Israel का Iran पर घातक हमला: परमाणु ठिकानों को निशाना, क्षेत्रीय तनाव चरम पर

कभी एक-दूसरे के गुप्त सहयोगी रहे इजरायल और ईरान आज कट्टर दुश्मन हैं। आइए जानते हैं कि दोनों देशों के बीच दुश्मनी की जड़ें कहां हैं...

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नई दिल्ली: शुक्रवार तड़के इजरायल (Israel) ने ईरान (Iran) की परमाणु सुविधाओं पर हवाई हमले किए, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी कमांडरों के मारे जाने की खबर है। इस हमले ने मध्य पूर्व में तनाव को और गहरा कर दिया है। कभी एक-दूसरे के गुप्त सहयोगी रहे इजरायल और ईरान आज कट्टर दुश्मन हैं। आइए जानते हैं कि दोनों देशों के बीच दुश्मनी की जड़ें कहां हैं और इस हमले के पीछे इजरायल का मकसद क्या है।

इजरायल-ईरान दुश्मनी की शुरुआत

1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति से पहले, शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन में ईरान और इजरायल के बीच गुप्त रणनीतिक संबंध थे। उस दौर में ईरान ने इजरायल को औपचारिक मान्यता तो नहीं दी, लेकिन साझा हितों और शीत युद्ध की राजनीति के कारण दोनों देश करीब थे। ईरान की पश्चिम समर्थक नीतियां और अमेरिका से गठजोड़ ने इजरायल को उसका स्वाभाविक सहयोगी बनाया। हालांकि, 1979 की क्रांति के बाद ईरान का नेतृत्व बदल गया। नए शासन ने अमेरिका और इजरायल को अपना प्रमुख दुश्मन घोषित किया, जिससे दोनों देशों के रिश्ते शत्रुता में बदल गए।

परमाणु विवाद और इजरायल का डर

बीते 20 साल से ईरान पर इजरायल परमाणु हथियार विकसित करने या फिर उसे बनाने का आरोप लगाता रहा है। ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण ऊर्जा उत्पादन के लिए है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने चेतावनी दी है कि ईरान के पास उच्च संवर्धित यूरेनियम का भंडार इतना है कि वह कई परमाणु बम बना सकता है। पश्चिमी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि 2003 तक ईरान का परमाणु हथियार कार्यक्रम सक्रिय था। इजरायल के लिए परमाणु हथियारों से लैस ईरान उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

ईरान का प्रॉक्सी नेटवर्क और इजरायल की रणनीति

ईरान ने पिछले चार दशकों में हमास (गाजा), हिजबुल्लाह (लेबनान), हाउती (यमन) और इराक-सीरिया में छोटे मिलिशिया समूहों का एक मजबूत नेटवर्क बनाया, जिसे वह ‘प्रतिरोध की धुरी’ कहता है। ये समूह क्षेत्र में ईरान के प्रभाव को बढ़ाने का काम करते हैं। हालांकि, 7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर हमले के बाद शुरू हुए संघर्ष में यह नेटवर्क कमजोर हुआ है। इजरायल ने हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ बड़े सैन्य अभियान चलाए, जिससे उनकी ताकत टूटी। सीरिया में ईरान के सहयोगी बशर असद का शासन भी ढह चुका है। पिछले साल ईरान के मिसाइल हमलों का जवाब देते हुए इजरायल ने उसकी मिसाइल साइट्स और हवाई रक्षा प्रणालियों को भारी नुकसान पहुंचाया था।

हमले का कारण और समय

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान के परमाणु हथियार बनाने की दिशा में बढ़ते कदमों को रोकने का समय अब या कभी नहीं था। नेतन्याहू ने दावा किया कि हाल के महीनों में ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को गति दी है। अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते की बातचीत हाल ही में विफल रही, जिससे इजरायल को आशंका थी कि ईरान को अपने कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का समय मिल रहा है। गुरुवार को IAEA ने 20 साल में पहली बार ईरान की निंदा की, क्योंकि उसने निरीक्षकों के साथ सहयोग नहीं किया। जवाब में ईरान ने तीसरा यूरेनियम संवर्धन संयंत्र शुरू करने और उन्नत सेंट्रीफ्यूज लगाने की घोषणा की। इसने इजरायल को तत्काल हमले का फैसला लेने के लिए प्रेरित किया।

अमेरिका की भूमिका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने नेतन्याहू से हमले को टालने के लिए कहा था, लेकिन उनका इजरायल समर्थन का इतिहास जगजाहिर है। माना जा रहा है कि इस हमले को अमेरिका का मौन समर्थन प्राप्त था। इजरायल का मानना है कि ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करना और उसके प्रॉक्सी नेटवर्क को कमजोर करना उसकी दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए जरूरी है।

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