नई दिल्ली: एक हालिया शोध ने चेतावनी दी है कि किसी गुजरते तारे का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव पृथ्वी (Earth) के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। यह प्रभाव पृथ्वी को किसी अन्य ग्रह से टकराने, सूर्य के करीब धकेलने या इतनी दूर ले जाने का कारण बन सकता है, जहां जीवन असंभव हो जाए और सब कुछ ठंड से जम जाए। यह अध्ययन हजारों सिमुलेशनों पर आधारित है और दावा करता है कि हमारा सौरमंडल पहले की तुलना में कहीं अधिक अस्थिर हो सकता है।
गुजरते तारों का प्रभाव
शोध के अनुसार, यदि हमारे सूर्य के समान द्रव्यमान वाला कोई तारा सौरमंडल के 10,000 खगोलीय इकाइयों के दायरे में आता है, तो यह गंभीर गड़बड़ी पैदा कर सकता है। यह सौरमंडल के बाहरी हिस्से में मौजूद ऊर्ट क्लाउड को हिला सकता है, जिससे ग्रहों की कक्षाओं में अस्थिरता पैदा हो सकती है। शोध में पाया गया कि बुध की कक्षा सबसे अधिक संवेदनशील है, जिसमें 50 से 80 प्रतिशत तक गड़बड़ी की संभावना है। मंगल के लिए भी 0.3 प्रतिशत की आशंका है कि यह टकराव के कारण सौरमंडल से गायब हो सकता है। पृथ्वी के लिए खतरा और भी गंभीर है-0.2 प्रतिशत संभावना है कि यह किसी अन्य ग्रह से टकरा सकती है, सूर्य की ओर धकेली जा सकती है या अंतरिक्ष की ठंडी गहराइयों में फेंकी जा सकती है।
पृथ्वी के लिए भयावह परिदृश्य
शोध में बताया गया कि यदि बुध की कक्षा में गड़बड़ी होती है, तो यह एक श्रृंखला प्रतिक्रिया शुरू कर सकती है। शुक्र या मंगल पृथ्वी से टकरा सकते हैं या इसे बृहस्पति की ओर धकेल सकते हैं, जिसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी को सौरमंडल से बाहर फेंक सकता है। इकारस पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी कहा गया कि प्लूटो जैसी दूर की वस्तुएं भी सुरक्षित नहीं हैं, जिनके लिए 5 प्रतिशत गड़बड़ी की संभावना है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मौजूदा मॉडल इन खतरों को कम आंक रहे हैं, और विशाल ग्रहों की कक्षाओं में लंबे समय तक बड़े बदलाव हो सकते हैं।
सूर्य का भविष्य और चुनौतियां
हालांकि सूर्य का लाल विशालकाय बनना अभी पांच अरब साल दूर है, लेकिन उससे पहले ही गुजरते तारे पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं। शोध से पता चलता है कि हमारे जैसे स्थिर सौरमंडल ब्रह्मांड में दुर्लभ हो सकते हैं। बाइनरी तारा प्रणालियां और घने तारा समूहों में कक्षीय अस्थिरता का खतरा और भी अधिक है। शोधकर्ता ग्रहों की कक्षाओं को स्थिर करने के लिए सैद्धांतिक समाधान तलाश रहे हैं, जैसे क्षुद्रग्रह फ्लाईबाई या सौर पाल तकनीक, लेकिन ये अभी केवल सैद्धांतिक अवधारणाएं हैं।