नई दिल्ली: पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय असंतुलन एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। हाल ही में किए गए शोध बताते हैं कि पिछले 3,800 वर्षों में मानवीय गतिविधियों ने इन क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव की गति को प्राकृतिक दर से चार से दस गुना बढ़ा दिया है। शोध में यह भी पाया गया कि जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग के बदलते तरीकों ने इस समस्या को और गंभीर किया है।
मानव गतिविधियों का प्रभाव
वैज्ञानिकों ने पाया कि पशुपालन और पशु झुंडों की आवाजाही के लिए जंगलों की कटाई ने उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव को शुरुआती दौर में बढ़ावा दिया। बाद में, रोमन काल के बाद से आधुनिक समय तक, कृषि में नई तकनीकों, जैसे हल का उपयोग, ने मध्यम और निचले ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी मिट्टी के कटाव को तेज किया। इन गतिविधियों ने मिट्टी के प्राकृतिक निर्माण और कटाव के बीच संतुलन को बिगाड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता, जैव विविधता, और जल एवं कार्बन चक्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा….
शोध की मुख्य बातें
यह अध्ययन फ्रांस के सबसे बड़े पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्र, बोर्गेट झील, की तलछट में लिथियम समस्थानिकों के विश्लेषण पर आधारित है। वैज्ञानिकों ने इन नमूनों की तुलना वर्तमान चट्टानों और मिट्टी से की, साथ ही तलछट में मौजूद डीएनए के आधार पर उस समय के पौधों और स्तनधारियों की पहचान की। इस डेटा की तुलना विश्व के अन्य क्षेत्रों से प्राप्त आंकड़ों से करने पर यह स्पष्ट हुआ कि मिट्टी का कटाव वैश्विक स्तर पर एकसमान नहीं रहा, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में मानव गतिविधियों के आधार पर अलग-अलग समय पर शुरू हुआ।
वैश्विक चिंता और समाधान की जरूरत
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के कारण मिट्टी के कटाव की दर हिमयुग के अंत के बाद से कई गुना बढ़ गई है। यह न केवल मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन को भी नुकसान पहुंचा रहा है। शोधकर्ताओं ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मिट्टी संरक्षण के लिए तत्काल उपाय करने की सलाह दी है ताकि इस बढ़ते संकट को रोका जा सके। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसे फ्रांस की सेंटर नेशनल डे ला रिसर्च साइंटिफिक (सीएनआरएस) के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया है।