मंगल पर पानी के निशान, NASA के क्यूरियोसिटी रोवर की नई खोज

नासा के अनुसार, रोवर इस क्षेत्र में मैग्नीशियम सल्फेट जैसे नमकीन खनिजों की परतों की जांच कर रहा है, जो पानी के सूखने के बाद बनते हैं। इन खनिजों की मौजूदगी यह संकेत देती है कि यह क्षेत्र उस समय बना जब मंगल का वातावरण शुष्क हो रहा था।

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नई दिल्ली: नासा (NASA) का क्यूरियोसिटी रोवर मंगल ग्रह पर एक रहस्यमयी क्षेत्र की खोज में जुटा है, जो ग्रह के पानी से जुड़े अतीत को उजागर कर सकता है। यह रोबोट हाल ही में माउंट शार्प की 12 मील लंबी पर्वतमाला में “बॉक्सवर्क” नामक क्षेत्र में पहुंचा है। नासा के अनुसार, रोवर इस क्षेत्र में मैग्नीशियम सल्फेट जैसे नमकीन खनिजों की परतों की जांच कर रहा है, जो पानी के सूखने के बाद बनते हैं।
इन खनिजों की मौजूदगी यह संकेत देती है कि यह क्षेत्र उस समय बना जब मंगल का वातावरण शुष्क हो रहा था। बॉक्सवर्क पैटर्न बताते हैं कि सतह पर पानी सूखने के बाद भी भूमिगत जल मौजूद हो सकता है, जो आज के भूगर्भीय बदलावों का कारण है।

मंगल के जलवायु इतिहास की परतें
माउंट शार्प की चट्टानी परतें मंगल ग्रह के प्राचीन जलवायु के विभिन्न कालखंडों की कहानी कहती हैं। क्यूरियोसिटी इन परतों को सबसे पुरानी से नई तक चढ़कर जांच रहा है, ताकि पानी और सूक्ष्मजीवी जीवन के संभावित निशानों का पता लगाया जा सके। बॉक्सवर्क क्षेत्र, जिसे पहले केवल कक्षीय तस्वीरों से देखा गया था, मंगल के सतही पानी के अंतिम अवशेषों का गवाह माना जाता है। वैज्ञानिकों को आश्चर्य तब हुआ जब इस क्षेत्र में कैल्शियम सल्फेट की छोटी सफेद नसें मिलीं, जो आमतौर पर भूजल के दरारों से बहने पर बनती हैं। ये नसें निचली परतों में आम थीं, लेकिन माउंट शार्प की ऊपरी परतों में इनका कम होना वैज्ञानिकों के लिए एक नया रहस्य है।

भूजल की देर तक मौजूदगी
यह खोज माउंट शार्प की ऊपरी परतों में हुई, जिन्हें पहले पूरी तरह शुष्क माना जाता था। इससे पता चलता है कि मंगल के इतिहास में भूजल पहले की तुलना में कहीं अधिक समय तक सक्रिय रहा। यह खोज मंगल के रहने योग्य अतीत और इसके जलवायु विकास की समयरेखा को बदल सकती है। क्यूरियोसिटी बॉक्सवर्क क्षेत्र में ड्रिलिंग और नमूनों का विश्लेषण जारी रखे हुए है, जिससे वैज्ञानिकों को मंगल के जटिल जल इतिहास की गहरी समझ मिलने की उम्मीद है।

क्यूरियोसिटी रोवर की तकनीक
क्यूरियोसिटी एक छह पहियों वाला, परमाणु ऊर्जा से चलने वाला रोवर है, जिसका आकार लगभग एक छोटी कार जितना है और वजन 899 किलोग्राम है। यह रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर से 110 वाट की निरंतर बिजली प्राप्त करता है, साथ ही इसमें रिचार्जेबल लिथियम-आयन बैटरी हैं जो प्रतिदिन 1,600 वाट-घंटे ऊर्जा संग्रहीत करती हैं।
यह रोवर मंगल के एक दिन (सोल) में करीब छह घंटे काम करता है और बाकी समय बैटरी रिचार्ज करने के लिए बंद रहता है। मंगल की कठोर जलवायु (-80°C से 0°C) में काम करने के लिए इसमें एक सक्रिय थर्मल नियंत्रण प्रणाली है, जो इसके उपकरणों को सुरक्षित रखती है। संचार के लिए, यह एक्स-बैंड और यूएचएफ ट्रांसीवर का उपयोग करता है, जो पृथ्वी और मंगल की कक्षा में मौजूद उपग्रहों के जरिए डेटा भेजता है।

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