नदियों में फैलता ‘धीमा जहर’: पारे का स्तर दोगुना, इंसान और पर्यावरण के लिए खतरा

अध्ययन ने खुलासा किया है कि औद्योगिक युग की शुरुआत से पहले की तुलना में आज नदियों में पारे की मात्रा दोगुनी से अधिक हो गई है।

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नई दिल्ली: विश्व की नदियां, जो कभी जीवन का आधार थीं, आज मानव गतिविधियों के कारण पारे के जहर से दूषित हो रही हैं। तुलाने विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में हुए एक ताजा अध्ययन ने खुलासा किया है कि औद्योगिक युग की शुरुआत से पहले की तुलना में आज नदियों में पारे की मात्रा दोगुनी से अधिक हो गई है। पारा, एक खतरनाक न्यूरोटॉक्सिन, न केवल जलीय जीवों बल्कि मनुष्यों के मस्तिष्क और स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। यह अध्ययन साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

शोध के अनुसार, 1850 से पहले नदियां प्रतिवर्ष लगभग 390 मीट्रिक टन पारा समुद्रों तक ले जाती थीं, जो अब बढ़कर 1,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष हो गया है। वैज्ञानिकों ने MOSART-Hg नामक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग कर यह डेटा जुटाया, जो नदियों के माध्यम से पारे के प्रवाह को ट्रैक करता है। इस मॉडल के नतीजे तटीय क्षेत्रों के पुराने तलछट नमूनों में पाए गए पारे के स्तर से मेल खाते हैं, जो अध्ययन की विश्वसनीयता को पुष्ट करते हैं।

पारे की बढ़ोतरी के कारण

वैज्ञानिकों ने बताया कि नदियों में पारे का स्तर बढ़ने की प्रमुख वजहें हैं:

सीवेज और औद्योगिक कचरा: गंदा पानी और औद्योगिक अपशिष्ट सीधे नदियों में बहाया जा रहा है।

मिट्टी का कटाव: जंगलों की कटाई और अन्य गतिविधियों से मिट्टी में मौजूद पारा नदियों में पहुंच रहा है।

खनन और उद्योग: विशेष रूप से सोने का खनन और कोयला आधारित उद्योग पारे के उत्सर्जन के बड़े स्रोत हैं।

तुलाने विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यान्शू झांग ने कहा, ‘मानव गतिविधियों ने पारे के प्राकृतिक चक्र को पूरी तरह बदल दिया है। नदियां अब पारे के परिवहन का मुख्य माध्यम बन गई हैं, जिसे पहले के शोधों में अनदेखा किया गया।’ यह स्थिति मछलियों के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में पारे के प्रवेश को बढ़ा रही है, जिससे मानव और वन्यजीवों के स्वास्थ्य को खतरा है। खासकर पूर्वी एशिया और उत्तरी अमेरिका की नदियों में पारे का स्तर तेजी से बढ़ा है, जो पक्षियों के प्रवास मार्गों के लिए भी चिंताजनक है।

कहां सबसे ज्यादा बढ़ा प्रदूषण?

अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि 1850 के बाद नदियों में पारे की वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान उत्तर और दक्षिण अमेरिका (41%) का है। इसके बाद दक्षिण-पूर्व एशिया (22%) और दक्षिण एशिया (19%) का स्थान है।

दक्षिण अमेरिका: अमेजन क्षेत्र में सोने का अवैध खनन और जंगलों की कटाई से मिट्टी का कटाव पारे के स्तर को बढ़ा रहा है। अमेजन नदी में प्रतिवर्ष 200 मीट्रिक टन से अधिक पारा पहुंच रहा है, जिसमें 75% मानव गतिविधियों से आता है।

पूर्वी एशिया: चीन की यांग्त्जी नदी में औद्योगिक उत्सर्जन के कारण पारा दोगुना हो गया है। इस क्षेत्र की नदियां 70% से अधिक पारे का स्रोत हैं।

अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया: छोटे पैमाने का सोने का खनन पारे का प्रमुख स्रोत है।

हालांकि, भूमध्यसागर क्षेत्र में पारा कम हुआ है, जिसका कारण नील नदी पर अस्वान बांध जैसे ढांचे हैं, जो तलछट में पारे को रोक लेते हैं।

समाधान की दिशा

शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अध्ययन मिनामाता कन्वेंशन जैसे वैश्विक समझौतों के लिए महत्वपूर्ण है, जो पारे के प्रदूषण को नियंत्रित करने का लक्ष्य रखते हैं। नदियों में पारे का स्तर एक प्रभावी मापक हो सकता है, जो प्रदूषण नियंत्रण की प्रगति को आंकने में मदद करेगा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो यह ‘धीमा जहर’ पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए और बड़ा खतरा बन सकता है।

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