह 75,000 क्यूसेक या उससे कम हो, तो दोनों देशों को 35,000 क्यूसेक पानी बराबर मिलेगा। अगर प्रवाह इससे अधिक हो, तो भारत को 40,000 क्यूसेक और बाकी बांग्लादेश को मिलेगा। यह समझौता 30 साल के लिए था और 2026 में खत्म होने वाला है। लेकिन भारत का कहना है कि अब लंबी अवधि का ऐसा समझौता संभव नहीं है। पिछले तीन दशकों में जलवायु परिवर्तन, बारिश के पैटर्न में बदलाव और पश्चिम बंगाल में बढ़ती कृषि व कोलकाता बंदरगाह की जरूरतों के कारण पुरानी शर्तें अब प्रासंगिक नहीं हैं।
नए समझौते की मांग और नई शर्तें
भारत अब 15 साल की अवधि के लिए एक नया समझौता चाहता है, जिसमें जल बंटवारे का नया फॉर्मूला होगा। बांग्लादेश की कुछ नीतियां और भारत विरोधी रवैया भी भारत के इस सख्त रुख की वजह माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में स्थित फरक्का बैराज गंगा नदी को दो हिस्सों में बांटता है—हुगली नदी भारत में और पद्मा नदी बांग्लादेश में बहती है। 1950 के दशक में शुरू हुए इस बैराज का उद्देश्य कोलकाता बंदरगाह के जल स्तर को बनाए रखना और पश्चिम बंगाल के जल संकट को दूर करना था।
बांग्लादेश की चिंता
इस मुद्दे पर पहले पांच साल का अस्थायी समझौता किया, फिर 1996 में स्थायी समझौता हुआ। लेकिन अब भारत के बदले रुख ने ढाका में हलचल मचा दी है। बांग्लादेश को डर है कि अगर भारत जल प्रवाह को और नियंत्रित करता है, तो शुष्क मौसम में वहां कृषि, पेयजल और पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ेगा।
ढाका में कूटनीतिक सक्रियता
भारत के इस रुख से बांग्लादेश में राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर चिंता बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा जल बंटवारे पर नया समझौता तभी संभव होगा, जब दोनों देश बदलती पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक परिस्थितियों को स्वीकार करें। बांग्लादेश के लिए गंगा का पानी न केवल कृषि और पेयजल के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उसके पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित करता है। भारत का यह कदम क्षेत्रीय रिश्तों और जल प्रबंधन की दिशा में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
निष्कर्ष
भारत का यह फैसला न केवल जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय जरूरतों को ध्यान में रखता है, बल्कि बांग्लादेश के हालिया रुख को भी जवाब देता है। गंगा जल समझौते का भविष्य अब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत और आपसी सहयोग पर निर्भर करेगा।