हिमालय बीमार है…

भारत की तासीर प्रकृति के साथ सद्भाव की, साथ-साथ रहने की रही है। सहस्त्राब्दियों से हम सबकी जो साझी समझ रही, उसमें विजेता नहीं, हम लोग प्रकृति के हिस्से, उसके अंग हैं। इसका सुरक्षित व संतुलित रहना हमारे जीवन के सुरक्षित व संतुलित होने की गारंटी है। लेकिन पहाड़ों का गिरना, नदियों का सूखना, दूषित होना, वनों का खत्म होना, पशुधन गंवा देना, धरती का चुकते जाना; कमोवेश आज का यह वैश्विक ट्रेंड हैं। इसी ट्रेंड पर गहरी रोशनी डालती दो रिपोर्ट्स हैं, जिनसे पता चलता है कि हिमाचल की बीमारी किस कदर बढ़ रही है।

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नई दिल्ली: हिमालय की बीमारी से जुड़ी दो रिपोर्ट्स हैं। इसमें से पहली रिपोर्ट से पता चलता है कि हिमनद झीलों का आकार बढ़ रहा है। इसमें 40 फीसदी तक इजाफा देखा गया है। यह खतरे की घंटी है। दूसरी रिपोर्ट बताती है कि हिमालय का तापमान बढ़ रहा है। इनमें अंदेशा जाहिर किया गया है कि सदी समाप्त होने तक हिमालय के तापमान में 2.6 से 4.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।

सिंचाई अनुसंधान संस्थान, रुड़की की एक शोध रिपोर्ट हिमालयी क्षेत्र में खतरे की घंटी बजाती है। संस्थान के विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में पाया कि हिमनद झीलों के आकार में 20-40 फीसदी तक अंतर दर्ज किया गया है। रुड़की स्थित सिंचाई अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ रिमोट सेंसिंग तकनीक से पिथौरागढ़ जिले में 43 तथा चमोली में 192 हिमनद झीलों के मानसून काल में हो रहे जल-प्रसार क्षेत्र का लगातार अध्ययन कर रहे हैं।

राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद की तरफ से हिमनद झीलों के वर्ष 2016 के आंकड़ों को आधार मानते हुए मौजूदा स्थिति के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस कारण विभिन्न प्राकृतिक आपदा, हिमस्खलन, भूस्खलन और हिमनद झीलों के विस्फोट से बाढ़ आ सकती है। लिहाजा यह खतरे का संकेत है।

संस्थान के एक वरिष्ठ इंजीनियर ने बताया कि वर्ष 2020, 2021 और 2022 में जून से अक्तूबर तक मानसून काल में जल प्रसार क्षेत्र का अध्ययन किया गया है। हिमनद झीलों के लिए 2022 में किए गए अध्ययन में इनके आकार में भारी अंतर देखने को मिला है।

यही नहीं, हिमनद झीलों के आकार में भी बदलाव है। एक हेक्टेयर के सात, एक से पांच हेक्टेयर तक के नौ, पांच से दस हेक्टेयर तक के दो तथा दस हेक्टेयर के चार ऐसे ग्लेशियर हैं। इनमें 40 फीसदी तक परिवर्तन और वृद्धि देखी गई है। इसके अलावा एक हेक्टेयर के तीन तथा एक से पांच हेक्टेयर तक के चार ऐसे ग्लेशियर हैं, जिनमें 20-40 फीसदी से अधिक की वृद्धि रिकॉर्ड की गई है।

हिमालय का तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है। 21वीं सदी में इसके गरम होने की रफ्तार दोगुनी हो गई है। निचले इलाकों की तुलना में उच्च हिमालयी क्षेत्र ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे की रिपोर्ट बताती है कि यही स्थिति रही तो इस सदी के समाप्त होने तक हिमालय के तापमान में 2.6 से 4.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।

संस्थान ने हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे वैज्ञानिक अध्ययनों से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया है। करीब सौ सालों के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि 20वीं सदी की शुरुआत से ही हिमालय का तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। 1940 से 1970 के बीच तापमान में गिरावट भी देखने को मिली, लेकिन के बाद बिगड़ी स्थिति फिर काबू नहीं हो पाई।

21वीं सदी शुरू होने के साथ ही ये और विकराल हो गई है। अध्ययन से पता चलता है कि बीसवीं सदी के किसी भी एक दशक में औसत तापमान .16 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ रहा था। इसमें वृद्धि की दर बहुत सीमित थी लेकिन 21 वीं सदी की शुरुआत के दशकों में ये वृद्धि .32 डिग्री पहुंच गई है।

चार हजार मीटर से ऊपर तेजी से बढ़ रहा तापमान

चार हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर हिमालय का तापमान और तेजी से बढ़ रहा है। 10 वर्षों में इन स्थानों पर 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई है। भविष्य में तापमान बढ़ने की रफ्तार और बढ़ेगी। माना जा रहा है कि 21वीं सदी के अंत तक तापमान में 2.6 से 4.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। यह चिंता की बात है। इसके लि एकार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करना होगा, ताकि ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम हो सके।

ग्लेशियरों पर बुरा असर

हिमालय का बढ़ रहा तापमान ग्लेशियरों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। तापमान बढ़ने और शीतकाल में बर्फबारी कम होने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। 40 वर्षों में ग्लेशियरों में 13 प्रतिशत की कमी देखी गई है। पूर्वी हिमालय के ग्लेशियरों में सबसे अधिक नुकसान देखने को मिल रहा है।

Suman

santshukla1976@gmail.com http://www.newgindia.com

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