नई दिल्ली: दुनियाभर में बढ़ता तापमान अब हमारी खाद्य आपूर्ति को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। एक ताजा अंतरराष्ट्रीय शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण सदी के अंत तक प्रमुख फसलों से प्राप्त होने वाली कैलोरी में 24 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
शोध में चेतावनी दी गई है कि गेहूं, मक्का, चावल, सोयाबीन, जौ और कसावा जैसी फसलों की पैदावार में भारी गिरावट हो सकती है, भले ही किसान कितनी भी कोशिश कर लें। यह अध्ययन, जो नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ, दुनिया की दो-तिहाई कैलोरी प्रदान करने वाली फसलों पर आधारित है। शोध के अनुसार, वैश्विक तापमान में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति दैनिक भोजन में औसतन 120 कैलोरी की कमी आएगी, जो आज की औसत खपत का लगभग 4.4% है।
तापमान वृद्धि से बढ़ेगा खाद्य संकट
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और शोधकर्ता सोलोमन हसियांग ने बताया कि खाद्य उत्पादन में कमी का सबसे ज्यादा असर आम लोगों पर पड़ेगा, क्योंकि इससे खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ेंगी और भोजन की उपलब्धता घटेगी। उन्होंने कहा, “अगर तापमान में तीन डिग्री की वृद्धि होती है, तो यह ऐसा होगा जैसे हर व्यक्ति ने अपना नाश्ता छोड़ दिया।” यह स्थिति खासकर उन 80 करोड़ लोगों के लिए चिंताजनक है, जो आज भी भूख की समस्या से जूझ रहे हैं। शोध में यह भी सामने आया कि अमेरिका जैसे देशों, विशेषकर मक्का और सोयाबीन के लिए मशहूर मिडवेस्ट क्षेत्र, को बढ़ते तापमान से सबसे ज्यादा नुकसान होगा। इससे यह सवाल उठता है कि क्या भविष्य में ये क्षेत्र आज की तरह उत्पादक रह पाएंगे?
किसानों के प्रयास नाकाम
शोधकर्ताओं ने 55 देशों के 12,000 से अधिक क्षेत्रों के डेटा का विश्लेषण किया। अध्ययन से पता चला कि किसान जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों, बीजों और खेती के तरीकों में बदलाव लाने की कोशिश करेंगे, लेकिन अगर उत्सर्जन का स्तर बढ़ता रहा, तो ये प्रयास सदी के अंत तक नुकसान का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही कम कर पाएंगे। इसका मतलब है कि बाकी नुकसान को रोकना मुश्किल होगा। शोध में पाया गया कि तापमान वृद्धि का असर दो तरह के क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा होगा: एक, जहां बड़े पैमाने पर आधुनिक खेती होती है, और दूसरा, जहां छोटे किसान सीमित संसाधनों के साथ खेती करते हैं। अमीर देशों में फसलों की पैदावार में 41% तक की कमी आ सकती है, जबकि गरीब देशों में यह 28% तक हो सकती है।
चावल की पैदावार में बढ़ोतरी की संभावना
शोध मॉडल के अनुसार, गर्म रातों से चावल की पैदावार को फायदा हो सकता है, और वैश्विक स्तर पर इसके उत्पादन में 50% संभावना के साथ वृद्धि हो सकती है। हालांकि, अन्य प्रमुख फसलों जैसे गेहूं, मक्का और सोयाबीन की पैदावार में 70 से 90% की संभावना के साथ कमी आएगी। शोधकर्ताओं ने बताया कि औद्योगिक काल से अब तक वैश्विक तापमान में करीब 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है, जिसके कारण कई क्षेत्रों में सूखा, अनियमित मौसम और असमय गर्मी के चलते फसलें प्रभावित हो रही हैं, भले ही खाद और पानी की उपलब्धता पहले से बेहतर हो।
भविष्य की चुनौतियां और चेतावनी
शोध में अनुमान लगाया गया है कि अगर उत्सर्जन को तुरंत कम करके नेट-जीरो हासिल भी कर लिया जाए, तब भी सदी के अंत तक फसलों की पैदावार में 11% की कमी आ सकती है। लेकिन अगर उत्सर्जन इसी तरह बढ़ता रहा, तो यह गिरावट 24% तक पहुंच सकती है। 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों में 8% की कमी तय मानी जा रही है, क्योंकि वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक असर डालता रहेगा। अमेरिका जैसे देशों को भारी नुकसान होगा, जबकि कनाडा, रूस और चीन जैसे ठंडे क्षेत्रों में कुछ हद तक फायदा हो सकता है।
बदलाव के लिए अभी भी है समय
वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी भी समय है, लेकिन यह तेजी से कम हो रहा है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि अगर उत्सर्जन में तुरंत कमी की जाए और किसानों को बेहतर संसाधन, तकनीक और जानकारी दी जाए, तो नुकसान को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। यह अध्ययन खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर चेतावनी है और तत्काल कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित करता है।