आग की ही तरह पत्थर, उनका स्थिर पड़े रहना, आकार विशेष के कुछ पत्थरों का लुढ़कना, इसमें भी उसकी गति… इन सबके अवलोकन ने दूसरी बड़ी खोज को आधार दिया। पहले पहिये को आकार इस सबसे ही मिला। पहला, दूसरा, तीसरा बेशक अनगढ़, अपरिष्कृत रहा हो, लेकिन धीरे-धीरे उसने गोलाई ले ली होगी और आवाजाही का बड़ा अविष्कार यह पहिया बना होगा।
कहने का मतलब यह कि रवायतें, परंपराएं, Tradition जो बने अपने यहां, पहले-पहल वह observation, अवलोकन का नतीजा रहे। इन्हीं रवायतों ने हमारी जीवन शैली को गढ़ा है। इसमें Seer, दृष्टा ने जैसा देखा, उसे ठीक वैसे ही अपने बाद वाली पीढ़ी को बताया। जिसको बताया, observation उनने भी किया।
चूंकि जो मिला, वह अवलोकन जनित था तो बात ठीक निकली। आगे भी क्रम यही चलता गया। अनुभव व अवलोकन के इसी साझे संयोग से धीरे-धीरे परंपराएं बनीं।
आग इंसानी इतिहास में पहली बड़ी खोज है। और यह Observation, अवलोकन का ही नतीजा रही। वह Seer, दृष्टा ही था, जिसने पहली बार पत्थरों को टकराते, टक्कर से चिंगारी निकलते, चिंगारी से आग लगते देखा। इस सबने उसे डराया, हैरान किया।
हैरानगी सुखद अहसास में तब बदली, जब उसने आग में जली वस्तुओं को चखा और बार-बार चखा। लगा यह तो बड़ा मजेदार है।पहले तो सब बेस्वाद था। दृष्टा की इसी समझ ने घरों में आग को चिरस्थाई कर दिया। तभी आग का पवित्र माना गया। उसकी पूजा की गई और आज भी की जाती है।
बात यूं ही आगे बढ़ती रही। बार-बार के अवलोकन, उसके इस्तेमाल व फलदायी प्रभाव का नतीजा है कि नीम, तुलसी समेत दूसरी कई वनस्पतियां, फल देने वाले पौधे से लेकर प्रकृति के हर कण पूजनीय हो गए। पूजा हमारे स्वभाव में आ गई। होता भी है ऐसा। कई बार किसी इंसान के काम से उसमें इतना सम्मान जगता है कि वह पूजनीय हो जाता है। स्वाभाविक है यह।
इसमें resources के maximum utilisation वाली बात नहीं थी। जितना जरूरी था, लिया उतना ही। दुधारू पशुओं, फलदार पौधों, खेत-खलिहान से लेकर प्रकृति तक से। जिसके पास जो अतिरिक्त था, वह दूसरों को उसे देने को प्रस्तुत था।
लेकिन आज हम जहां हैं, वहां देखने, देखकर समझने और तदनुसार व्यवहार करने की प्रवृत्ति चुक गई है। सब हड़बड़ में हैं। इसमें रहना उसी का संभव है, जिसका उपभोग हो सकता है। बाकी चीजें बेकार हैं।
समझ में आने वाली बात इतनी भर है कि जो कुछ भी हमें परंपराओं से मिला है, उसमें सब-कुछ खराब नहीं है। बहुत-कुछ अच्छा भी है। और जो खराब है, उसको छोड़ा भी जा सकता है। लेकिन किसी पूर्वाग्रह बस नहीं, इसका तार्किक आधार जरूर होना चाहिए।