नई दिल्ली: ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के एक ताजा अध्ययन ने खुलासा किया है कि पश्चिमी कनाडा, अमेरिका और स्विटजरलैंड के ग्लेशियरों (Glaciers) ने 2021 से 2024 के बीच अपनी बर्फ का करीब 12% हिस्सा खो दिया है। नेचर जर्नल में प्रकाशित इस शोध के अनुसार, 21वीं सदी के पहले दशक की तुलना में 2010 से 2019 के बीच ग्लेशियरों का पिघलना दोगुना हो गया, और उसके बाद यह रफ्तार और तेज हो गई। शोधकर्ताओं ने बताया कि पिछले चार सालों में ग्लेशियरों ने पहले के दशक की तुलना में दोगुनी बर्फ खोई है।
काले पड़ते ग्लेशियर और बढ़ता पिघलना
शोध में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का मुख्य कारण गर्म और शुष्क मौसम को बताया गया है। इसके अलावा, पर्यावरणीय कारकों ने भी स्थिति को और गंभीर किया है। स्विटजरलैंड में सहारा रेगिस्तान से आने वाली धूल और उत्तरी अमेरिका में जंगल की आग से निकलने वाली राख (काला कार्बन) के कारण ग्लेशियर काले पड़ रहे हैं, जिससे वे तेजी से पिघल रहे हैं। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन में पश्चिमी कनाडा के तीन, अमेरिका के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट के चार और स्विटजरलैंड के 20 ग्लेशियरों का जमीनी और हवाई सर्वेक्षण शामिल किया गया। ये ग्लेशियर संस्कृति, पर्यटन और स्वच्छ पानी के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनका तेजी से नुकसान हो रहा है।
एल्बिडो प्रभाव: बर्फ का काला पड़ना
एल्बिडो प्रभाव तब होता है जब बर्फ सूर्य की रोशनी को परावर्तित करती है, जिससे वह ठंडी रहती है। लेकिन जब ग्लेशियर धूल या काले कार्बन से ढक जाते हैं, तो वे सूर्य की गर्मी को सोखने लगते हैं, जिससे पिघलने की गति बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं ने उपग्रह चित्रों और डेटा विश्लेषण से पाया कि 2021, 2023 और 2024 में एल्बिडो प्रभाव में कमी आई, खासकर 2023 में, जब कनाडा में जंगल की आग ने रिकॉर्ड तोड़ा। उदाहरण के लिए, कनाडा के रॉकी पर्वतों में हेज ग्लेशियर के 2022-23 के बीच 40% पिघलने का कारण ग्लेशियरों का काला पड़ना था। हैरानी की बात यह है कि जलवायु मॉडल अभी भी एल्बिडो प्रभाव जैसे कारकों को पूरी तरह शामिल नहीं करते, जिसके चलते ग्लेशियर हमारी सोच से कहीं तेजी से पिघल सकते हैं।
30 साल में गायब हो सकते हैं ग्लेशियर
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर हमें लगता है कि ग्लेशियरों के खत्म होने में 50 साल बाकी हैं, तो वास्तव में यह समय 30 साल से भी कम हो सकता है। ग्लेशियरों के नुकसान का समुद्र तल पर सीमित प्रभाव हो सकता है, लेकिन यह मानव जीवन और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगा, खासकर सूखे के दौरान। अल्पकालिक रूप से, ग्लेशियरों के पिघलने से ग्लेशियल झीलों के बनने और बाढ़ जैसे खतरों का जोखिम बढ़ रहा है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि समाज को अब यह सोचना चाहिए कि बर्फ के खत्म होने से भविष्य में क्या प्रभाव पड़ेंगे और इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। बेहतर जलवायु मॉडल और नीतियों की जरूरत है ताकि हम बिना ग्लेशियरों के भविष्य के लिए तैयार हो सकें।