नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूरोपीय देशों में रूस को लेकर चिंता बढ़ा दी है। इसके साथ ही नाटो को सैन्य खर्च बढ़ाने के लिए अमेरिका के दबाव ने भी यूरोप को बेचैन कर रखा है। इस स्थिति को देखते हुए जर्मनी (Germany) के नए चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने सत्ता में आते ही यूरोप की सबसे मजबूत सेना बनाने का संकल्प लिया है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए जर्मनी ने इजरायल के सैन्य मॉडल की तर्ज पर 6 महीने की स्वैच्छिक सैन्य सेवा शुरू करने का फैसला किया है, ताकि सैनिकों की संख्या बढ़ाई जा सके।
यूरोप में सैन्य ताकत बढ़ाने की होड़
रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोपीय देश अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने में जुट गए हैं। हालांकि, मॉस्को ने इन देशों के डर को बेबुनियाद बताते हुए इसे खारिज किया है। क्रेमलिन का कहना है कि पश्चिमी देश जानबूझकर रूस के खिलाफ भय का माहौल बनाकर अपने सैन्य खर्च को उचित ठहरा रहे हैं। मॉस्को ने यूरोप के बढ़ते सैन्यीकरण की आलोचना करते हुए इसे अनावश्यक और उकसाने वाला कदम बताया है।
2028 तक सैन्य बजट में 102 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी का लक्ष्य
जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने 2028 तक सैन्य बजट में करीब 102 बिलियन डॉलर की वृद्धि की योजना बनाई है। इसके तहत जर्मन सरकार युवाओं को सेना की ओर आकर्षित करने और रिजर्व सैनिकों की संख्या को 1 लाख से बढ़ाकर 2 लाख करने की रणनीति पर काम कर रही है। अगर यह योजना अपेक्षित परिणाम नहीं देती, तो जर्मनी 2011 में बंद की गई अनिवार्य सैन्य भर्ती प्रक्रिया को फिर से शुरू करने पर विचार कर सकता है।
सक्रिय सैनिकों की संख्या बढ़ाने पर जोर
रक्षा मंत्री पिस्टोरियस ने कहा है कि वह इस साल अगस्त तक इस संबंध में कानून पारित कराना चाहते हैं, ताकि मई 2026 से नए सैनिकों का प्रशिक्षण शुरू हो सके। जर्मनी का लक्ष्य नाटो के मानकों को पूरा करने के लिए सक्रिय सैनिकों की संख्या को 1.80 लाख से बढ़ाकर 2.60 लाख तक करना है। रक्षा मंत्री ने एक हालिया भाषण में कहा कि बुंडेसवेहर (जर्मन सेना) को और अधिक मजबूत और तैयार करने की जरूरत है, ताकि भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जा सके।