बॉलीवुड की दुनिया में अब वह दौर पीछे छूट रहा है, जब किसी का सरनेम ही उसका सफर तय कर देता था। बड़े बैनरों और परिवारों की छांव से दूर, कुछ नए चेहरे और आवाज़ें धीरे-धीरे इस इंडस्ट्री की धड़कनों को नया रुख दे रही हैं।
OTT: जहां टैलेंट वाकई देखा जाता है
नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, डिज़्नी+हॉटस्टार जैसे प्लेटफॉर्म्स ने दर्शकों को विकल्प दिए, और इन विकल्पों में छिपा मिला असली हुनर। जयदीप अहलावत की आंखों की खामोशी, शेफाली शाह की परिपक्वता, तिलोत्तमा शोम का भाव—ये सब अब पहचान बन चुके हैं। न डांस, न डायलॉगबाज़ी, फिर भी इनका असर देर तक रहता है।
सिर्फ चेहरा नहीं, नजरिया भी बदल रहा है
कहानी कहने वाले लोग भी अब नए हैं। छोटे शहरों से आए लेखक और डायरेक्टर, जिनके पास बड़े सेट नहीं, लेकिन बड़ी बातें कहने का हौसला है। ‘मसान’, ‘पगलैट’, ‘गुलमोहर’, ‘जामताड़ा’ जैसी कहानियाँ दिल के रास्ते से जाती हैं, टिकट खिड़की के नहीं।
क्या यह बदलाव ठहरेगा?
सवाल यही है—क्या यह नई लहर बॉलीवुड को नई दिशा दे पाएगी या फिर पुराने नामों की चमक फिर से सब ढक लेगी? लेकिन एक बात तय है: अब दर्शक सिर्फ चेहरों से नहीं, सच्चाई से जुड़ना चाहता है।
नेपोटिज़्म की दीवारें हिलने लगी हैं। और असली टैलेंट, अब सिर्फ दस्तक नहीं दे रहा—वो दरवाज़ा तोड़कर भीतर आ रहा है।