Climate Change: सदी के अंत तक 70% वृक्ष प्रजातियां बदलते मौसम से प्रभावित होंगी

एक हालिया वैश्विक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, सदी के अंत तक दुनिया भर की 32,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों में से लगभग 70% को ऐसी जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, जो उनके लिए पूरी तरह नई और चुनौतीपूर्ण होंगी। यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अनियंत्रित रहा, तो यह संकट और गहरा सकता है।

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नई दिल्ली: पेड़ धरती के लिए जीवन रक्षक हैं। वे हमें स्वच्छ हवा देते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, पानी को शुद्ध करते हैं और जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन अब ये जीवनदाता पेड़ स्वयं खतरे में हैं। एक हालिया वैश्विक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, सदी के अंत तक दुनिया भर की 32,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों में से लगभग 70% को ऐसी जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, जो उनके लिए पूरी तरह नई और चुनौतीपूर्ण होंगी। यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अनियंत्रित रहा, तो यह संकट और गहरा सकता है।

पेड़ों पर मंडराता विलुप्ति का खतरा
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. कोलीन बूनमैन ने बताया कि यदि वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होती है, तो कई प्रजातियों के आधे से अधिक आवास क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो सकते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की 47,282 ज्ञात वृक्ष प्रजातियों में से 16,425 से अधिक प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। भारत में भी स्थिति चिंताजनक है। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में भारत के कृषि क्षेत्रों से 53 लाख छायादार पेड़ गायब हो चुके हैं। कुछ क्षेत्रों में प्रति किलोमीटर 50 तक पेड़ों की कमी दर्ज की गई है।

किन क्षेत्रों पर पड़ेगा सबसे अधिक प्रभाव?
अध्ययन ने उन क्षेत्रों को चिह्नित किया है जहां वृक्षों की जैव विविधता सबसे अधिक है और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सबसे गंभीर होगा। इनमें यूरेशिया, उत्तर-पश्चिमी अमेरिका, उत्तरी चिली और अमेजन डेल्टा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन जगहों पर जलवायु इतनी तेजी से बदल रही है कि कई वृक्ष प्रजातियों का जीवित रहना मुश्किल हो सकता है। पेड़ों की लंबी आयु और सीमित गतिशीलता उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बनाती है। यह अध्ययन केवल जलवायु से संबंधित खतरों पर केंद्रित है और इसमें वनों की कटाई, भूमि उपयोग में बदलाव या बाहरी प्रजातियों के खतरे शामिल नहीं हैं। इसका मतलब है कि वास्तविक जोखिम इससे भी अधिक हो सकता है।

उम्मीद की किरण: क्लाइमेट रिफ्यूजिया
रिपोर्ट ने कुछ आशाजनक क्षेत्रों को भी रेखांकित किया है, जिन्हें ‘क्लाइमेट रिफ्यूजिया’ कहा गया है। ये ऐसे स्थान हैं जहां जलवायु परिस्थितियां भविष्य में भी अपेक्षाकृत स्थिर रह सकती हैं। इन क्षेत्रों को संरक्षित करने से पेड़ों के लिए सुरक्षित आश्रय बनाया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया है। इसमें खतरे में मौजूद प्रजातियों की निगरानी, क्लाइमेट रिफ्यूजिया को मानवीय हस्तक्षेप से बचाने और ‘असिस्टेड माइग्रेशन’ जैसे उपायों पर विचार शामिल है, ताकि पेड़ों को ऐसी जगहों पर स्थानांतरित किया जा सके जहां वे जीवित रह सकें।

तत्काल कदम उठाने की जरूरत
शोधकर्ता डॉ. जोसेप सेरा-डियाज ने चेतावनी दी कि पेड़ों को बचाने के लिए समय तेजी से कम हो रहा है। उन्होंने कहा, “हमें अभी से जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।” यह अध्ययन न केवल खतरे को उजागर करता है, बल्कि उन क्षेत्रों और अवसरों को भी चिह्नित करता है जहां संरक्षण के प्रयासों को केंद्रित किया जा सकता है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और संरक्षण उपायों को लागू करने से पेड़ों को बचाने में मदद मिल सकती है, जो धरती के पारिस्थितिकी तंत्र का आधार हैं।

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