नई दिल्ली: नींद हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनमोल है, लेकिन बढ़ता वैश्विक तापमान इसकी गुणवत्ता को खतरे में डाल रहा है। फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने नवीनतम अध्ययन में खुलासा किया है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण स्लीप एपनिया के मामले इस सदी के अंत तक दोगुने हो सकते हैं। इतना ही नहीं, यह बीमारी पहले से कहीं अधिक गंभीर रूप ले सकती है। यह अध्ययन प्रतिष्ठित जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है।
स्लीप एपनिया: एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती
स्लीप एपनिया एक नींद से संबंधित विकार है, जो विश्व स्तर पर लगभग 100 करोड़ लोगों को प्रभावित कर रहा है। इस विकार में सोते समय श्वसन मार्ग में रुकावट के कारण सांस बार-बार रुकती और शुरू होती है। यह स्थिति कुछ सेकंड से लेकर एक मिनट तक की हो सकती है, जिससे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डिमेंशिया, चिंता, अवसाद और यहां तक कि असमय मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है। स्लीप एपनिया न केवल जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि सड़क दुर्घटनाओं और कार्यक्षमता में कमी का कारण भी बनता है।
तापमान और स्लीप एपनिया का गहरा संबंध
शोधकर्ताओं ने 29 देशों के 1,16,000 से अधिक लोगों की नींद के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जो एफडीए-अनुमोदित अंडर-मैट्रेस सेंसर के माध्यम से 5.8 करोड़ रातों तक एकत्र किए गए थे। इन आंकड़ों को जलवायु मॉडलों से प्राप्त तापमान डेटा के साथ जोड़ा गया। अध्ययन में पाया गया कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) की गंभीरता में 45% तक की वृद्धि हो सकती है। यूरोप में यह समस्या ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की तुलना में अधिक देखी गई, संभवतः एयर कंडीशनिंग की उपलब्धता में अंतर के कारण।
आर्थिक और सामाजिक बोझ
अध्ययन के अनुसार, 2023 में स्लीप एपनिया के कारण 29 देशों में लगभग 8 लाख स्वस्थ जीवन वर्षों का नुकसान हुआ, जो बायपोलर डिसऑर्डर और किडनी रोग जैसे रोगों के बराबर है। इसने आर्थिक रूप से भी भारी नुकसान पहुंचाया। इन देशों में स्वास्थ्य और उत्पादकता हानि की लागत लगभग 98 अरब डॉलर आंकी गई, जिसमें 68 अरब डॉलर जीवन की गुणवत्ता में कमी और 30 अरब डॉलर कार्यक्षमता में गिरावट के कारण थे। ऑस्ट्रेलिया में नींद से संबंधित बीमारियों की वार्षिक लागत 66 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक पहुंच गई है।
भारत में स्थिति चिंताजनक
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन विभाग के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 10.4 करोड़ लोग स्लीप एपनिया से पीड़ित हैं। पुरुषों में यह समस्या महिलाओं की तुलना में अधिक गंभीर है, जिसमें 13% पुरुष और 5% महिलाएं इस विकार से प्रभावित हैं।
तत्काल कार्रवाई की जरूरत
वरिष्ठ शोधकर्ता प्रो. डैनी एकर्ट ने चेतावनी दी कि यह अध्ययन मुख्य रूप से उन देशों पर केंद्रित था जहां एयर कंडीशनिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। विकासशील देशों में, जहां ऐसी सुविधाएं सीमित हैं, स्लीप एपनिया का प्रभाव और भी गंभीर हो सकता है। यदि ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी नीतियां लागू नहीं की गईं, तो सदी के अंत तक स्लीप एपनिया का सामाजिक और आर्थिक बोझ दोगुना हो सकता है।
उम्मीद और समाधान
शोधकर्ताओं ने जोर दिया कि स्लीप एपनिया की समय पर पहचान और उपचार से जलवायु परिवर्तन से जुड़े स्वास्थ्य नुकसानों को कम किया जा सकता है। इसके लिए प्रभावी स्क्रीनिंग, बेहतर उपचार विधियों और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गहरे प्रभावों को रेखांकित करता है और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देता है।