शरीर ठीक से तभी काम कर सकेगा, जब तक इसके सभी अंग सही होंगे। हम काम करेंगे, सेवा देंगे तो कुछ सृजित होगा। इसमें नियोक्ता भी खुश, हम और परिवार भी। यह एक चेन सी है। इसकी एक भी कड़ी टूटी तो खुशहाली गायब होगी ही, बिना अतिरिक्त आमदनी घर चलाने का खर्च भी बढ़ेगा।
यूं ही प्रकृति, Nature भी है, Ecosystem जिसका शरीर है। इसकी सेवाएं मिलती रहें, इसके लिए जरूरी है कि शरीर के सभी अंग ठीक से Function करें, काम करें। वह बीमार न होने पाएं। कमजोरी न आए उनमें।
कोई भी Ecosystem ठीक है या नहीं, उसमें तीन चीजें देखनी होती हैं। वैसे ही, जैसे बीमार होने पर डॉक्टर शरीर की जांच करता है। और वह तीन चीजें हैं; Ecosystem विशेष में Producers, पैदा करने वाला, Consumers, खाने वाला और Decomposers बच गए को गलाने वाला है या नहीं। अगर तीनों हैं तो Ecosystem ठीक काम कर रहा है, सेवाएं सबको मिल रही हैं इसकी।
लेकिन इन तीनों में से कोई भी एक गायब हुआ तो समझिए Ecosystem कमजोर है। और इसकी कमजोरी से दो चीजें होंगी; Living Cost, निर्वाह खर्च बढ़ेगा, Quality of Life, जीवन स्तर खराब होगा। कमजोरी बढ़ते जाने के क्रम में आपदाओं का खतरा बढ़ता जाता है।
और हां, Ecosystem खुद से कमजोर नहीं होता, अमूमन हमारी-आपकी दखलंदाजी इसकी वजह बनती है। वह भी इसलिए कि हमें व्यक्ति, समाज और देश के नाम पर ‘विकास’ करना है। वह भी ऐसा, जिसमें अतिशीघ्र resource, संसाधन का maximum utilization, अधिकतम इस्तेमाल हम अपने लिए कर सकें। गड़बड़ इसी में हुई है। बात तो की विकास की, लेकिन किया विनाश। दुनिया के किसी न किसी कोने में हर दिन होने वाली प्राकृतिक आपदाएं; जिसे मानव जनित कहना ज्यादा ठीक रहेगा, इसकी नजीर भी हैं।