Climate Change: मौसम के मिजाज से बदलती दुनिया की 60% झीलें, वैज्ञानिकों ने खोला राज

यूके की बांगोर यूनिवर्सिटी और चीन की सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक शोध किया है। इसके नतीजे नेचर जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं ने 2001 से 2023 तक 14 लाख झीलों पर सैटेलाइट डेटा के जरिए हर महीने नजर रखी।

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नई दिल्ली: दुनिया भर की झीलों के आकार में होने वाले उतार-चढ़ाव का मुख्य कारण मौसमी बदलाव हैं। इसका खुलासा ताजा वैश्विक अध्ययन में हुआ है। यह शोध यूके की बांगोर यूनिवर्सिटी और चीन की सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। इसके नतीजे नेचर जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ताओं ने 2001 से 2023 तक 14 लाख झीलों पर सैटेलाइट डेटा से हर महीने नजर रखी। इस अध्ययन से पता चला कि दुनिया की करीब 60 फीसदी झीलें मौसम के हिसाब से सिकुड़ती या फैलती हैं। यह कुल झील क्षेत्रफल का 66 फीसदी हिस्सा है।

इसका मतलब यह है कि गर्मी, सर्दी, बारिश या सूखे जैसे मौसमी प्रभाव इन झीलों के आकार को बदलते हैं। खास बात यह कि वैश्विक आबादी का 90 फीसदी हिस्सा ऐसे क्षेत्रों में रहता है, जहां झीलें मौसमी बदलावों पर निर्भर हैं।

झीलों के नक्शे और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल

शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने झीलों के नक्शे तैयार किए। साथ ही डीप लर्निंग व हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग जैसी आधुनिक तकनीकों की मदद से उनके मौसमी व्यवहार को समझा।

अध्ययन में पाया गया कि चरम मौसमी घटनाएं, जैसे कम समय में तेज बारिश व घने सूखे से झीलों पर गहरा असर पड़ता है। ऐसी घटनाओं में सिकुड़ रही करीब 42 फीसदी झीलें और भी छोटी हो जाती हैं, जबकि 45 फीसदी झीलों का विस्तार रुक जाता है।

शोधकर्ता डॉ. इस्टिन वुलवे ने बताया कि चरम मौसमी बदलाव लंबे समय के बदलावों या सामान्य मौसमी उतार-चढ़ाव से कहीं ज्यादा प्रभाव डालते हैं। यह बदलाव ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर असर डालते हैं।

खासकर, झीलों के तेजी से सिकुड़ने से तलछट में मौजूद मीथेन जैसी गैसें वातावरण में रिलीज हो सकती हैं, जो स्थानीय जलवायु और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं।

पारिस्थितिकी और मानव जीवन पर असर

मौसमी बदलाव झीलों की पारिस्थितिकी को अस्थिर कर सकते हैं। इससे जलीय जीवों, शैवालों और पौधों की प्रजातियों में बदलाव आ सकता है। इससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। कुछ मामलों में ये बदलाव इतने गंभीर हो सकते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र को ठीक करना मुश्किल हो जाता है। इसका असर ताजे पानी के संसाधनों और मानव जीवन पर भी पड़ता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि झीलों की बेहतर निगरानी और मौसमी बदलावों की समझ से ताजे पानी के प्रबंधन, पारिस्थितिकी संरक्षण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

क्यों जरूरी है यह अध्ययन?

यह अध्ययन झीलों के संरक्षण और जलवायु नीतियों के लिए महत्वपूर्ण है। शोधकर्ताओं ने जोर दिया कि मौसमी उतार-चढ़ाव को समझना और उसकी निगरानी करना ताजे पानी के संसाधनों की सुरक्षा और वैश्विक पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी है। यह न केवल झीलों के पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने में मदद करेगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी योगदान देगा।

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