नई दिल्ली। भारत ने 223 गीगावाट से ज्यादा अक्षय ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है। इसमें 108 गीगावाट सौर ऊर्जा से और 51 गीगावाट पवन ऊर्जा से मिलती है। भारत आज वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ते अक्षय ऊर्जा बाजारों में से एक है। इससे 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता हासिल करने व 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने में मदद मिलेगी।
भारत का लक्ष्य 2030 तक पांच मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन की सालाना उत्पादन क्षमता स्थापित करना है। अभी 8,62,000 टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में सहयोगी निविदाएं दी गई है। वहीं, 3,000 मेगावाट सालाना की इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण क्षमता स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है। इससे हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता का विस्तार होगा।
संतोष कुमार सारंगी ने सम्मेलन में अक्षय ऊर्जा उत्पादन के भारत के दृष्टिकोण पर रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने 2023 में 2.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के शुरुआती आवंटन के साथ राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन शुरू किया। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन का व्यापक रोडमैप है। इसके तहत संभावित क्षेत्रों में मांग की पहचान करके उसका उत्पादन करना है। वहीं, घरेलू क्षमता स्थापित करने के लिए उत्पादन को प्रोत्साहन देना है। 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन करना है। इससे हर साल करीब 50 एमएमटी कार्बनडाइक्साइड उत्सर्जन रूकेगा।
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तीन पत्तन बनेंगे ग्रीन हाइड्रोजन केंद्र
भारत के कांडला, पारादीप और तूतीकोरिन बंदरगाह को ग्रीन हाइड्रोजन केन्द्र के तौर पर विकसित किया जाएगा। वहीं, 15 राज्यों ने ग्रीन हाइड्रोजन का समर्थन करने के लिए नीतियों की घोषणा की है। भारत का लक्ष्य न केवल अपनी घरेलू मांग को पूरा करना है, बल्कि 2030 तक हरित हाइड्रोजन का एक प्रमुख वैश्विक निर्यातक बनना है। हालांकि, उच्च उत्पादन लागत, मानकीकृत रूपरेखाओं की कमी और बुनियादी ढांचे की सीमाओं जैसी चुनौतियां हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में बाधा बनती हैं।
100 बिलियन डॉलर का निवेश
संतोष कुमार सारंगी ने बताया कि भारत ने हरित हाइड्रोजन विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। 19 कंपनियों को सालाना 8,62,000 टीपीए उत्पादन क्षमता आवंटित की गई है। 15 फर्मों को 3,000 मेगावाट वार्षिक इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण क्षमता प्रदान की है। भारत ने इस्पात, गतिशीलता और शिपिंग क्षेत्रों में पायलट परियोजनाएं भी शुरू की हैं। इस सेक्टर में भारत को 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश आकर्षित करना है। इससे करीब 6,00,000 नौकरियां पैदा होंगी।