Iran-Israel War के बीच 12 दिन की जंग, नफा-नुकसान का हिसाब

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा संघर्षविराम की घोषणा के बावजूद, दोनों देशों के बीच गोलीबारी और मिसाइल हमलों की गूंज अब भी सुनाई दे रही है। दोनों पक्ष अपनी जीत का दम भर रहे हैं, लेकिन इस युद्ध ने दोनों देशों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसमें मानवीय और बुनियादी ढांचे की तबाही ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

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नई दिल्ली: मध्य पूर्व में एक बार फिर तनाव चरम पर पहुंचा, जब ईरान और इजरायल (Iran-Israel War) के बीच 12 दिनों तक चली जंग ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा संघर्षविराम की घोषणा के बावजूद, दोनों देशों के बीच गोलीबारी और मिसाइल हमलों की गूंज अब भी सुनाई दे रही है। दोनों पक्ष अपनी जीत का दम भर रहे हैं, लेकिन इस युद्ध ने दोनों देशों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसमें मानवीय और बुनियादी ढांचे की तबाही ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

ईरान को कितना नुकसान?

इजरायल की वायुसेना के हमलों ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को भारी क्षति पहुंचाई। खबरों के मुताबिक, इस जंग में ईरान में 600 से 900 लोग मारे गए, जिनमें सैन्य कमांडर, परमाणु वैज्ञानिक और आम नागरिक शामिल हैं। करीब 3,000 लोग घायल हुए। इजरायल और अमेरिका के संयुक्त हमलों में नतांज, फोर्दो और इस्फहान जैसे महत्वपूर्ण परमाणु केंद्र निशाने पर रहे। ईरानी सूत्रों ने 14 वरिष्ठ वैज्ञानिकों और खुफिया अधिकारियों की मौत की पुष्टि की। तेहरान और उत्तरी ईरान में हुए हमलों से लाखों लोग बेघर हो गए, जिससे मानवीय संकट गहरा गया।

ईरान का जवाबी हमला

ईरान ने इजरायल पर 450 से ज्यादा ड्रोन और मिसाइल हमले किए। इजरायल के आधिकारिक बयानों के अनुसार, इन हमलों में 28 से 63 लोगों की जान गई, जबकि 600 से 3,200 लोग घायल हुए। तेल अवीव, हाइफा, बेर्शेबा और रिशत लेजिओन जैसे शहरों पर हमले हुए। बेर्शेबा के सोरोका अस्पताल पर हुआ हमला सबसे विनाशकारी रहा, जिसने स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह ठप कर दिया।

दोनों पक्षों के दावे

इज़रायल का दावा है कि उसने ईरान की सैन्य शक्ति को 30% तक कमज़ोर कर दिया और उसके परमाणु कार्यक्रम को बड़ा झटका दिया। दूसरी ओर, ईरान का कहना है कि उसके हमलों ने इज़रायल के तेल भंडारों, सैन्य हवाई अड्डों और साइबर ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया। दोनों देशों ने अपनी जीत के बयान जारी किए, लेकिन तटस्थ विश्लेषकों का मानना है कि दोनों को रणनीतिक और राजनीतिक स्तर पर भारी नुकसान हुआ है।

संघर्ष विराम की नाकामी

23 जून को डोनाल्ड ट्रंप ने संघर्षविराम की घोषणा की, लेकिन यह महज कागजी साबित हुआ। घोषणा के कुछ घंटों बाद ही तेहरान और उत्तरी ईरान में धमाकों की खबरें सामने आईं। ट्रंप ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से हमले रोकने की अपील की, लेकिन नेतन्याहू ने इसे ईरान के उल्लंघन का जवाब बताया।

नफा-नुकसान का लेखा-जोखा

इस जंग ने दोनों देशों में बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित किया। ईरान में लाखों लोग विस्थापित हुए, जबकि इजरायल को आर्थिक और मानवीय क्षति का सामना करना पड़ा। भारत ने “ऑपरेशन सिंधु” के ज़रिए तेहरान से अपने सैकड़ों नागरिकों को सुरक्षित निकाला। इजरायल को रणनीतिक बढ़त मिली, लेकिन उसकी जीत के दावे आंकड़ों के सामने कमजोर पड़ते हैं। ईरान को वैज्ञानिक और मानव संसाधन का भारी नुकसान हुआ, लेकिन उसकी जवाबी कार्रवाई ने उसकी सैन्य क्षमता को वैश्विक मंच पर रेखांकित किया। इस जंग ने मध्य पूर्व में तनाव को और गहरा दिया है, और भविष्य में शांति की राह अब भी अनिश्चित दिख रही है।

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