नई दिल्ली: धरती पर 14 लाख से अधिक झीलें (Lake), जिनका आकार 10 हेक्टेयर या उससे बड़ा है, न केवल पानी की आपूर्ति और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, बल्कि ये हमारे पर्यावरण और सतत विकास के लिए भी अनमोल हैं। ये झीलें भूवैज्ञानिक इतिहास की कहानियां समेटे हुए हैं, लेकिन आज ये इंसानों की तरह ही स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं। अगर समय रहते इनका उपचार न किया गया, तो यह संकट गंभीर रूप ले सकता है, जिसका असर न केवल पर्यावरण पर, बल्कि लाखों लोगों के जीवन पर भी पड़ेगा।
झीलों का स्वास्थ्य: इंसानों जैसी चुनौतियां
झीलें भी जीवित प्रणालियों की तरह है, जिन्हें स्वच्छ पानी, ऑक्सीजन, और संतुलित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन, मानवीय गतिविधियों और प्रदूषण के कारण ये झीलें कई समस्याओं का शिकार हो रही हैं। इनमें ऑक्सीजन की कमी, पोषक तत्वों का असंतुलन, तापमान में बदलाव, विषाक्तता, और जल परिसंचरण से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं। ये दिक्कतें इंसानों की स्वास्थ्य समस्याओं से मिलती-जुलती हैं, जैसे श्वसन रोग, चयापचय संबंधी विकार, और संक्रमण। यदि इनका समय पर इलाज न किया गया, तो झीलों का पारिस्थितिकी तंत्र स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है।
झीलों पर निर्भरता और खतरा
दुनिया की लगभग 12 फीसदी आबादी, यानी करीब 90 करोड़ लोग, इन झीलों के तीन किलोमीटर के दायरे में रहते हैं। ये लोग अपनी आजीविका, पानी, और अन्य संसाधनों के लिए इन झीलों पर निर्भर हैं। जर्नल अर्थ फ्यूचर में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, झीलों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मानव स्वास्थ्य देखभाल की तर्ज पर रणनीतियां अपनाने की जरूरत है। इसमें समस्याओं की रोकथाम, नियमित निगरानी, और स्थानीय से वैश्विक स्तर तक समाधान लागू करना शामिल है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि झीलों के स्वास्थ्य को ‘सहरुग्णता’ (कई बीमारियों का एक साथ होना) के रूप में देखा जा सकता है, और नियमित जांच से इन समस्याओं का जल्द पता लगाया जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर झीलों की स्थिति
शोधकर्ताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मानव स्वास्थ्य वर्गीकरण प्रणाली से प्रेरणा लेते हुए झीलों के स्वास्थ्य को वर्गीकृत करने की एक वैश्विक प्रणाली विकसित की है। लेकएटलस डेटाबेस के आधार पर विश्लेषण से पता चला है कि धरती पर 10 हेक्टेयर या उससे बड़ी 14,27,688 झीलें हैं। इनमें से सबसे अधिक (9,94,072) उत्तरी अमेरिका में, 2,81,956 यूरोप में, 68,169 एशिया में, 54,048 दक्षिण अमेरिका में, 15,964 अफ्रीका में, और 3,479 ओशिनिया में हैं। इसके अलावा, तीन हेक्टेयर या उससे बड़ी झीलों की संख्या लगभग 34 लाख है, और यदि छोटे तालाबों को भी शामिल किया जाए, तो यह संख्या 11.7 करोड़ तक पहुंच सकती है।
झीलों के स्वास्थ्य पर संकट
शोध के अनुसार, झीलें कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रही हैं, जैसे;
परिसंचरण संबंधी समस्याएं: बाढ़ और सूखे के कारण जलस्तर में उतार-चढ़ाव।
चयापचय संबंधी विकार: अम्लीकरण और लवणीकरण।
पोषक तत्वों का असंतुलन: हानिकारक शैवालों का बढ़ना, जो विशेष रूप से उन क्षेत्रों में गंभीर है जहां आसपास की 75 फीसदी जमीन का उपयोग खेती के लिए होता है।
ऑक्सीजन की कमी: जिसके कारण जलीय जीवन संकट में है।
लगभग 1,15,000 झीलें बारिश से प्राप्त होने वाले पानी की तुलना में दोगुना पानी खो रही हैं, जिससे इनके आसपास रहने वाले 15.3 करोड़ लोगों का जीवन खतरे में है। भारत में 3,043 झीलें ऐसी हैं, जो पोषक तत्वों के असंतुलन के कारण शैवालों की समस्या से जूझ रही हैं।
समाधान की दिशा में कदम
कुछ विकसित देशों में झीलों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए प्रणालियां मौजूद हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर एक एकीकृत दृष्टिकोण की कमी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव स्वास्थ्य से प्रेरित उपमाएं लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक करने और उसकी रक्षा के लिए प्रेरित करने में मददगार हो सकती हैं। झीलों के स्वास्थ्य को बचाने के लिए जरूरी है कि:
- नियमित निगरानी और जांच की जाए।
- प्रदूषण और मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित किया जाए।
- स्थानीय और वैश्विक स्तर पर नीतियां बनाई जाएं।
यदि इन कदमों को समय रहते नहीं उठाया गया, तो झीलों का बिगड़ता स्वास्थ्य न केवल पर्यावरण, बल्कि मानव जीवन के लिए भी एक बड़ा संकट बन सकता है।