राजद का चुनावी स्टंट, ‘मंडल की सियासत’ से नीतीश को टक्कर देंगे लालू

अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री मंगनी लाल मंडल ने जदयू से नाता तोड़ लिया है। वह राजद में शामिल होने के साथ उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी भी की है। चुनावी साल में इसका मायने-मतलब बता रहे हैं, पटना से राहुल...

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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजद ने सियासी मैदान में अपना पासा फेंक दिया है। राजद सुप्रीमो लालू यादव यादव कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खास रहे व जदयू छोड़कर राजद में गये मंगनीलाल मंडल को राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की तैयारी की है। इसकी औपचारिक घोषणा 19 जून को होगी।

फिर भी, इसकी तैयारी चल रही है। इसी में मंगनी लाल ने अपना पर्चा भर दिया है। इनका निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले मंगनीलाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की राजद की सियासी चाल रणनीतिक तौर पर अहम मानी जा रही है।

सामान्य परिवार से आते मंगनी लाल मंडल

मंगनी लाल मंडल बेहद सामान्य परिवार से आते हैं। इनका जन्म फुल परास प्रखंड के गोरगमा के एक मजदूर परिवार में 1949 में हुआ था। इनके पिता झोटीलाल मंडल एवं माता संझा देवी मजदूरी कर जीवन यापन करते थे। मंडल का राजनीतिक पहचान मृदुभाषी, विद्वान,कानून के जानकारी रखने वाले नेता के रूप में है।

मंडल का राजनीतिक सफर एआईएसएफ से शुरू हुआ, लेकिन 1967 में डॉ राम मनोहर लोहिया एवं मधु लिमये के विचार से प्रभावित होकर वह लोकदल में शामिल हो गए। 1986 से 2004 तक लगातार 18 वर्षों तक बिहार विधान परिषद के सदस्य तथा बिहार सरकार में मंत्री भी रहे है।

वर्ष 2004 से 2009 तक राजद से राज्यसभा एवं 2009 से 2014 तक जदयू लोकसभा के सदस्य रहे हैं। मंगनी लाल मंडल कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते हैं। तभी उनको जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था और नीतीश सरकार में पहले मंत्री भी रहे।

मंगनी लाल मंडल की ताजपोशी के पीछे का सियासी मायने

अति पिछड़ा समुदाय से आने वाले मंगनी लाल मंडल को राजद की कमान सौंपना संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। वह बिहार की 30-35 फीसदी EBC (अति पिछड़ा वर्ग) आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंडल के जरिए लालू-तेजस्वी की जोड़ी EBC और अनुसूचित जाति वोट बैंक को साधने की कोशिश में है। लालू यादव का यह फैसला EBC वोटरों को साधने और उत्तर बिहार, खासकर मिथिलांचल क्षेत्र में आरजेडी की खोई जमीन वापस पाने की कोशिश है। मिथिलांचल में मंडल का प्रभाव और उनकी मृदुभाषी छवि पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।

जगदानंद सिंह की जगह नए अध्यक्ष की इसलिए हो रही तलाश

जगदानंद सिंह लंबे समय से पार्टी की गतिविधियों से दूरी बनाए हुए थे। 2024 में लोकसभा चुनाव में जगदानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहते राजद बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी। उनकी निष्क्रियता और तेजस्वी यादव के नेतृत्व से कुछ मतभेदों ने पार्टी में बदलाव की जरूरत को बढ़ाया। इसमें पार्टी मंडल का बेहतर मान रही है। वह पार्टी नेताओं के साथ सहज भी हैं और अति पिछड़ा वर्ग से आने की वजह से बड़ी आबादी पर असर भी डाल सकते हैं।

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