नई दिल्ली: चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (चीन में यारलुंग सांगपो) पर दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण शुरू कर दिया है। इस परियोजना की अनुमानित लागत 167.8 अरब डॉलर (लगभग 12 लाख करोड़ रुपये) है और इसे अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास न्यिंगची शहर में बनाया जा रहा है। इस मेगा परियोजना में पांच सीढ़ीदार जलविद्युत स्टेशन होंगे, जो प्रतिवर्ष 300 अरब किलोवाट-घंटे से अधिक बिजली उत्पादन करेंगे। यह बिजली 30 करोड़ लोगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगी। हालांकि, इस बांध के निर्माण से भारत और बांग्लादेश में गंभीर चिंताएं बढ़ गई हैं।
भारत की चिंताएं
यह बांध हिमालय की गहरी घाटी में बन रहा है, जो भूकंप के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। भारतीय और
यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव के कारण इस क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधियां आम हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बांध के निर्माण से क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ेगा, जिससे भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है। भारत के पूर्वोत्तर राज्य, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और असम, पहले ही बाढ़ और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यदि चीन नदी के प्रवाह को नियंत्रित करता है या अचानक पानी छोड़ता है, तो इन क्षेत्रों में सूखा या विनाशकारी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस परियोजना पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि ब्रह्मपुत्र पर बांध का निर्माण निचले क्षेत्रों के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। भारत और चीन के बीच 2006 से ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जल-प्रवाह डेटा को साझा करने के लिए एक विशेषज्ञ-स्तरीय तंत्र (ELM) मौजूद है, लेकिन इस बांध के निर्माण ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है।
बांग्लादेश पर भी प्रभाव
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से निकलकर भारत के रास्ते बांग्लादेश तक जाती है। इस बांध के कारण बांग्लादेश में भी जल प्रवाह पर असर पड़ सकता है, जिससे वहां की कृषि और पर्यावरण प्रभावित हो सकते हैं। बांग्लादेश ने भी इस परियोजना को लेकर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि चीन ने अभी तक किसी अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिससे जल संसाधनों का प्रबंधन और साझेदारी जटिल हो जाती है।
चीन की रणनीति और भारत का जवाब
चीन की यह परियोजना यांग्त्जी नदी पर बने थ्री गॉर्जेस बांध से भी अधिक बिजली उत्पादन करने की क्षमता रखती है। कुछ विशेषज्ञ इसे चीन का “वॉटर बम” करार दे रहे हैं, क्योंकि यह भारत के लिए रणनीतिक और पर्यावरणीय खतरा पैदा कर सकता है। सेंट्रल वॉटर कमीशन के अनुसार, ब्रह्मपुत्र का 60% पानी भारत से और 40% तिब्बत से आता है। यदि चीन पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है। भारत भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर एक बड़े बांध का निर्माण कर रहा है, जिसका उद्देश्य जल संसाधनों का बेहतर उपयोग और बिजली उत्पादन है। 2015 में चीन द्वारा तिब्बत में 1.5 अरब डॉलर की लागत से जम हाइड्रोपावर स्टेशन शुरू किए जाने पर भी भारत ने ऐसी ही चिंताएं उठाई थीं।
पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक चिंताएं
2020 में ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि तिब्बत की नदियों पर नियंत्रण के जरिए चीन भारत की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है। भूकंप के खतरे वाले इस क्षेत्र में बांध का निर्माण न केवल पर्यावरणीय जोखिम बढ़ाता है, बल्कि भारत और बांग्लादेश में बाढ़ या सूखे जैसी आपदाओं को भी जन्म दे सकता है। वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं का मानना है कि इस परियोजना के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए भारत, चीन और बांग्लादेश के बीच संवाद जरूरी है। इस बीच, भारत ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने और जल संसाधनों के संरक्षण के लिए कदम उठाने की योजना बनाई है।