नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते (India-US trade talks) को अंतिम रूप देने की कोशिशें तेज हो गई हैं, क्योंकि दोनों देश 9 जुलाई से पहले किसी सहमति पर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। यह वह तारीख है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कती तरफ से प्रस्तावित उच्च टैरिफ लागू होने की संभावना है।
भारतीय वार्ताकार वाशिंगटन में लंबे समय तक रुके हुए हैं, ताकि मतभेदों को सुलझाया जा सके। मूल रूप से 27 जून को समाप्त होने वाली यह आमने-सामने की वार्ता एक दिन के लिए बढ़ा दी गई थी। हाल ही में ट्रम्प ने संकेत दिया था कि भारत के साथ एक विशाल व्यापार समझौता जल्द ही हो सकता है।
हालांकि, दोनों देशों के बीच एक प्रमुख विवाद अमेरिका की उस मांग से जुड़ा है, जिसमें वह भारत से अपने कृषि बाजार को आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के लिए खोलने की बात कह रहा है। भारत ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है, यह तर्क देते हुए कि जीएम फसलें भारतीय किसानों और खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं।
आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलें क्या हैं?
जीएम फसलें वे पौधे हैं, जिनके डीएनए को प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए संशोधित किया जाता है, ताकि उनके गुणों में सुधार किया जा सके। इन संशोधनों का उद्देश्य फसलों को कीटों, रोगों, या कठिन मौसमी परिस्थितियों, जैसे सूखा या अत्यधिक गर्मी, के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाना हो सकता है। इसके अलावा, जीएम फसलें लंबे समय तक ताजी रह सकती हैं या अधिक पोषक तत्व प्रदान कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, ऐसी फसलें कम कीटनाशकों के उपयोग के साथ कीटों से बच सकती हैं या सूखे जैसे मौसम में भी अच्छी पैदावार दे सकती हैं।
हालांकि, जीएम फसलों को लेकर वैश्विक स्तर पर बहस छिड़ी हुई है। समर्थक मानते हैं कि ये फसलें खाद्य उत्पादन बढ़ाने और वैश्विक भुखमरी से निपटने में मददगार हो सकती हैं। वहीं, आलोचक इनके पर्यावरणीय प्रभाव, जैव विविधता पर खतरे, और मानव स्वास्थ्य पर संभावित जोखिमों को लेकर चिंता जताते हैं।
भारत की चिंताएं
अमेरिका ने भारत से अपने कृषि और डेयरी बाजारों को और खोलने, अमेरिकी उत्पादों पर कर कम करने, और जीएम फसलों की बिक्री की अनुमति देने की मांग की है। लेकिन भारत ने इन मांगों को ठुकरा दिया है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि जीएम फसलों को अनुमति देने से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, पर्यावरण को नुकसान हो सकता है, और लाखों छोटे किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत में कृषि और डेयरी क्षेत्र न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील हैं।
भारत का रुख यह भी है कि वह कोई ऐसा व्यापार समझौता स्वीकार नहीं करेगा, जो उसके निर्यात को बढ़ावा न दे या चुनिंदा क्षेत्रों में बेहतर बाजार पहुंच प्रदान न करे। भारतीय वार्ताकारों ने अमेरिकी प्रस्तावों को यह कहकर अस्वीकार किया है कि ये भारत के हितों के अनुरूप नहीं हैं।
समयसीमा और रणनीति
9 जुलाई की समयसीमा नजदीक आ रही है, और इस तारीख के बाद भारतीय वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा 26% टैरिफ लगाए जाने की आशंका है। इस दबाव के बावजूद, भारत ने जल्दबाजी में समझौता करने से इनकार कर दिया है। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत का मानना है कि उसे दबाव में आकर कोई समझौता नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, देश को धैर्य रखना चाहिए और यह देखना चाहिए कि वैश्विक व्यापार परिदृश्य कैसे विकसित होता है।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत का यह रुख न केवल उसके आर्थिक हितों की रक्षा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वह वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस बीच, दोनों देशों के बीच वार्ता में अन्य मुद्दों, जैसे बौद्धिक संपदा अधिकार, डिजिटल व्यापार, और विनिर्माण क्षेत्र में सहयोग, पर भी चर्चा हो रही है।
निष्कर्ष
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता एक नाजुक दौर से गुजर रही है। जीएम फसलों को लेकर भारत का सख्त रुख और टैरिफ की समयसीमा ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है। भारत का यह फैसला कि वह अपने किसानों और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देगा, उसके दीर्घकालिक हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के बीच एक संतुलित समझौते की उम्मीद बनी हुई है, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब दोनों पक्ष एक-दूसरे के हितों का सम्मान करें।