America की नजर India-Russia दोस्ती पर, 500% टैरिफ का नया बिल लाने की तैयारी

अमेरिका (America) रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर कड़ा रुख अपनाने की योजना बना रहा है। खबर है कि अमेरिका एक नए सिनेट बिल के जरिए रूस से कच्चा तेल और ऊर्जा उत्पाद खरीदने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने की तैयारी कर रहा है।

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नई दिल्ली: अमेरिका (America) रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर कड़ा रुख अपनाने की योजना बना रहा है। खबर है कि अमेरिका एक नए सिनेट बिल के जरिए रूस से कच्चा तेल और ऊर्जा उत्पाद खरीदने वाले देशों पर 500% तक टैरिफ लगाने की तैयारी कर रहा है। इस बिल को डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन प्राप्त है।
अमेरिकी सिनेटर लिंडसे ग्राहम ने एक साक्षात्कार में बताया कि ट्रंप ने उन्हें इस बिल को वोट के लिए लाने की सलाह दी है। ग्राहम के अनुसार, यह बिल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन मुद्दे पर बातचीत की मेज तक लाने की रणनीति का हिस्सा है। ऐसे में क्या वॉशिंगटन भारत-रूस (India-Russia) की दोस्ती पर बुरी नजर डालने की तैयारी में है। यह देखना बेहद दिलचस्प होगा।

बिल में क्या है खास?
लिंडसे ग्राहम ने कहा, ‘जो देश रूस से तेल खरीदेंगे और यूक्रेन का समर्थन नहीं करेंगे, उनके अमेरिका में निर्यात होने वाले उत्पादों पर 500% तक टैरिफ लगाया जाएगा। भारत और चीन रूस के 70% तेल की खरीद कर रहे हैं, जिससे पुतिन के युद्ध को बल मिल रहा है।’ हालांकि, यह निर्णय ट्रंप पर निर्भर होगा कि बिल पास होने के बाद वे इसे लागू करते हैं या कुछ देशों को छूट देते हैं।

भारत और रूस का तेल व्यापार
फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू होने से पहले भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी न के बराबर थी। लेकिन युद्ध के बाद रूस ने भारत को सस्ता तेल उपलब्ध कराया, जिसके चलते भारत ने बड़े पैमाने पर रूसी तेल खरीदना शुरू किया। अब भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 40-44% तक पहुंच गई है। मई 2025 में भारत ने प्रतिदिन 19.6 लाख बैरल रूसी तेल खरीदा, और जून में यह आंकड़ा 22 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया।

भारत-रूस व्यापार में उछाल
रूस से सस्ते तेल की खरीद ने भारत-रूस व्यापार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। वित्त वर्ष 2024-25 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 68.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो कोविड से पहले महज 10 अरब डॉलर था। दोनों देशों ने 2030 तक व्यापार को 100 अरब डॉलर से अधिक करने का लक्ष्य रखा है। अमेरिका के इस प्रस्तावित बिल से भारत-रूस के मजबूत होते व्यापारिक रिश्तों पर असर पड़ सकता है, और भारत को अपनी ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।

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